ऐंसेल्म

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लेख सूचना
ऐंसेल्म
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 271
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक श्रीमति सरोजिनी चतुर्वेदी

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ऐंसेल्म (1033-1109) अंग्रेज संत और धर्मशास्त्री। धार्मिक विश्वास और बुद्धि के समन्वय विषयक अपने प्रयत्नों के कारण इन्हें मध्ययुगीन दर्शन का संस्थापक भी कहा जाता है। जन्म पीदमोंत के संपन्न अभिजात कुल में 1033 के लगभग। पिता गुंदल्प उग्र और क्रोधी स्वभाव के थे पर माता एरमेनबर्गा शांत और धार्मिक महिला थीं। उन्हीं की शिक्षा से ऐंसेल्म में धार्मिक विश्वासों की नींव पड़ी। 15 वर्ष की अवस्था में ही उसकी संन्यास लेने की इच्छी थी पर पिता ने अनुमति नहीं दी। इस निराशा का ऐसा दुष्प्रभाव हुआ कि उसे लंबी बीमारी झेलनी पड़ी। रोगमुक्त होने पर अध्ययन को तिलांजलि दे वह सांसारिक भोगविलास और व्यसनों की ओर झुका। इसी समय माँ की मृत्यु हो गई; पिता का स्वभाव अधिकाधिक कठोर तथा घर का वातावरण असहनीय होने पर वह घर त्यागकर घूमते घामते नारमंडी पहुँचा और वहाँ के बेस मठ का फ्ऱायर हो गया। उसकी अध्यक्षता में बेस सारे यूरोप का ज्ञानकेंद्र बन गया। यहीं पर अपनी विख्यात पुस्तक कूर दिउस होमे (क्द्वद्ध क़्ड्ढद्वद्म क्तद्थ्रृड्ढ) लिखी जिसमें प्रायश्चित्त के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है। 1093 में विलयम रूफ़स ने उसे कैंटरबरी का आर्चबिशप नियुक्त कर दिया। शीघ्र ही गिरजे की आय को लेकर दोनों में मतभेद हो गया। राजा ने आय जब्त कर ली; ऐंसेल्म ने क्रुद्ध हो इंग्लैंड छोड़ दिया। बाद में हेनरी प्रथम ने समझौता कर लिया और 1107 में ऐंसेल्म देश लौट आया।

मध्य युग में उसके दार्शनिक सिद्धांतों का उचित संमान नहीं हो पाया क्योंकि वे बिखरे हुए प्रश्नोत्तरों और संभाषणों के रूप में संकलित हैं। पर उनमें श्रेष्ठता, दृष्टिकोण की नवीनता, विचारों की सुगमता और दार्शनिक स्फूर्ति है जो साधारणत: ऐसे ग्रंथों में नहीं मिलती।


टीका टिप्पणी और संदर्भ