"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 141 श्लोक 48-57" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्‍तर्गत भगवाद्यानपर्व में कर्णके द्वारा अपने निश्चित विचार का प्रतिपादनविषयक एक सौ इकतालीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्‍तर्गत भगवाद्यानपर्व में कर्णके द्वारा अपने निश्चित विचार का प्रतिपादनविषयक एक सौ इकतालीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।</div>
  
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०७:०९, १६ जुलाई २०१५ का अवतरण

एकचत्‍वारिंशदधिकशततम (141) अध्‍याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: एकचत्‍वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 48-57 का हिन्दी अनुवाद

जनार्दन ! जब दोनो पांचाल राजकुमार धृष्‍टघुम्न और शिखण्‍डी द्रोणाचार्य और भीष्‍मको मार गिरायेंगे, उस समय इस रणयज्ञका अवसान (बीच-बीच में होने वाला विराम) कार्य सम्‍पन्‍न होगा। माधव ! जब महाबली भीमसेन दुर्योधनका वध करेंगे उस समय धृतराष्ट्रपुत्रका प्रारम्‍भ किया हुआ यह यज्ञ समाप्‍त हो जायेगा। केशव ! जिनके पति, पुत्र और संरक्षक मार दियेगये होंगे, वे धृतराष्ट्रके पुत्रों और पौत्रोंकी बहुएँ जब गान्‍धारीके साथ एकत्र होकर कुतों, गीधों और कुरर पक्षियोंसे भरे हुए समरांगणमे रोती हुई विचरेंगी, जनार्दन ! वही उस यज्ञका अवभृथस्‍नान होगा। क्षत्रियशिरोमणी मधुसूदन ! तुम्‍हारे इस शान्तिस्‍थापनके प्रयत्‍नसे कहीं ऐसा न हो कि विद्यावृद्ध और वयोवृद्ध क्षत्रियगण व्‍यर्थ मृत्‍युको प्राप्‍त हों (युद्धमें शस्‍त्रोंसे होने-वाली मृत्‍यु से वंचित रह जाये) । केशव ! कुरूक्षेत्र तीनों लोकोंके लिये परम पुण्‍यतम तीर्थ है । यह समृद्धिशाली क्षत्रियसमुदाय वही जाकर शस्‍त्रोंके आघातसे मृत्‍युको प्राप्‍त हो। कमलनयन वृष्णिनन्‍दन ! आप भी इसकी सिद्धिके लिये ही ऐसा मनोवाच्छित प्रयत्‍न करें, जिससे यह सारा-का-सारा क्षत्रियसमूह स्‍वर्गलोक में पहुंचजाये। जनार्दन ! जब तक ये पर्वत और सरिताएँ रहेंगी, तब-तक इस युद्धकी कीर्ति-कथा अक्षय बनी रहेगी । वार्ष्‍णेय ! ब्राह्राणलोग क्षत्रियोंके समाज में इस महाभारतयुद्धका, जिसमें राजाओंके सुयशरूपी धनका संग्रह होनेवाला है, वर्णन करेंगे। शत्रुओंको संताप देनेवाले केशव ! आप इस मन्‍त्रणाको सदा गुप्‍त रखते हुए ही कुन्‍तीकुमार अर्जुनको मेरे साथ युद्ध करने के लिये ले आवें ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्‍तर्गत भगवाद्यानपर्व में कर्णके द्वारा अपने निश्चित विचार का प्रतिपादनविषयक एक सौ इकतालीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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