"महाभारत आदि पर्व अध्याय 5 श्लोक 20-34": अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "{{महाभारत}}" to "{{सम्पूर्ण महाभारत}}") |
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
== | ==पञ्चम (5) अध्याय: आदि पर्व (पौलोम पर्व)== | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आदि पर्व: पञ्चम अध्याय: श्लोक 19-34 का हिन्दी अनुवाद</div> | |||
किन्तु पीछे उसके पिता ने शास्त्र विधि के अनुसार महर्षि भृगु के साथ उसका विवाह कर दिया। भृगुनन्दन ! उसके पिता का वह अपराध राक्षस के हृदय में सदा काँटे सा कसकता रहता था। यही अच्छा मौका है, ऐसा विचार कर उसने उस समय पुलोमा को हर ले जाने का पक्का निश्चय कर लिया। इतने में ही राक्षस ने देखा, अग्निहोत्र गृह में अग्निदेव प्रज्वलित हो रहे हैं। | |||
तब पुलोमा ने उस समय उस प्रज्वलित पावक से पूछा-‘अग्निदेव! मैं सत्य की शपथ देकर पूछता हूँ, बताओं, यह किसकी पत्नी है? ‘पावक ! तुम देवताओं के मुख हो। अतः मेरे पूछने पर ठीक-ठीक बताओ। पहले तो मैंने ही इस सुन्दरी को अपनी पत्नी बनाने के लिये वरण किया था। ‘किन्तु बाद में असत्य व्यहार करने वाले इसके पिता ने भृगु के साथ इसका विवाह कर दिया। यदि यह एकान्त में मिली हुई सुन्दरी भृगु की भार्या है तो वैसी बात सच- सच बता दो; क्योंकि मैं इसे इस आश्रम से हर ले जाना चाहता हूँ । वह क्रोध आज मेरे हृदय को दग्ध सा कर रहा है इस सुमध्यमा को, जो पहले मेरी भार्या थी, भृगुने अन्याय पूर्वक हड़प लिया है’। | तब पुलोमा ने उस समय उस प्रज्वलित पावक से पूछा-‘अग्निदेव! मैं सत्य की शपथ देकर पूछता हूँ, बताओं, यह किसकी पत्नी है? ‘पावक ! तुम देवताओं के मुख हो। अतः मेरे पूछने पर ठीक-ठीक बताओ। पहले तो मैंने ही इस सुन्दरी को अपनी पत्नी बनाने के लिये वरण किया था। ‘किन्तु बाद में असत्य व्यहार करने वाले इसके पिता ने भृगु के साथ इसका विवाह कर दिया। यदि यह एकान्त में मिली हुई सुन्दरी भृगु की भार्या है तो वैसी बात सच- सच बता दो; क्योंकि मैं इसे इस आश्रम से हर ले जाना चाहता हूँ । वह क्रोध आज मेरे हृदय को दग्ध सा कर रहा है इस सुमध्यमा को, जो पहले मेरी भार्या थी, भृगुने अन्याय पूर्वक हड़प लिया है’। | ||
पंक्ति ११: | पंक्ति १२: | ||
अग्निदेव बोले- दानवनन्दन ! इसमें संदेह नहीं कि पहले तुम्ही ने इस पुलोमा का वरण किया था, किन्तु विधि पूर्वक मन्त्रोच्चारण करते हुए इसके साथ तुमने विवाह नहीं किया था। पिता ने तो यह यशस्विनी पुलोमा भृगु को ही दी है। तुम्हारे वरण करने पर भी इसके महायशस्वी पिता तुम्हारे हाथ में इसे इसलिये नहीं देते थे कि उनके मन में तुमसे श्रेष्ठ वर मिल जाने का लोभ था। दानव ! तदनन्तर महर्षि भृगु ने मुझे साक्षी बनाकर वेदोक्त क्रिया द्वारा विधि पूर्वक इसका पाणिग्रहण किया था। यह वही है, ऐसा मैं जानता हूँ। इस विषय में मैं झूठ नहीं बोल सकता। दानवश्रेष्ठ ! लोक में असत्य की कभी पूजा नहीं होती है। | अग्निदेव बोले- दानवनन्दन ! इसमें संदेह नहीं कि पहले तुम्ही ने इस पुलोमा का वरण किया था, किन्तु विधि पूर्वक मन्त्रोच्चारण करते हुए इसके साथ तुमने विवाह नहीं किया था। पिता ने तो यह यशस्विनी पुलोमा भृगु को ही दी है। तुम्हारे वरण करने पर भी इसके महायशस्वी पिता तुम्हारे हाथ में इसे इसलिये नहीं देते थे कि उनके मन में तुमसे श्रेष्ठ वर मिल जाने का लोभ था। दानव ! तदनन्तर महर्षि भृगु ने मुझे साक्षी बनाकर वेदोक्त क्रिया द्वारा विधि पूर्वक इसका पाणिग्रहण किया था। यह वही है, ऐसा मैं जानता हूँ। इस विषय में मैं झूठ नहीं बोल सकता। दानवश्रेष्ठ ! लोक में असत्य की कभी पूजा नहीं होती है। | ||
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत | {{लेख क्रम |पिछला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-19|अगला=महाभारत आदि पर्व अध्याय 6 श्लोक 1-14}} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
०५:१६, २१ जुलाई २०१५ का अवतरण
पञ्चम (5) अध्याय: आदि पर्व (पौलोम पर्व)
किन्तु पीछे उसके पिता ने शास्त्र विधि के अनुसार महर्षि भृगु के साथ उसका विवाह कर दिया। भृगुनन्दन ! उसके पिता का वह अपराध राक्षस के हृदय में सदा काँटे सा कसकता रहता था। यही अच्छा मौका है, ऐसा विचार कर उसने उस समय पुलोमा को हर ले जाने का पक्का निश्चय कर लिया। इतने में ही राक्षस ने देखा, अग्निहोत्र गृह में अग्निदेव प्रज्वलित हो रहे हैं।
तब पुलोमा ने उस समय उस प्रज्वलित पावक से पूछा-‘अग्निदेव! मैं सत्य की शपथ देकर पूछता हूँ, बताओं, यह किसकी पत्नी है? ‘पावक ! तुम देवताओं के मुख हो। अतः मेरे पूछने पर ठीक-ठीक बताओ। पहले तो मैंने ही इस सुन्दरी को अपनी पत्नी बनाने के लिये वरण किया था। ‘किन्तु बाद में असत्य व्यहार करने वाले इसके पिता ने भृगु के साथ इसका विवाह कर दिया। यदि यह एकान्त में मिली हुई सुन्दरी भृगु की भार्या है तो वैसी बात सच- सच बता दो; क्योंकि मैं इसे इस आश्रम से हर ले जाना चाहता हूँ । वह क्रोध आज मेरे हृदय को दग्ध सा कर रहा है इस सुमध्यमा को, जो पहले मेरी भार्या थी, भृगुने अन्याय पूर्वक हड़प लिया है’।
उगश्रवाजी कहते हैं—इस प्रकार वह राक्षस भृगु की पत्नी के प्रति, यह मेरी है या भृगु की। ऐसा संशय रखते हुए, प्रज्वलित अग्नि को सम्बोधित करके बार-बार पूछने लगा-। ‘अग्निदेव ! तुम सदा सब प्राणियों के भीतर निवास करते हो। सर्वज्ञ अग्ने ! तुम पुण्य और पाप के विषय में साक्षी की भाँति स्थित रहते हो; अतः सच्ची बात बताओ। ‘असत्य बर्ताव करने वाले भृगु ने, जो पहले मेरी ही थी, उस भार्या का अपहरण किया है। यदि यह वही है, तो वैसी बात ठीक-ठीक बता दो।' ‘सर्वज्ञ अग्निदेव ! तुम्हारे मुख से सब बातें सुनकर भृगु की इस भार्या को तुम्हारे देखते-देखते इस आश्रम से हर ले जाऊँगा; इसलिये मुझसे सच्ची बात कहो’।
उग्रश्रवाजी कहते हैं—राक्षस की यह बात सुनकर ज्वालामयी सात जिह्नाओं वाले अग्निदेव बहुत दुखी हुए। एक ओर वे झूठ से डरते थे तो दूसरी ओर भृगु के शाप से; अतः धीरे से इस प्रकार बोले।
अग्निदेव बोले- दानवनन्दन ! इसमें संदेह नहीं कि पहले तुम्ही ने इस पुलोमा का वरण किया था, किन्तु विधि पूर्वक मन्त्रोच्चारण करते हुए इसके साथ तुमने विवाह नहीं किया था। पिता ने तो यह यशस्विनी पुलोमा भृगु को ही दी है। तुम्हारे वरण करने पर भी इसके महायशस्वी पिता तुम्हारे हाथ में इसे इसलिये नहीं देते थे कि उनके मन में तुमसे श्रेष्ठ वर मिल जाने का लोभ था। दानव ! तदनन्तर महर्षि भृगु ने मुझे साक्षी बनाकर वेदोक्त क्रिया द्वारा विधि पूर्वक इसका पाणिग्रहण किया था। यह वही है, ऐसा मैं जानता हूँ। इस विषय में मैं झूठ नहीं बोल सकता। दानवश्रेष्ठ ! लोक में असत्य की कभी पूजा नहीं होती है।
« पीछे | आगे » |