"महाभारत आश्रमवासिक पर्व अध्याय 31 श्लोक 19-25" के अवतरणों में अंतर
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− | == | + | ==एकत्रिंश (31) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (पुत्रदर्शन पर्व)== |
− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: | + | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: आश्रमवासिक पर्व: एकत्रिंश अध्याय: श्लोक 19-25 का हिन्दी अनुवाद </div> |
− | इस समय तुम सब लोग गंगा जी के तटपर चलो । वहीं सब को समरांगण में मारे गये अपने सभी सम्बन्धियों के दर्शन होंगे।वैशम्पायन जी कहते हैं–राजन् ! महर्षि व्यास का यह वचन सुनकर सब लोग महान् सिंहनाद करते हुए प्रसन्नता पूर्वक गंगा तट की ओर चल दिये। राजा धृतराष्ट्र अपने मन्त्रियों, पाण्डवों,मुनिवरों तथा वहाँ आये हुए गन्धर्वों के साथ गंगा जी के समीप गये। क्रमशः वह सारा जनसमुद्र गंगातट पर जा पहुँचा और सब लोग अपनी-अपनी रूचि तथा सुख-सुविधा के अनुसार जहाँ-तहाँ ठहर गये। | + | इस समय तुम सब लोग गंगा जी के तटपर चलो । वहीं सब को समरांगण में मारे गये अपने सभी सम्बन्धियों के दर्शन होंगे।वैशम्पायन जी कहते हैं–राजन् ! महर्षि व्यास का यह वचन सुनकर सब लोग महान् सिंहनाद करते हुए प्रसन्नता पूर्वक गंगा तट की ओर चल दिये। राजा धृतराष्ट्र अपने मन्त्रियों, पाण्डवों,मुनिवरों तथा वहाँ आये हुए गन्धर्वों के साथ गंगा जी के समीप गये। क्रमशः वह सारा जनसमुद्र गंगातट पर जा पहुँचा और सब लोग अपनी-अपनी रूचि तथा सुख-सुविधा के अनुसार जहाँ-तहाँ ठहर गये। बुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र स्त्रियों और वृद्धों को आगे करके पाण्डवों तथा सेवकों के साथ वहाँ अभीष्ट स्थान में ठहरे। मृत राजाओं को देखने की इच्छा से सभी लोग वहाँ रात होने की प्रतीक्षा करते रहे; अतः वह दिन उनके लिये सौ वर्षों के समान जान पड़ा तो भी वह धीरे-धीरे बीत ही गया। तदनन्तर सूर्य देव परम पवित्र अस्ताचल को जा पहुँचे । उस समय सब लोग स्नान करके सायंकालोचित संध्यावन्दन आदि कर्म करने लगे। |
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिक पर्व के अन्तर्गत पुत्रदर्शन पर्व में सबका गंगातीर पर गमन विषयक इकतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्रमवासिक पर्व के अन्तर्गत पुत्रदर्शन पर्व में सबका गंगातीर पर गमन विषयक इकतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
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==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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११:५३, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
एकत्रिंश (31) अध्याय: आश्रमवासिक पर्व (पुत्रदर्शन पर्व)
इस समय तुम सब लोग गंगा जी के तटपर चलो । वहीं सब को समरांगण में मारे गये अपने सभी सम्बन्धियों के दर्शन होंगे।वैशम्पायन जी कहते हैं–राजन् ! महर्षि व्यास का यह वचन सुनकर सब लोग महान् सिंहनाद करते हुए प्रसन्नता पूर्वक गंगा तट की ओर चल दिये। राजा धृतराष्ट्र अपने मन्त्रियों, पाण्डवों,मुनिवरों तथा वहाँ आये हुए गन्धर्वों के साथ गंगा जी के समीप गये। क्रमशः वह सारा जनसमुद्र गंगातट पर जा पहुँचा और सब लोग अपनी-अपनी रूचि तथा सुख-सुविधा के अनुसार जहाँ-तहाँ ठहर गये। बुद्धिमान राजा धृतराष्ट्र स्त्रियों और वृद्धों को आगे करके पाण्डवों तथा सेवकों के साथ वहाँ अभीष्ट स्थान में ठहरे। मृत राजाओं को देखने की इच्छा से सभी लोग वहाँ रात होने की प्रतीक्षा करते रहे; अतः वह दिन उनके लिये सौ वर्षों के समान जान पड़ा तो भी वह धीरे-धीरे बीत ही गया। तदनन्तर सूर्य देव परम पवित्र अस्ताचल को जा पहुँचे । उस समय सब लोग स्नान करके सायंकालोचित संध्यावन्दन आदि कर्म करने लगे।
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