"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 16 श्लोक 63-76" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 63-76 का हिन्दी अनुवाद </div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासन पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 63-76 का हिन्दी अनुवाद </div>
  
सनातन परमेश्वर! जो मोक्षकी इच्छा रखकर वैराग्यके मार्गपर चलते हैं उन्हें, और जो प्रकृतिमें लयको प्राप्त होते हैं उन्हें, जो गति उपलब्ध होती हैं, वह आप ही हैं। देव! ज्ञान और विज्ञानसे युक्त पुरूषोंको जो सारूप्य आदि नामसे रहित, निरंजन एवं कैवल्यरूप परमगति प्राप्त होती है, वह आप ही हैं। प्रभो! वेद-शास्त्र और पुराणोंमें जो ये पांच गतियां बतायी गयी हैं, ये आपकी कृपासे ही प्राप्त होती हैं, अन्यथा नहीं। इस प्रकार तपस्याकी निधिरूप तण्डिने अपने मनसे महादेवजीकी स्तुति की और पूर्वकालमें ब्रह्माजीने जिस परम ब्रह्मास्वरूप स्तोत्रका गान किया था, उसीका स्वयं भी गान किया। उपमन्यु कहते हैं-ब्रह्मावादी तण्डिके इस प्रकार स्तुति करनेपर पार्वतीसहित प्रभावशाली भगवान महादेव उनसे बोले-तण्डिने स्तुति करते हुए यह बात कही थी कि ’ब्रह्मा,विष्णु,इन्द्र,विष्वेदेव और महर्षि भी आपको यथार्थरूपसे नहीं जानते हैं’, इससे भगवानशंकर बहुत संतुष्ट हुए और बोले-भगवान् श्रीशिवने कहा-ब्रह्मान्! तुम अक्षय, अविकारी,दुःखरहित,यशस्वी,तेजस्वी एवं दिव्यज्ञान से सम्पन्न होओगे। द्विजश्रेष्ठ! मेरी कृपासे तुम्हें एक विद्वान पुत्र प्राप्त होगा, जिसके पास ऋषिलोग भी शिक्षाग्रहण करनेके लिये जायेंगे। वह कल्पसूत्रका निर्माण करेगा, इसमें संशय नहीं है। वत्स! बोलो,तुम क्या चाहते हो अब मैं तुम्हें कौन-सा मनोवांछित वर प्रदान करूं? तब तण्डिने हाथ जोड़कर कहा-प्रभो! आपके चरणारविन्दमें मेरी सुदृढ़ भक्ति हो। उपमन्युने कहा-देवर्षियोंद्वारा वन्दित और देवताओंद्वारा प्रशसित होते हुए महादेवजी इन वरोंको देकर वहीं अन्तर्धान हो गये। यादवेश्वर! जब पार्षदोंसहित भगवान अन्तर्धान हो गये, तब ऋषिने मेरे आश्रमपर आकर यहां मुझसे ये सब बातें बतायीं। मानवश्रेष्ठ! तण्डिमुनिने जिन आदिकालके प्रसिद्ध नामोंका मेरे सामने वर्णन किया, उन्हें आप भी सुनिये। वे सिद्धि प्रदान करनेवाले हैं। पितामह ब्रह्माने पूर्वकालमें देवताओंके निकट महादेवजीके दस हजार नाम बताये थे और शास्त्रोंमें भी उनके सहस्त्र नाम वर्णित हैं। अच्चुत! पहले देवेश्वर ब्रह्माजीने महादेवजीकी कृपासे महात्मा तण्डिके निकट जिन नामोंका वर्णन किया था, महर्षि तण्डिने भगवान् महादेवके उन्हीं समस्त गोपनीय नामोंका मेरे समक्ष प्रतिपादन किया था।  
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सनातन परमेश्वर! जो मोक्षकी इच्छा रखकर वैराग्यके मार्गपर चलते हैं उन्हें, और जो प्रकृतिमें लयको प्राप्त होते हैं उन्हें, जो गति उपलब्ध होती हैं, वह आप ही हैं। देव! ज्ञान और विज्ञानसे युक्त पुरूषोंको जो सारूप्य आदि नामसे रहित, निरंजन एवं कैवल्यरूप परमगति प्राप्त होती है, वह आप ही हैं। प्रभो! वेद-शास्त्र और पुराणोंमें जो ये पांच गतियां बतायी गयी हैं, ये आपकी कृपासे ही प्राप्त होती हैं, अन्यथा नहीं। इस प्रकार तपस्याकी निधिरूप तण्डिने अपने मनसे महादेवजीकी स्तुति की और पूर्वकालमें ब्रह्माजीने जिस परम ब्रह्मास्वरूप स्तोत्रका गान किया था, उसीका स्वयं भी गान किया। उपमन्यु कहते हैं-ब्रह्मावादी तण्डिके इस प्रकार स्तुति करनेपर पार्वतीसहित प्रभावशाली भगवान महादेव उनसे बोले-तण्डिने स्तुति करते हुए यह बात कही थी कि ’ब्रह्मा,विष्णु,इन्द्र,विष्वेदेव और महर्षि भी आपको यथार्थरूपसे नहीं जानते हैं’, इससे भगवानशंकर बहुत संतुष्ट हुए और बोले-भगवान  श्रीशिवने कहा-ब्रह्मान्! तुम अक्षय, अविकारी,दुःखरहित,यशस्वी,तेजस्वी एवं दिव्यज्ञान से सम्पन्न होओगे। द्विजश्रेष्ठ! मेरी कृपासे तुम्हें एक विद्वान पुत्र प्राप्त होगा, जिसके पास ऋषिलोग भी शिक्षाग्रहण करनेके लिये जायेंगे। वह कल्पसूत्रका निर्माण करेगा, इसमें संशय नहीं है। वत्स! बोलो,तुम क्या चाहते हो अब मैं तुम्हें कौन-सा मनोवांछित वर प्रदान करूं? तब तण्डिने हाथ जोड़कर कहा-प्रभो! आपके चरणारविन्दमें मेरी सुदृढ़ भक्ति हो। उपमन्युने कहा-देवर्षियोंद्वारा वन्दित और देवताओंद्वारा प्रशसित होते हुए महादेवजी इन वरोंको देकर वहीं अन्तर्धान हो गये। यादवेश्वर! जब पार्षदोंसहित भगवान अन्तर्धान हो गये, तब ऋषिने मेरे आश्रमपर आकर यहां मुझसे ये सब बातें बतायीं। मानवश्रेष्ठ! तण्डिमुनिने जिन आदिकालके प्रसिद्ध नामोंका मेरे सामने वर्णन किया, उन्हें आप भी सुनिये। वे सिद्धि प्रदान करनेवाले हैं। पितामह ब्रह्माने पूर्वकालमें देवताओंके निकट महादेवजीके दस हजार नाम बताये थे और शास्त्रोंमें भी उनके सहस्त्र नाम वर्णित हैं। अच्चुत! पहले देवेश्वर ब्रह्माजीने महादेवजीकी कृपासे महात्मा तण्डिके निकट जिन नामोंका वर्णन किया था, महर्षि तण्डिने भगवान  महादेवके उन्हीं समस्त गोपनीय नामोंका मेरे समक्ष प्रतिपादन किया था।  
  
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्व में मेघवाहनपर्वकी कथविषयक सोलहवां अध्याय पूरा हुआ।</div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्व में मेघवाहनपर्वकी कथविषयक सोलहवां अध्याय पूरा हुआ।</div>

१२:०७, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

षोडश (16) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: षोडश अध्याय: श्लोक 63-76 का हिन्दी अनुवाद

सनातन परमेश्वर! जो मोक्षकी इच्छा रखकर वैराग्यके मार्गपर चलते हैं उन्हें, और जो प्रकृतिमें लयको प्राप्त होते हैं उन्हें, जो गति उपलब्ध होती हैं, वह आप ही हैं। देव! ज्ञान और विज्ञानसे युक्त पुरूषोंको जो सारूप्य आदि नामसे रहित, निरंजन एवं कैवल्यरूप परमगति प्राप्त होती है, वह आप ही हैं। प्रभो! वेद-शास्त्र और पुराणोंमें जो ये पांच गतियां बतायी गयी हैं, ये आपकी कृपासे ही प्राप्त होती हैं, अन्यथा नहीं। इस प्रकार तपस्याकी निधिरूप तण्डिने अपने मनसे महादेवजीकी स्तुति की और पूर्वकालमें ब्रह्माजीने जिस परम ब्रह्मास्वरूप स्तोत्रका गान किया था, उसीका स्वयं भी गान किया। उपमन्यु कहते हैं-ब्रह्मावादी तण्डिके इस प्रकार स्तुति करनेपर पार्वतीसहित प्रभावशाली भगवान महादेव उनसे बोले-तण्डिने स्तुति करते हुए यह बात कही थी कि ’ब्रह्मा,विष्णु,इन्द्र,विष्वेदेव और महर्षि भी आपको यथार्थरूपसे नहीं जानते हैं’, इससे भगवानशंकर बहुत संतुष्ट हुए और बोले-भगवान श्रीशिवने कहा-ब्रह्मान्! तुम अक्षय, अविकारी,दुःखरहित,यशस्वी,तेजस्वी एवं दिव्यज्ञान से सम्पन्न होओगे। द्विजश्रेष्ठ! मेरी कृपासे तुम्हें एक विद्वान पुत्र प्राप्त होगा, जिसके पास ऋषिलोग भी शिक्षाग्रहण करनेके लिये जायेंगे। वह कल्पसूत्रका निर्माण करेगा, इसमें संशय नहीं है। वत्स! बोलो,तुम क्या चाहते हो अब मैं तुम्हें कौन-सा मनोवांछित वर प्रदान करूं? तब तण्डिने हाथ जोड़कर कहा-प्रभो! आपके चरणारविन्दमें मेरी सुदृढ़ भक्ति हो। उपमन्युने कहा-देवर्षियोंद्वारा वन्दित और देवताओंद्वारा प्रशसित होते हुए महादेवजी इन वरोंको देकर वहीं अन्तर्धान हो गये। यादवेश्वर! जब पार्षदोंसहित भगवान अन्तर्धान हो गये, तब ऋषिने मेरे आश्रमपर आकर यहां मुझसे ये सब बातें बतायीं। मानवश्रेष्ठ! तण्डिमुनिने जिन आदिकालके प्रसिद्ध नामोंका मेरे सामने वर्णन किया, उन्हें आप भी सुनिये। वे सिद्धि प्रदान करनेवाले हैं। पितामह ब्रह्माने पूर्वकालमें देवताओंके निकट महादेवजीके दस हजार नाम बताये थे और शास्त्रोंमें भी उनके सहस्त्र नाम वर्णित हैं। अच्चुत! पहले देवेश्वर ब्रह्माजीने महादेवजीकी कृपासे महात्मा तण्डिके निकट जिन नामोंका वर्णन किया था, महर्षि तण्डिने भगवान महादेवके उन्हीं समस्त गोपनीय नामोंका मेरे समक्ष प्रतिपादन किया था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्वके अन्तर्गत दानधर्मपर्व में मेघवाहनपर्वकी कथविषयक सोलहवां अध्याय पूरा हुआ।


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