"महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 33 श्लोक 58-63" के अवतरणों में अंतर
[अनिरीक्षित अवतरण] | [अनिरीक्षित अवतरण] |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) ('==त्रयस्त्रिंश (33 ) अध्याय: कर्ण पर्व == <div style="text-align:center; direction: l...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Bharatkhoj (चर्चा | योगदान) छो (Text replace - "भगवान् " to "भगवान ") |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के २ अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति १: | पंक्ति १: | ||
==त्रयस्त्रिंश (33 ) अध्याय: कर्ण पर्व == | ==त्रयस्त्रिंश (33 ) अध्याय: कर्ण पर्व == | ||
− | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: कर्ण पर्व: त्रयस्त्रिंश अध्याय: 58-63 | + | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: कर्ण पर्व: त्रयस्त्रिंश अध्याय: श्लोक 58-63 का हिन्दी अनुवाद</div> |
− | पूजनीय,शुद्ध,प्रलयकाल में सबका संहार करने वाले हैं। आपको रोकना या पराजित करना सर्वथा कठिन है। आप शुक्लवर्ण, ब्रह्म, ब्रह्मचारी, ईशान,अप्रमेय,नियन्ता तथा व्याघ्रचर्ममय वस्त्र धारण करने वाले हैं। आप सदा तपस्या में तत्पर रहने वाले,पिंगलवर्ण,व्रतधारी और कृतिवासा हैं। आपको नमस्कार है। ‘आप कुमार कार्तिकेय के पिता,त्रिनेत्रधारी,उत्तम आयुध धारण करने वाले,शरणागतदःखभंजन तथा ब्रह्मद्रोहियों के समुदाय का विनाश करने वाले हैं। आपका नमस्कार है। ‘आप वनस्पतियों के पालक और मनुष्यों के अधिपति हैं। आप ही गौओं के स्वामी और सदा यज्ञों के अधीश्वर हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। ‘सेनापति आप अमिततेजस्वी | + | पूजनीय,शुद्ध,प्रलयकाल में सबका संहार करने वाले हैं। आपको रोकना या पराजित करना सर्वथा कठिन है। आप शुक्लवर्ण, ब्रह्म, ब्रह्मचारी, ईशान,अप्रमेय,नियन्ता तथा व्याघ्रचर्ममय वस्त्र धारण करने वाले हैं। आप सदा तपस्या में तत्पर रहने वाले,पिंगलवर्ण,व्रतधारी और कृतिवासा हैं। आपको नमस्कार है। ‘आप कुमार कार्तिकेय के पिता,त्रिनेत्रधारी,उत्तम आयुध धारण करने वाले,शरणागतदःखभंजन तथा ब्रह्मद्रोहियों के समुदाय का विनाश करने वाले हैं। आपका नमस्कार है। ‘आप वनस्पतियों के पालक और मनुष्यों के अधिपति हैं। आप ही गौओं के स्वामी और सदा यज्ञों के अधीश्वर हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। ‘सेनापति आप अमिततेजस्वी भगवान त्रयम्बक को नमसकार है। देव ! हम मन,वाणी और क्रिया द्वारा आपकी शरण में आये हैं। आप हमें अपनाइये ‘। तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर स्वागत-सत्कार के द्वारा देवताओं को आनन्दित करके कहा- ‘देवगण ! तुम्हारा भय दूर हो जाना चाहिये;बोलो,मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ ? |
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में त्रिपुराख्यान विषयक तैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में त्रिपुराख्यान विषयक तैंतीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
पंक्ति १२: | पंक्ति १२: | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
− | {{महाभारत}} | + | {{सम्पूर्ण महाभारत}} |
[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत कर्णपर्व]] | [[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत कर्णपर्व]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
१२:१३, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
त्रयस्त्रिंश (33 ) अध्याय: कर्ण पर्व
पूजनीय,शुद्ध,प्रलयकाल में सबका संहार करने वाले हैं। आपको रोकना या पराजित करना सर्वथा कठिन है। आप शुक्लवर्ण, ब्रह्म, ब्रह्मचारी, ईशान,अप्रमेय,नियन्ता तथा व्याघ्रचर्ममय वस्त्र धारण करने वाले हैं। आप सदा तपस्या में तत्पर रहने वाले,पिंगलवर्ण,व्रतधारी और कृतिवासा हैं। आपको नमस्कार है। ‘आप कुमार कार्तिकेय के पिता,त्रिनेत्रधारी,उत्तम आयुध धारण करने वाले,शरणागतदःखभंजन तथा ब्रह्मद्रोहियों के समुदाय का विनाश करने वाले हैं। आपका नमस्कार है। ‘आप वनस्पतियों के पालक और मनुष्यों के अधिपति हैं। आप ही गौओं के स्वामी और सदा यज्ञों के अधीश्वर हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। ‘सेनापति आप अमिततेजस्वी भगवान त्रयम्बक को नमसकार है। देव ! हम मन,वाणी और क्रिया द्वारा आपकी शरण में आये हैं। आप हमें अपनाइये ‘। तब भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर स्वागत-सत्कार के द्वारा देवताओं को आनन्दित करके कहा- ‘देवगण ! तुम्हारा भय दूर हो जाना चाहिये;बोलो,मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ ?
« पीछे | आगे » |