"श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 12 श्लोक 42-44": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध:  द्वादशोऽध्यायः श्लोक 42-44 का हिन्दी अनुवाद </div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध:  द्वादशोऽध्यायः श्लोक 42-44 का हिन्दी अनुवाद </div>
महायोगी गुरुदेव! मुझे इस आश्चर्यपूर्ण रहस्य को जानने के लिए बड़ा कौतूहल हो रहा है। आप कृपा करके बतलाइये। अवश्य ही इसमें भगवान् श्रीकृष्ण की विचित्र घटनाओं को घटित करनेवाली माया का कुछ-न-कुछ काम होगा। क्योंकि और किसी प्रकार ऐसा नहीं हो सकता । गुरुदेव! यद्यपि क्षत्रियोचित धर्म ब्राम्हण सेवा से विमुख होने के कारण मैं अपराधी नाममात्र का क्षत्रिय हूँ, तथापि हमारा अहोभाग्य है कि हम आपके मुखारविन्द से निरन्तर झरते हुए परम पवित्र मधुमय श्रीकृष्णलीलामृत का बार-बार पान कर रहे हैं ।
महायोगी गुरुदेव! मुझे इस आश्चर्यपूर्ण रहस्य को जानने के लिए बड़ा कौतूहल हो रहा है। आप कृपा करके बतलाइये। अवश्य ही इसमें भगवान  श्रीकृष्ण की विचित्र घटनाओं को घटित करनेवाली माया का कुछ-न-कुछ काम होगा। क्योंकि और किसी प्रकार ऐसा नहीं हो सकता । गुरुदेव! यद्यपि क्षत्रियोचित धर्म ब्राम्हण सेवा से विमुख होने के कारण मैं अपराधी नाममात्र का क्षत्रिय हूँ, तथापि हमारा अहोभाग्य है कि हम आपके मुखारविन्द से निरन्तर झरते हुए परम पवित्र मधुमय श्रीकृष्णलीलामृत का बार-बार पान कर रहे हैं ।


सूतजी कहते हैं—भगवान् के परम प्रेमी भक्तों में श्रेष्ठ शौनकजी! जब राजा परीक्षित् ने इस प्रकार प्रश्न किया, तब श्रीशुकदेवजी को भगवान् की वह लीला स्मरण हो आयी और उनकी समस्त इन्द्रियाँ तथा अंतःकरण विवश होकर भगवान् की नित्यलीला एन खिंच गये। कुछ समय के बाद धीरे-धीरे श्रम और कष्ट से उन्हें बाह्यज्ञान हुआ। तब वे परीक्षित् से भगवान् की लीला का वर्णन करने लगे ।
सूतजी कहते हैं—भगवान  के परम प्रेमी भक्तों में श्रेष्ठ शौनकजी! जब राजा परीक्षित् ने इस प्रकार प्रश्न किया, तब श्रीशुकदेवजी को भगवान  की वह लीला स्मरण हो आयी और उनकी समस्त इन्द्रियाँ तथा अंतःकरण विवश होकर भगवान  की नित्यलीला एन खिंच गये। कुछ समय के बाद धीरे-धीरे श्रम और कष्ट से उन्हें बाह्यज्ञान हुआ। तब वे परीक्षित् से भगवान  की लीला का वर्णन करने लगे ।


{{लेख क्रम |पिछला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 12 श्लोक 33-41|अगला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 13 श्लोक 1-11}}
{{लेख क्रम |पिछला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 12 श्लोक 33-41|अगला=श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 13 श्लोक 1-11}}

१२:३३, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

दशम स्कन्ध: द्वादशोऽध्यायः(12) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: द्वादशोऽध्यायः श्लोक 42-44 का हिन्दी अनुवाद

महायोगी गुरुदेव! मुझे इस आश्चर्यपूर्ण रहस्य को जानने के लिए बड़ा कौतूहल हो रहा है। आप कृपा करके बतलाइये। अवश्य ही इसमें भगवान श्रीकृष्ण की विचित्र घटनाओं को घटित करनेवाली माया का कुछ-न-कुछ काम होगा। क्योंकि और किसी प्रकार ऐसा नहीं हो सकता । गुरुदेव! यद्यपि क्षत्रियोचित धर्म ब्राम्हण सेवा से विमुख होने के कारण मैं अपराधी नाममात्र का क्षत्रिय हूँ, तथापि हमारा अहोभाग्य है कि हम आपके मुखारविन्द से निरन्तर झरते हुए परम पवित्र मधुमय श्रीकृष्णलीलामृत का बार-बार पान कर रहे हैं ।

सूतजी कहते हैं—भगवान के परम प्रेमी भक्तों में श्रेष्ठ शौनकजी! जब राजा परीक्षित् ने इस प्रकार प्रश्न किया, तब श्रीशुकदेवजी को भगवान की वह लीला स्मरण हो आयी और उनकी समस्त इन्द्रियाँ तथा अंतःकरण विवश होकर भगवान की नित्यलीला एन खिंच गये। कुछ समय के बाद धीरे-धीरे श्रम और कष्ट से उन्हें बाह्यज्ञान हुआ। तब वे परीक्षित् से भगवान की लीला का वर्णन करने लगे ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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