"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 58 श्लोक 20-33": अवतरणों में अंतर

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अष्टपञ्चाशत्तम (58) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासन पर्व: अष्टपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 20-33 का हिन्दी अनुवाद

बन्धुओं। तिल का दान करो, जल-दान करो, दीप-दान करो, सदा धर्म के लिये सजग रहो तथा कुटम्बीजनों के साथ सर्वदा धर्म पालन पूर्वक रहकर आनन्द का अनुभव करो। मृत्यु के बाद इन सत कर्मों से परलोक में अत्यन्त दुर्लभ फल की प्राप्ति होती है।।पुरूषसिंह। जल दान सब दानों से महान और समस्त दानों से बढकर है। अतः उसका दान अवश्‍य करना चाहिये। इस प्रकार यह मैंने तालाब बनवाने के उत्तम फल का वर्णन किया है। इसके बाद वृक्ष लगवाने का महात्म्य बतलाऊंगा। स्थावर भूतों की छः जातियां बतायी गयी हैं- वृक्ष (बड़-पीपल आदि), गुल्म (कुश आदि) लता (वृक्ष पर फैलने वाली बेल), वल्ली (जमीन पर फैलने वाली बेल), व्वक्सार (बांस आदि) और तृण (घास आदि)। ये वृक्षों की जातियां हैं। अब इनके लगाने से जो लाभ हैं, वे यहां बताये जाते हैं। वृक्ष लगाने वाले मनुष्य की इस लोक में कीर्ति बनी रहती है और मरने के बाद उसे उत्तम शुभ फल की प्राप्ति होती है। संसार में उसका नाम होता है, परलोक में पितर उसका सम्मान करते हैं तथा देवलोक में चले जाने पर भी यहां उसका नाम नष्ट नहीं होता है । भरतनन्दन। वृक्ष लगाने वाला पुरूष अपने मरे हुए पूर्वजों और भविष्य में होने वाली संतानों का तथा पितृकुल का भी उद्वार कर देता है, इसलिये वृक्षों को अवश्‍य लगाना चहिये। जो वृक्ष लगाता है, उसके लिये ये वृक्ष पुत्र रूप होते हैं, इसमें संशय नहीं है। उन्हीं के कारण परलोक में जाने पर उसे स्वर्ग तथा अक्षय लोक प्राप्त होते हैं। तात्। वृक्षगण अपने फूलों से देवताओं की, फलों से पितरों की और छाया से अतिथियों की पूजा करते हैं ।किन्नर, नाग, राक्षस, देवता, गंदर्भ, मनुष्य और ऋषियों के समुदाय- ये सभी वृक्षों का आश्रय लेते हैं।।फूले-फले वृक्ष इस जगत में मनुष्यों को तृप्त करते हैं। जो वृक्ष का दान करता है, उसको वे वृक्ष पुत्र की भांति परलोक में तार देते हैं। इसलिये अपने कल्याण की इच्छा रखने वाले पुरूषों को सदा ही उचित है कि वह अपने खुदवाये हुए लाताब के किनारे अच्छे वृक्ष लगायें और उनका पुत्रों के समान पालन करें; क्योंकि वे वृक्ष धर्म की दृष्टि से पुत्र ही माने गये हैं । जो तालाब बनवाता, वृक्ष लगवाता, यज्ञों का अनुष्ठान करता तथा सत्य बोलता है, ये सभी द्विज स्वर्ग लोक में सम्मानित होते हैं । इसलिये मनुष्य को चाहिये कि वे तालाब खोदाये, बगीचे लगाये, भांति-भांति के यज्ञों का अनुष्ठान करे तथा सदा सत्य बोले ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत अनुशासनपर्व के अन्‍तगर्त दानधर्मपर्वमें च्‍यवन और कुशिका का संवादविषयक अट्ठावनवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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