"महाभारत श्रवण विधि श्लोक 85-105" के अवतरणों में अंतर

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१२:५१, २४ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

महाभारत श्रवण विधि:

महाभारत: श्रवण विधि: श्लोक 85-105 का हिन्दी अनुवाद

कथा वाचकों के सन्‍तुष्‍ट होने पर ही परम उत्‍तम एवं मंगलमयी प्रीति प्राप्‍त होती है । ब्राह्माणों के सन्‍तुष्‍ट होने पर श्रोता के ऊपर समस्‍त देवता प्रसन्‍न होते हैं। इसलिये भरत श्रेष्ठ ! साधु स्‍वभाव के श्रोताओं को चाहिये कि वे न्‍यायपूर्वक ब्राह्मणों का वरण करें तथा उनकी विभिन्‍न प्रकार की समस्‍त इच्‍छाएं पूर्ण करते हुए उनका यथोचित पूजन करें। मनुष्‍यों में श्रेष्‍ठ नरेश्‍वर ! तुम मुझ से जो कुछ पूछ रहे थे, उसके अनुसार यह मैंने महाभारत के सुनने तथा उसके परायण करने की विधि बतलायी है। तुम्‍हे इस पर श्रद्धा करनी चाहिये। राजन नृपश्रेष्‍ठ ! अपने परम कल्‍याण की इच्‍छा रखने वाले श्रोता को महाभारत को सुनने तथा इसका परायण करने के लिये सदा प्रयत्‍न शील रहना चाहिये। प्रतिदिन महाभारत सुने । नित्‍य प्रति महाभारत का पाठ करे। जिसके घर में महाभारत ग्रन्‍थ मौजूद है। विजय उसके हाथ में है। महाभारत परम पवित्र ग्रन्‍थ है। इसमें नाना प्रकार की कथाएं है। देवता भी महाभारत का सेवन करते है। महाभारत परम पद स्‍वरूप है। भरत श्रेष्‍ठ महाभारत सम्‍पूर्ण शास्‍त्रों में उत्‍तम है। महाभारत से मोक्ष प्राप्‍त होता है। यह मैं तुम से सच्‍ची बात बता रहा हूं। महाभारत नामक इतिहास, प्रथ्‍वी, गौ सरस्‍वती, ब्राह्मण और भगवान श्रीकृष्‍ण का कीर्तन करने वाला मनुष्‍य कभी विपत्ति में नही पड़ता। भरतश्रेष्‍ठ ! वेद, रामायण तथा पवित्र महाभारत के आदि, मध्‍यम एवं अन्‍त में सर्वत्र भगवान श्री हरि का ही गान किया जाता है। जहां भगवान विष्‍णु की दिव्‍य कथाओं तथा सनातन श्रुतियों का समावेश है उस महाभारत का इस जगत में परम पदक की इच्‍छा रखने वाले अवश्‍य श्रवण करना चाहिये। यह महाभारत परम पवित्र है यह धर्म के स्‍वरूप का साक्षात्‍कार करने वाला है तथा यह समस्‍त उत्‍तम गुणो से सम्‍पन्‍न है अपना कल्‍याण चाहने वाले पुरूषों को इसका श्रवण अवश्‍य करना चाहिये। महाभारत श्रवण शरीर, वाणी और मन के द्वारा सच्चित किये हुए सारे पाप वैसे ही नष्‍ट हो जाते है जैसे सूर्य उदय होने पर अन्‍धकार। अठारह पुराणों के सुनने से जो फल होता है वह सारा फल वैष्‍णव पुरूषों को अकेले महाभारत के श्रवण से मिल जाता है इसमें संशय नही है। स्त्रियां हो या पुरूष, सभी इसके श्रवण से भगवान विष्‍णु के धाम को चले जाते है। पुत्र की कामना रखने वाली स्त्रियों के भगवान विष्‍णु के यश स्‍वरूप इस महाभारत का श्रवण अवश्‍य करना चाहिये। शास्‍त्रोक्‍त फल की इच्‍छा रखने वाले पुरूषों को चाहिये की वह महाभारत- श्रवण के पश्‍चात वाचकों को यथा शक्ति सोने के पांच सिक्‍के दक्षिणा के रूप में दान करें। अपना कल्‍याण चाहने वाले पुरूषों को उचित है कि वह कपिला गौ के सींगों में सोना मढ़ाकर उसे वस्‍त्र से आच्‍छादित करके बछड़े सहित वाचक को दान दें। भरत श्रेष्‍ठ ! इसके शिवा कथा वाचक के लिये दोनों हाथों के कडे़, कानों के कुण्‍डल और विशेषत: धन प्राप्‍त करे। नरेश्रश्‍वर ! वाचक के लिये भूमि दान तो अवश्‍य ही करना चाहिये; क्‍योंकि भूमिदान के समान दूसरा कोई दान नही हुआ है, न होगा। जो मनुष्‍य सदा महाभारत को सुनता अथवा सुनाता रहा है। वह सब पापों से मुक्‍त हो कर भगवान धाम को जाता है। भरतश्रेष्‍ठ ! वह पुरूष अपनी ग्‍यारह पीढ़ी में समस्‍त पितरों का, अपना तथा अपनी स्‍त्री और पुत्र का भी उद्वार कर देता है। नरेश्‍वर ! महाभारत सुनने के बाद उसके लिये दशांश होम भी करना आवश्‍यक है। नरश्रेष्‍ठ ! इस प्रकार मैंनें तुम्‍हारे समक्ष इन सब बातों का विस्‍तार के साथ वर्णन कर दिया।

इस प्रकार व्‍यास निर्मित श्री महाभारत शत साहस्‍त्री संहिता में हरि वंशोक्‍त भारत श्रवण विधि विषयक अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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