"महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 75 श्लोक 14-17": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संकुलद्वन्द युद्ध विषयक पचहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संकुलद्वन्द युद्ध विषयक पचहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div> | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== |
०७:०८, १७ सितम्बर २०१५ का अवतरण
पंचसप्ततितम (75) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: शान्ति पर्व: पंचसप्ततितम अध्याय: श्लोक 14-17 का हिन्दी अनुवाद
सुषेण के मस्तक को पृथ्वी पर पड़ा देख कर्ण शोक से आतुर हो उठा। उसने कुपित हो उत्तम धारवाले पैने बाणों से उत्तमौजा के रथ, ध्वज और घोड़ों को काट डाला। तब उत्तमौजा ने तीखे बाणों से कर्ण को बींध ड़ाला और (जब कृपाचार्य ने बाधा दी तब) चमचमाती हुई तलवार से कृपाचार्य के पृष्ठरक्षकों और घोड़ों को मारकर वह शिखण्डी के रथ पर आरूढ़ हो गया। कृपाचार्य को रथहीन देख रथ पर बैठे हुए शिखण्डी ने उन पर बाणों से आघात करने की इच्छा नहीं की । तब अश्वत्थामा ने शिखण्डी को रोककर कीचड़ में फँसी हुई गाय के समान कृपाचार्य के रथ का उद्धार किया। जैसे आषाढ़ में दोपहर का सूर्य अत्यन्त ताप प्रदान करता है, उसी प्रकार सुवर्ण कवचधारी वायुपुत्र भीमसेन आपके पुत्रों की सेना को तीखे बाणों द्वारा अधिक संताप देने लगे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संकुलद्वन्द युद्ध विषयक पचहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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