"पृथ्वीराज कपूर": अवतरणों में अंतर

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==कलाकार के रूप में==
==कलाकार के रूप में==
लायलपुर के खालसा कॉलेज से १६ वर्ष की वय में पृथ्वीराज ने प्रथम श्रेणी से हाई स्कूल पास किया और एफ़.ए. तथा बी.ए . परीक्षाएँ पेशावर के एडवर्ड्‌स कालेज से उत्तीर्ण की। कानून पढ़ने के लिए जब वे लाहौर आए तो प्रोफ़ेसर जयदायल की प्रेरणा से उनमें रंगकला का आकर्षण प्रबल होने लगा। कानून की पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में काम करने के लिए उद्देश्य से वे कलकत्ता गए किंतु वहाँ काम नहीं पा सके और उन्हें बंबई आना पड़ा। अवैतनिक एक्स्ट्रा कलाकार के रूप में एक फिल्म में काम मिला किंतु दूसरी ही फिल्म में मिस एरमिलिन के साथ नायक का काम करने का अवसर मिल गया। उन्होंने कई अवाक्‌ चित्रपटों में भी काम किया। कुल जोड़कर उन्होंने लगभग २०० फिल्मों में कार्य किया जिनमें प्रमुख है-राजरानी, मीरा, सीता, विद्यापति, आफ़्टर दि अर्थक्वेक, मंजिल, पागल, सिकंदर, मुगल-ए-आजम और वाल्मीकि आदि। प्रथम भारतीय सवाक्‌ चित्रपट 'आलमआरा' में भी उन्होंने नायक का काम किया था।
लायलपुर के खालसा कॉलेज से १६ वर्ष की वय में पृथ्वीराज ने प्रथम श्रेणी से हाई स्कूल पास किया और एफ़.ए. तथा बी.ए . परीक्षाएँ पेशावर के एडवर्ड्‌स कालेज से उत्तीर्ण की। कानून पढ़ने के लिए जब वे लाहौर आए तो प्रोफ़ेसर जयदायल की प्रेरणा से उनमें रंगकला का आकर्षण प्रबल होने लगा। कानून की पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में काम करने के लिए उद्देश्य से वे कलकत्ता गए किंतु वहाँ काम नहीं पा सके और उन्हें बंबई आना पड़ा। अवैतनिक एक्स्ट्रा कलाकार के रूप में एक फिल्म में काम मिला किंतु दूसरी ही फिल्म में मिस एरमिलिन के साथ नायक का काम करने का अवसर मिल गया। उन्होंने कई अवाक्‌ चित्रपटों में भी काम किया। कुल जोड़कर उन्होंने लगभग २०० फिल्मों में कार्य किया जिनमें प्रमुख है-राजरानी, मीरा, सीता, विद्यापति, आफ़्टर दि अर्थक्वेक, मंजिल, पागल, सिकंदर, मुगल-ए-आजम और वाल्मीकि आदि। प्रथम भारतीय सवाक्‌ चित्रपट 'आलमआरा' में भी उन्होंने नायक का काम किया था।
==थिएटर्स का निर्माण==
==रंगमंच का निर्माण==
पृथ्वी थिएटर्स का निर्माण और उसके द्वारा हिंदी रंगमंच की सेवा पृथ्वीराज कपूर के जीवन का सबसे बड़ा कार्य था। बंबई में कुछ नवयुवक 'शंकुतला' खेलना चाहते थे, पृथ्वीराज निर्देशन कर रहे थे, काम बहुत आगे बढ़ चुका था तभी वे नवयुवक आपस में लड़ पड़े और नाटक खेलने की योजना ठप होने लगी। यह १४ जनवरी, १९४४ का दिन था। अपने परिश्रम को व्यर्थ जाता देखकर पृथ्वीराज ने निश्चय किया कि नाटक अवश्य होगा। किंतु उसके लिए पैसे कहाँ से आएँ? स्वयं तो उस समय केवल ७० रु. मासिक वेतन पाते थे। सौभाग्य वे देना बैंक के डारेक्टर पृथ्वीराज के अनुरोध पर सहायता के लिए आगे आए और १५ जनवरी, १९४४ को पृथ्वी थिएटर्स नामक संस्था का जन्म हुआ। इसके अंतर्गत पहला नाटक शकुंतला ही खेला गया। पृथ्वीराज दुष्यंत बने थे किंतु बाद में इसका प्रदर्शन छोड़ दिया गया। तत्पश्चात्‌ सामयिक स्थितियों पर लिखित और अभिनीत नाटकों यथा दीवार, पठान, गद्दार, आहुति, पैसा, कलाकार और किसान ने देश के कोने-कोने में रंगमंच जगत्‌ में क्रांति पैदा कर दी। सबमें पृथ्वीराज की प्रधान भूमिका होती थी। अत्यधिक घाटा उठाकर भी १६ वर्ष तक उन्होंने अपना थिएटर चलाया। इस अवधि में वह अपना थिएटर लेकर १३० स्थानों में घूमे और २,६६२ बार अपने नाटकों में अभिनय किया। सन्‌ १९६० में स्वरनलिका में रोग हो जाने के कारण तथा अर्थाभाव न सह सकने के कारण उन्हें थिएटर बंद कर देना पड़ा और इस प्रकार १५० त्यागी कलाकारों का परिवार बिखर गया।
पृथ्वी थिएटर्स का निर्माण और उसके द्वारा हिंदी रंगमंच की सेवा पृथ्वीराज कपूर के जीवन का सबसे बड़ा कार्य था। बंबई में कुछ नवयुवक 'शंकुतला' खेलना चाहते थे, पृथ्वीराज निर्देशन कर रहे थे, काम बहुत आगे बढ़ चुका था तभी वे नवयुवक आपस में लड़ पड़े और नाटक खेलने की योजना ठप होने लगी। यह १४ जनवरी, १९४४ का दिन था। अपने परिश्रम को व्यर्थ जाता देखकर पृथ्वीराज ने निश्चय किया कि नाटक अवश्य होगा। किंतु उसके लिए पैसे कहाँ से आएँ? स्वयं तो उस समय केवल ७० रु. मासिक वेतन पाते थे। सौभाग्य वे देना बैंक के डारेक्टर पृथ्वीराज के अनुरोध पर सहायता के लिए आगे आए और १५ जनवरी, १९४४ को पृथ्वी थिएटर्स नामक संस्था का जन्म हुआ। इसके अंतर्गत पहला नाटक शकुंतला ही खेला गया। पृथ्वीराज दुष्यंत बने थे किंतु बाद में इसका प्रदर्शन छोड़ दिया गया। तत्पश्चात्‌ सामयिक स्थितियों पर लिखित और अभिनीत नाटकों यथा दीवार, पठान, गद्दार, आहुति, पैसा, कलाकार और किसान ने देश के कोने-कोने में रंगमंच जगत्‌ में क्रांति पैदा कर दी। सबमें पृथ्वीराज की प्रधान भूमिका होती थी। अत्यधिक घाटा उठाकर भी १६ वर्ष तक उन्होंने अपना थिएटर चलाया। इस अवधि में वह अपना थिएटर लेकर १३० स्थानों में घूमे और २,६६२ बार अपने नाटकों में अभिनय किया। सन्‌ १९६० में स्वरनलिका में रोग हो जाने के कारण तथा अर्थाभाव न सह सकने के कारण उन्हें थिएटर बंद कर देना पड़ा और इस प्रकार १५० त्यागी कलाकारों का परिवार बिखर गया।
==पुरस्कार==
==पुरस्कार==
महात्मा गांधी ने उनके नाटक 'दीवार' पर जो हिंदू-मुस्लिम-विभाजन पर आधारित था, खेलने के पूर्व, अपना आशीर्वाद दिया था तथा पं. जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल उनकी अभिनयकला के बड़े प्रशसंक थे। उन्हें नाट्याचार्य की उपाधि प्राप्ति थी और भारत सरकार ने पद्मभूषण अलंकार प्रदान किया था।
महात्मा गांधी ने उनके नाटक 'दीवार' पर जो हिंदू-मुस्लिम-विभाजन पर आधारित था, खेलने के पूर्व, अपना आशीर्वाद दिया था तथा पं. जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल उनकी अभिनयकला के बड़े प्रशसंक थे। उन्हें नाट्याचार्य की उपाधि प्राप्ति थी और भारत सरकार ने पद्मभूषण अलंकार प्रदान किया था।

११:२७, ३ सितम्बर २०११ का अवतरण

लेख सूचना
पृथ्वीराज कपूर
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 401
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1975 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक सदगोपाल

पृथ्वीराज कपूर प्रख्यात भारतीय अभिनेता थे। इनका जन्म पश्चिम पंजाब के लायलपुर की तहसील समुद्री में ३ नवंबर, १९०६ ई. को एक खत्री परिवार में हुआ। दादा तहसीलदार थे तथा पिता पुलिस इंस्पेक्टर। बचपन से ही व्यायाम और खेलकूद आदि के कारण शरीर अत्यंत स्वस्थ और डीलडौल मनोमुग्धकारी था। पृथ्वीराज में नाट्यकला के बीज अत्यल्प वय से ही अंकुरित होने लगे। आठ वर्ष की वय में समुद्री के मिडिल सकूल में पढ़ते समय ही स्थानीय रामलीला मंडली द्वारा अभिनीत नाटक 'सत्य हरिश्चंद्र' में एक अत्यंत छोटी भूमिका का निर्वाह इतने सुंदर ढंग से किया कि एक दर्शक ने तुरंत ही एक रुपया पुरस्कार दिया। उस समय के लिए यह बहुत बड़ी बात थी। उसी समय के लगभग पृथ्वीराज ने एक और क्रांतिकारी कार्य किया। रामलीला मंडली के संचालकों में मतभेद हो जाने के कारण जब मंडली टूटने लगी तब स्वयं उसकी बागडोर सँभाली और राम की भूमिका स्वयं करते हुए लक्ष्मण अपने एक मुसलमान मित्र को बनाया। हिंदू जनता ने बहुत विरोध किया किंतु पृथ्वीराज अपने निश्चय पर अडिग रहे और रामलीला की सफलता देखते हुए जनता ने भी अपना विरोध क्रमश: बंद कर दिया।

कलाकार के रूप में

लायलपुर के खालसा कॉलेज से १६ वर्ष की वय में पृथ्वीराज ने प्रथम श्रेणी से हाई स्कूल पास किया और एफ़.ए. तथा बी.ए . परीक्षाएँ पेशावर के एडवर्ड्‌स कालेज से उत्तीर्ण की। कानून पढ़ने के लिए जब वे लाहौर आए तो प्रोफ़ेसर जयदायल की प्रेरणा से उनमें रंगकला का आकर्षण प्रबल होने लगा। कानून की पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में काम करने के लिए उद्देश्य से वे कलकत्ता गए किंतु वहाँ काम नहीं पा सके और उन्हें बंबई आना पड़ा। अवैतनिक एक्स्ट्रा कलाकार के रूप में एक फिल्म में काम मिला किंतु दूसरी ही फिल्म में मिस एरमिलिन के साथ नायक का काम करने का अवसर मिल गया। उन्होंने कई अवाक्‌ चित्रपटों में भी काम किया। कुल जोड़कर उन्होंने लगभग २०० फिल्मों में कार्य किया जिनमें प्रमुख है-राजरानी, मीरा, सीता, विद्यापति, आफ़्टर दि अर्थक्वेक, मंजिल, पागल, सिकंदर, मुगल-ए-आजम और वाल्मीकि आदि। प्रथम भारतीय सवाक्‌ चित्रपट 'आलमआरा' में भी उन्होंने नायक का काम किया था।

रंगमंच का निर्माण

पृथ्वी थिएटर्स का निर्माण और उसके द्वारा हिंदी रंगमंच की सेवा पृथ्वीराज कपूर के जीवन का सबसे बड़ा कार्य था। बंबई में कुछ नवयुवक 'शंकुतला' खेलना चाहते थे, पृथ्वीराज निर्देशन कर रहे थे, काम बहुत आगे बढ़ चुका था तभी वे नवयुवक आपस में लड़ पड़े और नाटक खेलने की योजना ठप होने लगी। यह १४ जनवरी, १९४४ का दिन था। अपने परिश्रम को व्यर्थ जाता देखकर पृथ्वीराज ने निश्चय किया कि नाटक अवश्य होगा। किंतु उसके लिए पैसे कहाँ से आएँ? स्वयं तो उस समय केवल ७० रु. मासिक वेतन पाते थे। सौभाग्य वे देना बैंक के डारेक्टर पृथ्वीराज के अनुरोध पर सहायता के लिए आगे आए और १५ जनवरी, १९४४ को पृथ्वी थिएटर्स नामक संस्था का जन्म हुआ। इसके अंतर्गत पहला नाटक शकुंतला ही खेला गया। पृथ्वीराज दुष्यंत बने थे किंतु बाद में इसका प्रदर्शन छोड़ दिया गया। तत्पश्चात्‌ सामयिक स्थितियों पर लिखित और अभिनीत नाटकों यथा दीवार, पठान, गद्दार, आहुति, पैसा, कलाकार और किसान ने देश के कोने-कोने में रंगमंच जगत्‌ में क्रांति पैदा कर दी। सबमें पृथ्वीराज की प्रधान भूमिका होती थी। अत्यधिक घाटा उठाकर भी १६ वर्ष तक उन्होंने अपना थिएटर चलाया। इस अवधि में वह अपना थिएटर लेकर १३० स्थानों में घूमे और २,६६२ बार अपने नाटकों में अभिनय किया। सन्‌ १९६० में स्वरनलिका में रोग हो जाने के कारण तथा अर्थाभाव न सह सकने के कारण उन्हें थिएटर बंद कर देना पड़ा और इस प्रकार १५० त्यागी कलाकारों का परिवार बिखर गया।

पुरस्कार

महात्मा गांधी ने उनके नाटक 'दीवार' पर जो हिंदू-मुस्लिम-विभाजन पर आधारित था, खेलने के पूर्व, अपना आशीर्वाद दिया था तथा पं. जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल उनकी अभिनयकला के बड़े प्रशसंक थे। उन्हें नाट्याचार्य की उपाधि प्राप्ति थी और भारत सरकार ने पद्मभूषण अलंकार प्रदान किया था।

संस्थाओं की सहायता

पृथ्वीराज ने अपने थिएटर द्वारा चंदा करके लगभग १०-१२ लाख रुपए देश की अन्य संस्थाओं को सहायता रूप में दिए। चार वर्ष तक केंद्रीय रेलवे मजदूर यूनियन के अध्यक्ष रहे। १९५१ में वे भारत के प्रतिनिधि के रूप में अखिल-विश्व-शांति-सम्मेलन में वियना भेजे गए थे। १९५२ और १९५४ में राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के सदस्य मनोनीत किए थे। १९५४ में ही उन्होंने चीन जाने वाले भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व किया था तथा १९५६ में भारतीय सांस्कृतिक शिष्टमंडल के नेता के रूप में दक्षिण पूर्वी एशिया गए थे।

निधन

पृथ्वीराज कपूर का निधन ६६ वर्ष की आयु में २९ मई, १९७२ को बंबई में हुआ। हिंदी रंगमंच पर अपनी कला में वे अद्वय थे।

टीका टिप्पणी और संदर्भ