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|पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
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किरातमंडल आकाश का एक तारामंडल है, क्योंकि इसके अधिकतर तारे बहुत चमकदार हैं। इसके चार मुख्य तारे एक चौकोन सा बनाते है। ऊपर के दो तारे किरात के कंधे पर माने जाते है और नीचे के दो तारे उसकी जंघा पर। इस चौकोन के बीच में तीन तारे, जो बेंड़े बेड़े हैं, इसकी पेटी पर माने जाते हैं। पेटी के नीचे तीन तारे खड़ी रेखा में हैं जो किरात की तलवार पर हैं। इनके अतिरिक्त दाहिनी ओर मंद प्रकाशवाले तारों की एकखड़ी कतार है जो सिंह की खाल मानी जाती है और बाईं ओर कंधे के ऊपर कुछ तारे है जो किरात की गदा माने जाते हैं (ये दोनों चित्र में नहीं दिखाए गए हैं)। तीन तारे इसके सिर पर हैं।
किरातमंडल आकाश का एक तारामंडल है, क्योंकि इसके अधिकतर तारे बहुत चमकदार हैं। इसके चार मुख्य तारे एक चौकोन सा बनाते है। ऊपर के दो तारे किरात के कंधे पर माने जाते है और नीचे के दो तारे उसकी जंघा पर। इस चौकोन के बीच में तीन तारे, जो बेंड़े बेड़े हैं, इसकी पेटी पर माने जाते हैं। पेटी के नीचे तीन तारे खड़ी रेखा में हैं जो किरात की तलवार पर हैं। इनके अतिरिक्त दाहिनी ओर मंद प्रकाशवाले तारों की एकखड़ी कतार है जो सिंह की खाल मानी जाती है और बाईं ओर कंधे के ऊपर कुछ तारे है जो किरात की गदा माने जाते हैं (ये दोनों चित्र में नहीं दिखाए गए हैं)। तीन तारे इसके सिर पर हैं।


चौकोन के ऊपरी बाएँ कोने का तारा बीटेलजूज़ (Betelgeuse) है। यह प्रथम श्रेणी का ललंछौंह रंग का तारा है। पृथ्वी से यह लगभग ३०० प्रकाश वर्ष दूर है। बीटेलजूज़ परिवर्तन तारा है, जिसका प्रकाश घटता बढ़ता रहता है (.से 1.श्रेणी तक)। यह प्रथम तारा है जिसका व्यास सन्‌ 1९२० में माउंट विलसन के 1०० इंच के दूरदर्शी से माइकेलसन ध्वनिक व्यतिकरणमापी (Interferometer) के सिद्धांत द्वारा ज्ञात किया गया था। इसका व्यास २५ लाख मील से ४० लाख तक घटता बढ़ता रहता है। यह तारा इतना बड़ा है कि इसके केंद्र पर यदि सूर्य रखा जाए तो पृथ्वी और मंगल दोनों इस तारे के भीतर ही परिक्रमा करेंगे। किंतु इस तारे का द्रव्यमान बहुत अधिक नहीं है और इसका औसत घनत्व बहुत ही कम है ( वायु के घनत्व का हजारवाँ भाग)।
चौकोन के ऊपरी बाएँ कोने का तारा बीटेलजूज़ (Betelgeuse) है। यह प्रथम श्रेणी का ललंछौंह रंग का तारा है। पृथ्वी से यह लगभग 300 प्रकाश वर्ष दूर है। बीटेलजूज़ परिवर्तन तारा है, जिसका प्रकाश घटता बढ़ता रहता है (0.4 से 1.3 श्रेणी तक)। यह प्रथम तारा है जिसका व्यास सन्‌ 1920 में माउंट विलसन के 100 इंच के दूरदर्शी से माइकेलसन ध्वनिक व्यतिकरणमापी (Interferometer) के सिद्धांत द्वारा ज्ञात किया गया था। इसका व्यास 25 लाख मील से 40 लाख तक घटता बढ़ता रहता है। यह तारा इतना बड़ा है कि इसके केंद्र पर यदि सूर्य रखा जाए तो पृथ्वी और मंगल दोनों इस तारे के भीतर ही परिक्रमा करेंगे। किंतु इस तारे का द्रव्यमान बहुत अधिक नहीं है और इसका औसत घनत्व बहुत ही कम है ( वायु के घनत्व का हजारवाँ भाग)।


बीटेलजूज़ से विपरीत कोने पर रीजेल तारा है। यह सफेद रंग का तारा बीटेलजूज़ से अधिक चमकदार है। इसका श्रेणी .है। इसके वर्णपट से पता चलता है कि यह युग्म तारा है। यह पृथ्वी से ५४० प्रकाश वर्ष दूर है। चौकोन के शेष दोनों तारे बेलाट्रिक्स और सफ़ द्वितीय श्रेणी के हैं। पेटी पर के तीनों तारे भी द्वितीय श्रेणी के हैं। इनमें से पश्चिमी सिरे का तारा युग्म हैं।
बीटेलजूज़ से विपरीत कोने पर रीजेल तारा है। यह सफेद रंग का तारा बीटेलजूज़ से अधिक चमकदार है। इसका श्रेणी 0.3 है। इसके वर्णपट से पता चलता है कि यह युग्म तारा है। यह पृथ्वी से 540 प्रकाश वर्ष दूर है। चौकोन के शेष दोनों तारे बेलाट्रिक्स और सफ़ द्वितीय श्रेणी के हैं। पेटी पर के तीनों तारे भी द्वितीय श्रेणी के हैं। इनमें से पश्चिमी सिरे का तारा युग्म हैं।


==किरात नाहारिका (M 42)==
==किरात नाहारिका (M 42)==
किरात की तलवार पर के तीन तारों में बीच कर तारा वस्तुत: तारा नहीं, बल्कि एक नीहारिका हैं। दूरदर्शी से देखने पर यह प्रज्वलित गैस के रूप में दिखाई पड़ती है। नीहारिका इतना बड़ा है कि साधारण दूरदर्शी से भी इसके प्रसार का अनुमान लग जाता हैं। यह नीहारिका गैस का बादल है, जो इसमें छिपे तारों के प्रकाश से प्रज्वलित हैं। ये तारे इतने ऊँचे ताप के है कि इस बादल के कण उद्रीप्त होकर स्वयं प्रकाश देने लगते हैं। इसके वर्णपट मे हाइड्रोजन, आयनाकृत आक्सिजन और हालियम की रेखाएँ प्रमुख है। इस प्रज्वलित नीहारिका मेे कुछ ऐसे रिक्त स्थान भी है जहां न तो कोई अपना प्रकाश है न किसी तारे का। ये काली नीहारिकाएँ हैं। ये भी गैस के बादल से बनी है, किंतु पास में कोई तारा न होने के कारण प्रज्वलित नहीं है। इसके विपरित दूर से आनेवाले तारों के प्रकाश को भी ये रोक लेती हैं। किरातमंडल की नीहारिका पृथ्वी से लगभग ५०० प्रकाश वर्ष दूर है।
किरात की तलवार पर के तीन तारों में बीच कर तारा वस्तुत: तारा नहीं, बल्कि एक नीहारिका हैं। दूरदर्शी से देखने पर यह प्रज्वलित गैस के रूप में दिखाई पड़ती है। नीहारिका इतना बड़ा है कि साधारण दूरदर्शी से भी इसके प्रसार का अनुमान लग जाता हैं। यह नीहारिका गैस का बादल है, जो इसमें छिपे तारों के प्रकाश से प्रज्वलित हैं। ये तारे इतने ऊँचे ताप के है कि इस बादल के कण उद्रीप्त होकर स्वयं प्रकाश देने लगते हैं। इसके वर्णपट मे हाइड्रोजन, आयनाकृत आक्सिजन और हालियम की रेखाएँ प्रमुख है। इस प्रज्वलित नीहारिका मेे कुछ ऐसे रिक्त स्थान भी है जहां न तो कोई अपना प्रकाश है न किसी तारे का। ये काली नीहारिकाएँ हैं। ये भी गैस के बादल से बनी है, किंतु पास में कोई तारा न होने के कारण प्रज्वलित नहीं है। इसके विपरित दूर से आनेवाले तारों के प्रकाश को भी ये रोक लेती हैं। किरातमंडल की नीहारिका पृथ्वी से लगभग 500 प्रकाश वर्ष दूर है।
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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०५:४१, २५ जुलाई २०१८ के समय का अवतरण

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लेख सूचना
किरातमंडल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 11
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक चंद्रिकाप्रसाद

किरातमंडल आकाश में एक तारामंडल है जो सिंह और वृष राशियों के बीच से जरा नीचे है। अंग्रेजी में इसका नाम ओरायन (Orion) है। ग्रीक लोकगाथा के अनुसार ओरायन एक भारी शिकारी था। चंद्रमा की देवी डायना इसे देखकर इसके प्रेम में पड़ गई। डायना के भाई अपोलों ने इस बात से क्रोधित होकर छल द्वारा ओरायन का वध करा दिया। दु:खीत डायना की प्रार्थना से मृत ओरायन को तारों में स्थान मिला। ओरायन के वध की अन्य कथाएँ भी हैं।

किरातमंडल आकाश का एक तारामंडल है, क्योंकि इसके अधिकतर तारे बहुत चमकदार हैं। इसके चार मुख्य तारे एक चौकोन सा बनाते है। ऊपर के दो तारे किरात के कंधे पर माने जाते है और नीचे के दो तारे उसकी जंघा पर। इस चौकोन के बीच में तीन तारे, जो बेंड़े बेड़े हैं, इसकी पेटी पर माने जाते हैं। पेटी के नीचे तीन तारे खड़ी रेखा में हैं जो किरात की तलवार पर हैं। इनके अतिरिक्त दाहिनी ओर मंद प्रकाशवाले तारों की एकखड़ी कतार है जो सिंह की खाल मानी जाती है और बाईं ओर कंधे के ऊपर कुछ तारे है जो किरात की गदा माने जाते हैं (ये दोनों चित्र में नहीं दिखाए गए हैं)। तीन तारे इसके सिर पर हैं।

चौकोन के ऊपरी बाएँ कोने का तारा बीटेलजूज़ (Betelgeuse) है। यह प्रथम श्रेणी का ललंछौंह रंग का तारा है। पृथ्वी से यह लगभग 300 प्रकाश वर्ष दूर है। बीटेलजूज़ परिवर्तन तारा है, जिसका प्रकाश घटता बढ़ता रहता है (0.4 से 1.3 श्रेणी तक)। यह प्रथम तारा है जिसका व्यास सन्‌ 1920 में माउंट विलसन के 100 इंच के दूरदर्शी से माइकेलसन ध्वनिक व्यतिकरणमापी (Interferometer) के सिद्धांत द्वारा ज्ञात किया गया था। इसका व्यास 25 लाख मील से 40 लाख तक घटता बढ़ता रहता है। यह तारा इतना बड़ा है कि इसके केंद्र पर यदि सूर्य रखा जाए तो पृथ्वी और मंगल दोनों इस तारे के भीतर ही परिक्रमा करेंगे। किंतु इस तारे का द्रव्यमान बहुत अधिक नहीं है और इसका औसत घनत्व बहुत ही कम है ( वायु के घनत्व का हजारवाँ भाग)।

बीटेलजूज़ से विपरीत कोने पर रीजेल तारा है। यह सफेद रंग का तारा बीटेलजूज़ से अधिक चमकदार है। इसका श्रेणी 0.3 है। इसके वर्णपट से पता चलता है कि यह युग्म तारा है। यह पृथ्वी से 540 प्रकाश वर्ष दूर है। चौकोन के शेष दोनों तारे बेलाट्रिक्स और सफ़ द्वितीय श्रेणी के हैं। पेटी पर के तीनों तारे भी द्वितीय श्रेणी के हैं। इनमें से पश्चिमी सिरे का तारा युग्म हैं।

किरात नाहारिका (M 42)

किरात की तलवार पर के तीन तारों में बीच कर तारा वस्तुत: तारा नहीं, बल्कि एक नीहारिका हैं। दूरदर्शी से देखने पर यह प्रज्वलित गैस के रूप में दिखाई पड़ती है। नीहारिका इतना बड़ा है कि साधारण दूरदर्शी से भी इसके प्रसार का अनुमान लग जाता हैं। यह नीहारिका गैस का बादल है, जो इसमें छिपे तारों के प्रकाश से प्रज्वलित हैं। ये तारे इतने ऊँचे ताप के है कि इस बादल के कण उद्रीप्त होकर स्वयं प्रकाश देने लगते हैं। इसके वर्णपट मे हाइड्रोजन, आयनाकृत आक्सिजन और हालियम की रेखाएँ प्रमुख है। इस प्रज्वलित नीहारिका मेे कुछ ऐसे रिक्त स्थान भी है जहां न तो कोई अपना प्रकाश है न किसी तारे का। ये काली नीहारिकाएँ हैं। ये भी गैस के बादल से बनी है, किंतु पास में कोई तारा न होने के कारण प्रज्वलित नहीं है। इसके विपरित दूर से आनेवाले तारों के प्रकाश को भी ये रोक लेती हैं। किरातमंडल की नीहारिका पृथ्वी से लगभग 500 प्रकाश वर्ष दूर है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ