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ग्रैनाइट (Granite, कणाशम) शब्द का सर्वप्रथम उपयोग प्राचीन इटालियन संग्रहकर्ताओं ने किया था। रोम के शिल्पकार फ्‌लेमिनियस वेका के एक वर्णन में इसका प्रथम संदर्भ मिलता है। ग्रैनाइट मणिभीय दानेदार शिला है, जिसके प्रमुख अवयव स्फटिक (quartz) और फेल्स्पार (feldspar) हैं। फेल्स्पार साधारणत: पोटाश किस्म का ऑर्थोक्लेस और माइक्रोक्लाइन, (Orthoclase and Microline) होती है, अथवा सोडियम किस्म का प्लैगिओक्लेस (Plagioclase) ऐल्बाइट (Albite) या औलिगोक्लेस (Oligoclase)। स्फटिक साधारणतया वर्णरहित रूप में ही रहता है, पर कभी कभी कुछ नीली आभा रहती है, जिससे ग्रैनाइट का रंग कुछ नीलापन लिए होता है। इसमें अभ्रक, मस्कोवाइट (Muscovite) और बायोटाइट (Biotite) भी अल्प मात्रा में रहते हैं। ग्रैनाइट में मैग्निटाइट (Magnetite), ऐपैटाइट (Apatite), जरकन (Zircon) तथा स्फीन (Sphene) भी बड़े सूक्ष्म मणिभों के रूप में रहते हैं। किसी किसी नमूने में हॉर्नब्लेंड (Hornblende), गार्नेट (Garnet) और तुरमली (Tourmaline) भी पाए गए हैं। इन खनिजों की उपस्थिति के कारण ऐसे ग्रैनाइटों को क्रमश: हौर्नब्लेंड ग्रैनाइट, मस्कावाइट ग्रैनाइट और बयोटाइट ग्रैनाइट भी कहते हैं।
ग्रेनाइट (Granite, कणाशम) शब्द का सर्वप्रथम उपयोग प्राचीन इटालियन संग्रहकर्ताओं ने किया था। रोम के शिल्पकार फ्‌लेमिनियस वेका के एक वर्णन में इसका प्रथम संदर्भ मिलता है। ग्रेनाइट मणिभीय दानेदार शिला है, जिसके प्रमुख अवयव स्फटिक (quartz) और फेल्स्पार (feldspar) हैं। फेल्स्पार साधारणत: पोटाश किस्म का ऑर्थोक्लेस और माइक्रोक्लाइन, (Orthoclase and Microline) होती है, अथवा सोडियम किस्म का प्लैगिओक्लेस (Plagioclase) ऐल्बाइट (Albite) या औलिगोक्लेस (Oligoclase)। स्फटिक साधारणतया वर्णरहित रूप में ही रहता है, पर कभी कभी कुछ नीली आभा रहती है, जिससे ग्रेनाइट का रंग कुछ नीलापन लिए होता है। इसमें अभ्रक, मस्कोवाइट (Muscovite) और बायोटाइट (Biotite) भी अल्प मात्रा में रहते हैं। ग्रेनाइट में मैग्निटाइट (Magnetite), ऐपैटाइट (Apatite), जरकन (Zircon) तथा स्फीन (Sphene) भी बड़े सूक्ष्म मणिभों के रूप में रहते हैं। किसी किसी नमूने में हॉर्नब्लेंड (Hornblende), गार्नेट (Garnet) और तुरमली (Tourmaline) भी पाए गए हैं। इन खनिजों की उपस्थिति के कारण ऐसे ग्रेनाइटों को क्रमश: हौर्नब्लेंड ग्रेनाइट, मस्कावाइट ग्रेनाइट और बयोटाइट ग्रेनाइट भी कहते हैं।


ग्रैनाइट अनेक रंगों का पाया जाता है। पोटाश ग्रैनाइट गुलाबी या लाल रंग का होता है तथ चूना ग्रैनाइट धूसर या श्वेत रंग का। ग्रैनाइट का विशिष्ट घनत्व २.५१ से २.७३ तक होता है।
ग्रेनाइट अनेक रंगों का पाया जाता है। पोटाश ग्रेनाइट गुलाबी या लाल रंग का होता है तथ चूना ग्रेनाइट धूसर या श्वेत रंग का। ग्रेनाइट का विशिष्ट घनत्व २.५१ से २.७३ तक होता है।


ग्रैनाइट के उद्भव के संबंध में वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि इसका उद्भव, द्रव पत्थरों या मैग्मा (Magma) के धीरे धीरे ठंढा होकर ठोस बनने से हुआ है। इनमें से कुछ इसका निर्माण ग्रैनाइट मैग्मा से और कुछ बैसाल्टीय मैग्मा से मानते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का यह विचार है कि पूर्वस्थित शिलाओं के ग्रैनाइट बनाने वाले निर्गमों (emanations) की प्रवरण (selective) क्रिया से, अथवा ग्रैनाइट बनानेवाले अभिकर्मकों द्वारा, जिनको सेडेरहोम (Sederholmn) ने आयकरी नाम दिया है, ग्रैनाइट बने हैं।
ग्रेनाइट के उद्भव के संबंध में वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि इसका उद्भव, द्रव पत्थरों या मैग्मा (Magma) के धीरे धीरे ठंढा होकर ठोस बनने से हुआ है। इनमें से कुछ इसका निर्माण ग्रेनाइट मैग्मा से और कुछ बैसाल्टीय मैग्मा से मानते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का यह विचार है कि पूर्वस्थित शिलाओं के ग्रेनाइट बनाने वाले निर्गमों (emanations) की प्रवरण (selective) क्रिया से, अथवा ग्रेनाइट बनानेवाले अभिकर्मकों द्वारा, जिनको सेडेरहोम (Sederholmn) ने आयकरी नाम दिया है, ग्रेनाइट बने हैं।


ग्रैनाइट पृथ्वी के प्रत्येक में पाया जाता है। भारत में भी यह प्रचुरता से मिलता है। मैसूर, उत्तर आरकट, मद्रास, राजपूताना, सलेम, बुंदेलखंड और सिंहभूमि में पर्याप्त प्राप्त होता है। हिमालय प्रदेशों में भी ग्रैनाइट शिलाएँ विद्यमान हैं।  
ग्रेनाइट पृथ्वी के प्रत्येक में पाया जाता है। भारत में भी यह प्रचुरता से मिलता है। मैसूर, उत्तर आरकट, मद्रास, राजपूताना, सलेम, बुंदेलखंड और सिंहभूमि में पर्याप्त प्राप्त होता है। हिमालय प्रदेशों में भी ग्रेनाइट शिलाएँ विद्यमान हैं।  


   
   

१२:४१, ८ अगस्त २०१४ के समय का अवतरण

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लेख सूचना
ग्रेनाइट
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 84
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक रमेश चंद्र मिश्र

ग्रेनाइट (Granite, कणाशम) शब्द का सर्वप्रथम उपयोग प्राचीन इटालियन संग्रहकर्ताओं ने किया था। रोम के शिल्पकार फ्‌लेमिनियस वेका के एक वर्णन में इसका प्रथम संदर्भ मिलता है। ग्रेनाइट मणिभीय दानेदार शिला है, जिसके प्रमुख अवयव स्फटिक (quartz) और फेल्स्पार (feldspar) हैं। फेल्स्पार साधारणत: पोटाश किस्म का ऑर्थोक्लेस और माइक्रोक्लाइन, (Orthoclase and Microline) होती है, अथवा सोडियम किस्म का प्लैगिओक्लेस (Plagioclase) ऐल्बाइट (Albite) या औलिगोक्लेस (Oligoclase)। स्फटिक साधारणतया वर्णरहित रूप में ही रहता है, पर कभी कभी कुछ नीली आभा रहती है, जिससे ग्रेनाइट का रंग कुछ नीलापन लिए होता है। इसमें अभ्रक, मस्कोवाइट (Muscovite) और बायोटाइट (Biotite) भी अल्प मात्रा में रहते हैं। ग्रेनाइट में मैग्निटाइट (Magnetite), ऐपैटाइट (Apatite), जरकन (Zircon) तथा स्फीन (Sphene) भी बड़े सूक्ष्म मणिभों के रूप में रहते हैं। किसी किसी नमूने में हॉर्नब्लेंड (Hornblende), गार्नेट (Garnet) और तुरमली (Tourmaline) भी पाए गए हैं। इन खनिजों की उपस्थिति के कारण ऐसे ग्रेनाइटों को क्रमश: हौर्नब्लेंड ग्रेनाइट, मस्कावाइट ग्रेनाइट और बयोटाइट ग्रेनाइट भी कहते हैं।

ग्रेनाइट अनेक रंगों का पाया जाता है। पोटाश ग्रेनाइट गुलाबी या लाल रंग का होता है तथ चूना ग्रेनाइट धूसर या श्वेत रंग का। ग्रेनाइट का विशिष्ट घनत्व २.५१ से २.७३ तक होता है।

ग्रेनाइट के उद्भव के संबंध में वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि इसका उद्भव, द्रव पत्थरों या मैग्मा (Magma) के धीरे धीरे ठंढा होकर ठोस बनने से हुआ है। इनमें से कुछ इसका निर्माण ग्रेनाइट मैग्मा से और कुछ बैसाल्टीय मैग्मा से मानते हैं। कुछ वैज्ञानिकों का यह विचार है कि पूर्वस्थित शिलाओं के ग्रेनाइट बनाने वाले निर्गमों (emanations) की प्रवरण (selective) क्रिया से, अथवा ग्रेनाइट बनानेवाले अभिकर्मकों द्वारा, जिनको सेडेरहोम (Sederholmn) ने आयकरी नाम दिया है, ग्रेनाइट बने हैं।

ग्रेनाइट पृथ्वी के प्रत्येक में पाया जाता है। भारत में भी यह प्रचुरता से मिलता है। मैसूर, उत्तर आरकट, मद्रास, राजपूताना, सलेम, बुंदेलखंड और सिंहभूमि में पर्याप्त प्राप्त होता है। हिमालय प्रदेशों में भी ग्रेनाइट शिलाएँ विद्यमान हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ