"महाभारत वन पर्व अध्याय 15 श्लोक 1-15": अवतरणों में अंतर
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== | ==पञ्चदश (15) अध्याय: वन पर्व (अरण्यपर्व)== | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: वन पर्व: पञ्चदश अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद</div> | |||
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सौभ-नाश की विस्तृत कथा के प्रसंग में द्वारका में युद्ध सम्बन्धी रक्षात्मक तैयारियों का वर्णन | |||
''' | '''युधिष्ठिर ने कहा'''- महाबाहो ! वसुदेवनन्दन ! महामते ! तुम सौभ-विमान के नष्ट होने का समाचार विस्तारपूर्वक कहो। मैं तुम्हारे मुख से इस प्रसंग को सुनते-सुनते तृप्त नहीं हो रहा हूँ। | ||
'''भगवान श्रीकृष्ण बोले'''- महाबाहो ! नरेश्वर ! भरतश्रेष्ठ ! श्रुतश्रवा<ref>श्रुतश्रवा शिशुपाल की माता का नाम है। यह वसुदेवजी की बहिन थी।</ref> के पुत्र शिशुपाल के मारे जाने का समाचार सुनकर शाल्व ने द्वारकापुरी पर चढ़ाई की। | |||
पाण्डुनन्दन ! उस दुष्टात्मा शाल्व ने सेना द्वारा द्वारकापुरी को सब ओर से घेर लिया था। वह स्वयं आकाशचारी विमान सौभ पर व्यूहरचनापूर्वक विराजमान हो रहा था। | |||
उसी पर रहकर राजा शाल्व द्वारकापुरी के लोगों से युद्ध करता था। वहाँ भारी युद्ध छिड़ा हुआ था और उसमें सभी दिशाओें से अस्त्र-शस्त्र के प्रहार हो रहे थे। द्वारकापुरी में सब ओर पताकाएँ फहरा रहीं थी। ऊँचे-ऊँचे गोपुर वहाँ चारों दिशाओें में सुशोभित थे। जगह-जगह सैनिकों के समुदाय युद्ध के लिये प्रस्तुत थे। सैनिकों के आत्मरक्षापूर्वक युद्ध की सुविधा के लिये स्थान-स्थान पर बुर्ज बने हुए थे। युद्धोपयोगी यन्त्र वहाँ बैठाये गये थे तथा सुरंग द्वारा नये-नये मार्ग निकालने के काम में बहुत-से लोग जुटे हुए थे। सड़कों पर लोहे के विषाक्त काँटे अदृश्य रूप से बिछाये गये थे। अट्टालिकाओं और गोपुर में अन्न का संग्रह किया गया था। शत्रुपक्ष के प्रहारों को रोकने के लिये जगह-जगह मोर्चाबंदी की गयी थी। शत्रुओें के चलाये हुए जलते गोले और अलात ( प्रज्वलित लौहमय अस्त्र ) को भी विफल करके नीचे गिरा देने वाली शक्तियाँ सुसज्जित थीं। अस्त्रों से भरे हुए मिट्टी और चमड़े के असंख्य पात्र रखे गये थे। भरतश्रेष्ठ ! ढोल , नगारे और मृदंग आदि जुझाऊ बाजे भी बज रहे थे। राजन ! तोमर, अंकुश, शतघ्री, लांगल, भुशुण्डी, पत्थर के गोले, अन्यान्य अस्त्र-शस्त्र, फरसे, बहुत-सी सुदृढ़ ढ़ालें और गोला-बारूद से भरी हुई तोपें यथास्थान तैयार रखी गयी थीं। भरतकुलभूषण ! शास्त्रोक्त विधि से द्वारकापुरी को रक्षा के सभी उत्तम उपायों से सम्पन्न किया गया था। कुरुश्रेष्ठ ! शत्रुओं का सामना करने में समर्थ गद, साम्ब और उद्धव आदि अनेक वीर नाना प्रकार के बहुसंख्यक रथों द्वारा द्वारकापुरी की रक्षा में दत्तचित थे। जो अत्यन्त विख्यात कुलों में उत्पन्न थे तथा युद्ध के अवसरों पर जिनके बलवीर्य का परिचय मिल चुका था, ऐसे वीर रक्षक मध्यम गुल्म( नगर के मध्यवर्ती दुर्ग ) में स्थित हो पुरी की पूर्णतः रक्षा कर रहे थे। सबको प्रमाद से बचाने वाले उग्रसेन और उद्धव आदि ने शत्रुओं के गुल्मों को नष्ट करने की शक्ति रखने वाले घुड़़सवारों के हाथ में झंडे देकर समूचे नगर में यह घोषणा करा दी थी कि किसी को भी मद्यपान नहीं करना चाहिये। क्योंकि मदिरा से उन्मत हुए लोगों पर राजा शाल्व घातक प्रहार कर सकता है। यह सोचकर वृष्णि और अन्धकवंश के सभी योद्धा पूरी सावधानी के साथ युद्ध में डटे हुए थे। | |||
धनसंग्रह की रक्षा करने वाले यादवों ने आनर्त देशीय नटों, नर्तकों तथा गायों को शीघ्र ही नगर से बाहर कर दिया था। कुरुनन्दन ! द्वारकापुरी में आने के लिये जो पुल मार्ग में पड़ते थे, वे सब तोड़ दिये गये। नौकाएँ रोक दी गयी थीं और खाइयों में काँटे बिछा दिये गये थे। | |||
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१३:२३, १९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
पञ्चदश (15) अध्याय: वन पर्व (अरण्यपर्व)
सौभ-नाश की विस्तृत कथा के प्रसंग में द्वारका में युद्ध सम्बन्धी रक्षात्मक तैयारियों का वर्णन
युधिष्ठिर ने कहा- महाबाहो ! वसुदेवनन्दन ! महामते ! तुम सौभ-विमान के नष्ट होने का समाचार विस्तारपूर्वक कहो। मैं तुम्हारे मुख से इस प्रसंग को सुनते-सुनते तृप्त नहीं हो रहा हूँ।
भगवान श्रीकृष्ण बोले- महाबाहो ! नरेश्वर ! भरतश्रेष्ठ ! श्रुतश्रवा[१] के पुत्र शिशुपाल के मारे जाने का समाचार सुनकर शाल्व ने द्वारकापुरी पर चढ़ाई की।
पाण्डुनन्दन ! उस दुष्टात्मा शाल्व ने सेना द्वारा द्वारकापुरी को सब ओर से घेर लिया था। वह स्वयं आकाशचारी विमान सौभ पर व्यूहरचनापूर्वक विराजमान हो रहा था। उसी पर रहकर राजा शाल्व द्वारकापुरी के लोगों से युद्ध करता था। वहाँ भारी युद्ध छिड़ा हुआ था और उसमें सभी दिशाओें से अस्त्र-शस्त्र के प्रहार हो रहे थे। द्वारकापुरी में सब ओर पताकाएँ फहरा रहीं थी। ऊँचे-ऊँचे गोपुर वहाँ चारों दिशाओें में सुशोभित थे। जगह-जगह सैनिकों के समुदाय युद्ध के लिये प्रस्तुत थे। सैनिकों के आत्मरक्षापूर्वक युद्ध की सुविधा के लिये स्थान-स्थान पर बुर्ज बने हुए थे। युद्धोपयोगी यन्त्र वहाँ बैठाये गये थे तथा सुरंग द्वारा नये-नये मार्ग निकालने के काम में बहुत-से लोग जुटे हुए थे। सड़कों पर लोहे के विषाक्त काँटे अदृश्य रूप से बिछाये गये थे। अट्टालिकाओं और गोपुर में अन्न का संग्रह किया गया था। शत्रुपक्ष के प्रहारों को रोकने के लिये जगह-जगह मोर्चाबंदी की गयी थी। शत्रुओें के चलाये हुए जलते गोले और अलात ( प्रज्वलित लौहमय अस्त्र ) को भी विफल करके नीचे गिरा देने वाली शक्तियाँ सुसज्जित थीं। अस्त्रों से भरे हुए मिट्टी और चमड़े के असंख्य पात्र रखे गये थे। भरतश्रेष्ठ ! ढोल , नगारे और मृदंग आदि जुझाऊ बाजे भी बज रहे थे। राजन ! तोमर, अंकुश, शतघ्री, लांगल, भुशुण्डी, पत्थर के गोले, अन्यान्य अस्त्र-शस्त्र, फरसे, बहुत-सी सुदृढ़ ढ़ालें और गोला-बारूद से भरी हुई तोपें यथास्थान तैयार रखी गयी थीं। भरतकुलभूषण ! शास्त्रोक्त विधि से द्वारकापुरी को रक्षा के सभी उत्तम उपायों से सम्पन्न किया गया था। कुरुश्रेष्ठ ! शत्रुओं का सामना करने में समर्थ गद, साम्ब और उद्धव आदि अनेक वीर नाना प्रकार के बहुसंख्यक रथों द्वारा द्वारकापुरी की रक्षा में दत्तचित थे। जो अत्यन्त विख्यात कुलों में उत्पन्न थे तथा युद्ध के अवसरों पर जिनके बलवीर्य का परिचय मिल चुका था, ऐसे वीर रक्षक मध्यम गुल्म( नगर के मध्यवर्ती दुर्ग ) में स्थित हो पुरी की पूर्णतः रक्षा कर रहे थे। सबको प्रमाद से बचाने वाले उग्रसेन और उद्धव आदि ने शत्रुओं के गुल्मों को नष्ट करने की शक्ति रखने वाले घुड़़सवारों के हाथ में झंडे देकर समूचे नगर में यह घोषणा करा दी थी कि किसी को भी मद्यपान नहीं करना चाहिये। क्योंकि मदिरा से उन्मत हुए लोगों पर राजा शाल्व घातक प्रहार कर सकता है। यह सोचकर वृष्णि और अन्धकवंश के सभी योद्धा पूरी सावधानी के साथ युद्ध में डटे हुए थे। धनसंग्रह की रक्षा करने वाले यादवों ने आनर्त देशीय नटों, नर्तकों तथा गायों को शीघ्र ही नगर से बाहर कर दिया था। कुरुनन्दन ! द्वारकापुरी में आने के लिये जो पुल मार्ग में पड़ते थे, वे सब तोड़ दिये गये। नौकाएँ रोक दी गयी थीं और खाइयों में काँटे बिछा दिये गये थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ श्रुतश्रवा शिशुपाल की माता का नाम है। यह वसुदेवजी की बहिन थी।