"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 84 श्लोक 1-11": अवतरणों में अंतर

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;इन्द्र और बृहस्पति के संवाद में सान्त्वनापूर्ण मधुर वचन बोलने का महत्व
;इन्द्र और बृहस्पति के संवाद में सान्त्वनापूर्ण मधुर वचन बोलने का महत्व
भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठर! इस विषय में मनस्वी पुरूष इन्द्र और बृहस्पति के संवाद रूप एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं, वह सुनो। इन्द्र ने पूछा- ब्रह्मन्! वह कौन-सी  ऐसी एक वस्तु है, जिसका नाम एक ही पद का है और जिसका भलीभाँती  आचरण करने वाला पुरूष समस्त प्राणियों का प्रिय होकर महान् यश प्राप्त कर लेता है। बृहस्पति जी ने कहा -इन्द्र! जिसका नाम एक ही पद का है, वह एकमात्र वस्तु है सान्त्वना (मधुर वचन बोलना) । उसका भलीभाँती आचरण करने वाला पुरूष समस्त प्राणियों का प्रिय होकर महान् यश प्राप्त कर लेता है।
भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठर! इस विषय में मनस्वी पुरूष इन्द्र और बृहस्पति के संवाद रूप एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं, वह सुनो। इन्द्र ने पूछा- ब्रह्मन्! वह कौन-सी  ऐसी एक वस्तु है, जिसका नाम एक ही पद का है और जिसका भलीभाँती  आचरण करने वाला पुरूष समस्त प्राणियों का प्रिय होकर महान् यश प्राप्त कर लेता है। बृहस्पति जी ने कहा -इन्द्र! जिसका नाम एक ही पद का है, वह एकमात्र वस्तु है सान्त्वना (मधुर वचन बोलना) । उसका भलीभाँती आचरण करने वाला पुरूष समस्त प्राणियों का प्रिय होकर महान् यश प्राप्त कर लेता है। शक्र! यही एक वस्तु सम्पूर्ण जगत् के लिये सुखदायक है। इसको आचरण में लाने वाला मनुष्य सदा समस्त प्राणियों का प्रिय होता है।।जो मनुष्य सदा भौंहें टेढ़ी किये रहता है, किसी से कुछ बातचीत नहीं करता, वह शान्तभाव (मृदुभाषी होने के गुण) को न अपनाने के कारण सब लोगों के द्वेष का पात्र हो जाता है। जो सभी को देखकर पहले ही बात करता है और सबसे मुसकराकर ही बोलता है, उस पर सब लोग प्रसन्न रहते हैं। जैसे बिना व्यंजन (साग - दाल आदि) का भोजन मनुष्यों को संतुष्ट नहीं कर सकता, उसी प्रकार मधुर वचन बोले बिना दिया हुआ दान भी प्राणियों को प्रसन्न नहीं कर पाता है। शक्र! मधुर वचन बोलने वाला मनुष्य लोगों की कोई वस्तु लेकर भी अपनी मधुर वाणी द्वारा इस सम्पूर्ण जगत् को वश में कर लेता है। अतः किसी को दण्ड देने की इच्छा रखने वाले राजा को उससे सान्त्वनापूर्ण मधुर वच नही बोलना चाहिये। ऐसा करके वह अपना प्रयोजन तो सिद्ध कर लेता है और उससे कोई मनुष्य उद्विग्र भी नहीं होता है।  यदि अच्छी तरह से सान्त्वनापूर्ण, मधुर एवं स्नेहयुक्त वचन बोला जाय और सदा सब प्रकार से उसी का सेवन किया जाय तो उसके समान वशीकरण का साधन इस जगत् में निःसंदेह दूसरा कोई नहीं है। भीष्म जी कहते हैं- कुरूनन्दन! अपने पुरोहित बृहस्पति के ऐसा कहने पर इन्द्र ने सब कुछ उसी तरह किया। इसी प्रकार तुम भी इस सान्त्वनापूर्ण वचन को भलीभाँती आचरण में लाओ।  
शक्र! यही एक वस्तु सम्पूर्ण जगत् के लिये सुखदायक है। इसको आचरण में लाने वाला मनुष्य सदा समस्त प्राणियों का प्रिय होता है।।जो मनुष्य सदा भौंहें टेढ़ी किये रहता है, किसी से कुछ बातचीत नहीं करता, वह शान्तभाव (मृदुभाषी होने के गुण) को न अपनाने के कारण सब लोगों के द्वेष का पात्र हो जाता है। जो सभी को देखकर पहले ही बात करता है और सबसे मुसकराकर ही बोलता है, उस पर सब लोग प्रसन्न रहते हैं। जैसे बिना व्यंजन (साग - दाल आदि) का भोजन मनुष्यों को संतुष्ट नहीं कर सकता, उसी प्रकार मधुर वचन बोले बिना दिया हुआ दान भी प्राणियों को प्रसन्न नहीं कर पाता है। शक्र! मधुर वचन बोलने वाला मनुष्य लोगों की कोई वस्तु लेकर भी अपनी मधुर वाणी द्वारा इस सम्पूर्ण जगत् को वश में कर लेता है। अतः किसी को दण्ड देने की इच्छा रखने वाले राजा को उससे सान्त्वनापूर्ण मधुर वच नही बोलना चाहिये। ऐसा करके वह अपना प्रयोजन तो सिद्ध कर लेता है और उससे कोई मनुष्य उद्विग्र भी नहीं होता है।  यदि अच्छी तरह से सान्त्वनापूर्ण, मधुर एवं स्नेहयुक्त वचन बोला जाय और सदा सब प्रकार से उसी का सेवन किया जाय तो उसके समान वशीकरण का साधन इस जगत् में निःसंदेह दूसरा कोई नहीं है। भीष्म जी कहते हैं- कुरूनन्दन! अपने पुरोहित बृहस्पति के ऐसा कहने पर इन्द्र ने सब कुछ उसी तरह किया। इसी प्रकार तुम भी इस सान्त्वनापूर्ण वचन को भलीभाँती आचरण में लाओ।  


<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वं के अन्तर्गत राजधर्मांनुशासनपर्वं में इन्द्र और बृहस्पति का संवादविषयक चैरासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वं के अन्तर्गत राजधर्मांनुशासनपर्वं में इन्द्र और बृहस्पति का संवादविषयक चैरासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।</div>
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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==संबंधित लेख==
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०६:१०, ५ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

चतुरशीतिम (84) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: चतुरशीतिम अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद
इन्द्र और बृहस्पति के संवाद में सान्त्वनापूर्ण मधुर वचन बोलने का महत्व

भीष्म जी कहते हैं- युधिष्ठर! इस विषय में मनस्वी पुरूष इन्द्र और बृहस्पति के संवाद रूप एक प्राचीन इतिहास का उदाहरण दिया करते हैं, वह सुनो। इन्द्र ने पूछा- ब्रह्मन्! वह कौन-सी ऐसी एक वस्तु है, जिसका नाम एक ही पद का है और जिसका भलीभाँती आचरण करने वाला पुरूष समस्त प्राणियों का प्रिय होकर महान् यश प्राप्त कर लेता है। बृहस्पति जी ने कहा -इन्द्र! जिसका नाम एक ही पद का है, वह एकमात्र वस्तु है सान्त्वना (मधुर वचन बोलना) । उसका भलीभाँती आचरण करने वाला पुरूष समस्त प्राणियों का प्रिय होकर महान् यश प्राप्त कर लेता है। शक्र! यही एक वस्तु सम्पूर्ण जगत् के लिये सुखदायक है। इसको आचरण में लाने वाला मनुष्य सदा समस्त प्राणियों का प्रिय होता है।।जो मनुष्य सदा भौंहें टेढ़ी किये रहता है, किसी से कुछ बातचीत नहीं करता, वह शान्तभाव (मृदुभाषी होने के गुण) को न अपनाने के कारण सब लोगों के द्वेष का पात्र हो जाता है। जो सभी को देखकर पहले ही बात करता है और सबसे मुसकराकर ही बोलता है, उस पर सब लोग प्रसन्न रहते हैं। जैसे बिना व्यंजन (साग - दाल आदि) का भोजन मनुष्यों को संतुष्ट नहीं कर सकता, उसी प्रकार मधुर वचन बोले बिना दिया हुआ दान भी प्राणियों को प्रसन्न नहीं कर पाता है। शक्र! मधुर वचन बोलने वाला मनुष्य लोगों की कोई वस्तु लेकर भी अपनी मधुर वाणी द्वारा इस सम्पूर्ण जगत् को वश में कर लेता है। अतः किसी को दण्ड देने की इच्छा रखने वाले राजा को उससे सान्त्वनापूर्ण मधुर वच नही बोलना चाहिये। ऐसा करके वह अपना प्रयोजन तो सिद्ध कर लेता है और उससे कोई मनुष्य उद्विग्र भी नहीं होता है। यदि अच्छी तरह से सान्त्वनापूर्ण, मधुर एवं स्नेहयुक्त वचन बोला जाय और सदा सब प्रकार से उसी का सेवन किया जाय तो उसके समान वशीकरण का साधन इस जगत् में निःसंदेह दूसरा कोई नहीं है। भीष्म जी कहते हैं- कुरूनन्दन! अपने पुरोहित बृहस्पति के ऐसा कहने पर इन्द्र ने सब कुछ उसी तरह किया। इसी प्रकार तुम भी इस सान्त्वनापूर्ण वचन को भलीभाँती आचरण में लाओ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शान्तिपर्वं के अन्तर्गत राजधर्मांनुशासनपर्वं में इन्द्र और बृहस्पति का संवादविषयक चैरासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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