"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 138 श्लोक 85-102": अवतरणों में अंतर

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==अष्टात्रिंशदधिकशततम (138) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)==
==अष्टात्रिंशदधिकशततम (138) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टात्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 85-102 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टात्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 85-102 का हिन्दी अनुवाद</div>


चूहे को बिलाव के अंगों में छिपा हुआ देख नेवला और उल्‍लू दोनों निराश हो गये । उन दोनों को बडे़ जोर से औंघाई आ रही थी और वे अत्‍यन्‍त भयभीत भी हो गये थे। उस समय चूहे और बिलावका वह विशेष प्रेम देखकर नेवला और उल्‍लू दोनों को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। यद्यपि वे बड़े बलवान, बुद्धिमान्, सुन्‍दर बर्ताव करनेवाले, कार्यकुशल तथा निकटवर्ती थे तो भी उस संधि की नीति से काम लेने के कारण उन चूहे और बिलावपर वे बलपूर्वक आक्रमण करने में समर्थ न हो सके। अपने–अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए चूहे और बिलावने आपस में संधि कर ली, यह देखकर उल्‍लू और नेवला दोनों तत्‍काल अपने निवासस्‍थान को लौट गये। नरेश्‍वर! चूहा देश–काल की गति को अच्‍छी तरह जानता था; इसलिये वह बिलाव के अंगों में ही छिपा रहकर चाण्‍डाल के आने के समय की प्रतीक्षा करता हुआ धीरे–धीरे जाल को काटने लगा। बिलाव उस बन्‍धन से तंग आ गया था। उसने देखा, चूहा जाल तो काट रहा है; किंतु इस कार्य में फुर्ती नहीं दिखा रहा है, तब वह उतावला होकर बन्‍धन काटने में जल्‍दी न करने वाले पलित नामक चूहे को उकसाता हुआ बोला- ‘सौम्‍य! तुम जल्‍दी क्‍यों नहीं करते हो? क्‍या तुम्‍हारा काम बन गया, इसलिये मेरी अवहेलना करते हो? शत्रुसूदन! देखो, अब चाण्‍डाल आ रहा होगा। उसके आने से पहले ही मेरे बन्‍धनों को काट दों’। उतावले हुए बिलाव के ऐसा कहने पर बुद्धिमान् पलित ने अपवित्र विचार रखनेवाले उस मार्जार से अपने लिये हितकर और लाभदायक बात कही- ‘सौम्‍य चुप रहो, तुम्‍हें जल्‍दी नहीं करनी चाहिये, घबराने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। मैं समय को खूब पहचानता हूं, ठीक अवसर आने पर मैं कभी नहीं चूकूंगा। ‘बेमौके शुरू किया हुआ काम करने वाले के लिये लाभदायक नहीं होता है और वही उपयुक्‍त समय पर आरम्‍भ किया जाय तो महान अर्थ का साधक हो जाता है । ‘यदि असमय में ही तुम छूट गये तो मुझे तुम्‍हीं से भय प्राप्‍त हो सकता है, इसलिये मेरे मित्र! थोडी देर और प्रतीक्षा करो; क्‍यों इतनी जल्‍दी मचा रहे हो? ‘जब मैं देख लूंगा कि चाण्‍डाल हाथ में हथियार लिये आ रहा है, तब तुम्‍हारे ऊपर साधारण–सा भय उपस्थित होने पर मैं शीघ्र ही तुम्‍हारे बन्‍धन काट डालूंगा। ‘उस समय छूटते ही तुम पहले पेड़ पर ही चढो़गे। अपने जीवन की रक्षा के सिवा दूसरा कोई कार्य तुम्‍हें आवश्‍यक नहीं प्रतीत होगा। ‘लोमश जी जब आप त्रास और भय से आक्रान्‍त हो भाग खडे़ होगे, उस समय मैं बिल में घुस जाऊगा और आप वृक्ष की शाखा पर जा बैठेंगे’। चूहे के ऐसा कहने पर वाणी के मर्म को समझने वाला और अपने जीवन की रक्षा चाहने वाला परम बुद्धिमान् बिलाव अपने हित की बात बताता हुआ बोला। लोमश को अपना काम बनाने की जल्‍दी लगी हुई थी; अत: वह भलीभॉति विनय पूर्ण बर्ताव करता हुआ विलम्‍ब करने वाले चूहे से इस प्रकार कहने लगा- ‘श्रेष्‍ठ पुरूष मित्रों के कार्य बड़े प्रेम और प्रसन्‍नता के साथ किया करते हैं; तुम्‍हारी तरह नहीं। जैसे मैने तुंरत ही तुम्‍हें संकट से छुड़ा लिया था।
चूहे को बिलाव के अंगों में छिपा हुआ देख नेवला और उल्‍लू दोनों निराश हो गये । उन दोनों को बडे़ जोर से औंघाई आ रही थी और वे अत्‍यन्‍त भयभीत भी हो गये थे। उस समय चूहे और बिलावका वह विशेष प्रेम देखकर नेवला और उल्‍लू दोनों को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। यद्यपि वे बड़े बलवान, बुद्धिमान्, सुन्‍दर बर्ताव करनेवाले, कार्यकुशल तथा निकटवर्ती थे तो भी उस संधि की नीति से काम लेने के कारण उन चूहे और बिलावपर वे बलपूर्वक आक्रमण करने में समर्थ न हो सके। अपने–अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए चूहे और बिलावने आपस में संधि कर ली, यह देखकर उल्‍लू और नेवला दोनों तत्‍काल अपने निवासस्‍थान को लौट गये। नरेश्‍वर! चूहा देश–काल की गति को अच्‍छी तरह जानता था; इसलिये वह बिलाव के अंगों में ही छिपा रहकर चाण्‍डाल के आने के समय की प्रतीक्षा करता हुआ धीरे–धीरे जाल को काटने लगा। बिलाव उस बन्‍धन से तंग आ गया था। उसने देखा, चूहा जाल तो काट रहा है; किंतु इस कार्य में फुर्ती नहीं दिखा रहा है, तब वह उतावला होकर बन्‍धन काटने में जल्‍दी न करने वाले पलित नामक चूहे को उकसाता हुआ बोला- ‘सौम्‍य! तुम जल्‍दी क्‍यों नहीं करते हो? क्‍या तुम्‍हारा काम बन गया, इसलिये मेरी अवहेलना करते हो? शत्रुसूदन! देखो, अब चाण्‍डाल आ रहा होगा। उसके आने से पहले ही मेरे बन्‍धनों को काट दों’। उतावले हुए बिलाव के ऐसा कहने पर बुद्धिमान पलित ने अपवित्र विचार रखनेवाले उस मार्जार से अपने लिये हितकर और लाभदायक बात कही- ‘सौम्‍य चुप रहो, तुम्‍हें जल्‍दी नहीं करनी चाहिये, घबराने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। मैं समय को खूब पहचानता हूं, ठीक अवसर आने पर मैं कभी नहीं चूकूंगा। ‘बेमौके शुरू किया हुआ काम करने वाले के लिये लाभदायक नहीं होता है और वही उपयुक्‍त समय पर आरम्‍भ किया जाय तो महान अर्थ का साधक हो जाता है । ‘यदि असमय में ही तुम छूट गये तो मुझे तुम्‍हीं से भय प्राप्‍त हो सकता है, इसलिये मेरे मित्र! थोडी देर और प्रतीक्षा करो; क्‍यों इतनी जल्‍दी मचा रहे हो? ‘जब मैं देख लूंगा कि चाण्‍डाल हाथ में हथियार लिये आ रहा है, तब तुम्‍हारे ऊपर साधारण–सा भय उपस्थित होने पर मैं शीघ्र ही तुम्‍हारे बन्‍धन काट डालूंगा। ‘उस समय छूटते ही तुम पहले पेड़ पर ही चढो़गे। अपने जीवन की रक्षा के सिवा दूसरा कोई कार्य तुम्‍हें आवश्‍यक नहीं प्रतीत होगा। ‘लोमश जी जब आप त्रास और भय से आक्रान्‍त हो भाग खडे़ होगे, उस समय मैं बिल में घुस जाऊगा और आप वृक्ष की शाखा पर जा बैठेंगे’। चूहे के ऐसा कहने पर वाणी के मर्म को समझने वाला और अपने जीवन की रक्षा चाहने वाला परम बुद्धिमान बिलाव अपने हित की बात बताता हुआ बोला। लोमश को अपना काम बनाने की जल्‍दी लगी हुई थी; अत: वह भलीभॉति विनय पूर्ण बर्ताव करता हुआ विलम्‍ब करने वाले चूहे से इस प्रकार कहने लगा- ‘श्रेष्‍ठ पुरूष मित्रों के कार्य बड़े प्रेम और प्रसन्‍नता के साथ किया करते हैं; तुम्‍हारी तरह नहीं। जैसे मैने तुंरत ही तुम्‍हें संकट से छुड़ा लिया था।


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११:५९, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

अष्टात्रिंशदधिकशततम (138) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टात्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 85-102 का हिन्दी अनुवाद

चूहे को बिलाव के अंगों में छिपा हुआ देख नेवला और उल्‍लू दोनों निराश हो गये । उन दोनों को बडे़ जोर से औंघाई आ रही थी और वे अत्‍यन्‍त भयभीत भी हो गये थे। उस समय चूहे और बिलावका वह विशेष प्रेम देखकर नेवला और उल्‍लू दोनों को बड़ा आश्‍चर्य हुआ। यद्यपि वे बड़े बलवान, बुद्धिमान्, सुन्‍दर बर्ताव करनेवाले, कार्यकुशल तथा निकटवर्ती थे तो भी उस संधि की नीति से काम लेने के कारण उन चूहे और बिलावपर वे बलपूर्वक आक्रमण करने में समर्थ न हो सके। अपने–अपने प्रयोजन की सिद्धि के लिए चूहे और बिलावने आपस में संधि कर ली, यह देखकर उल्‍लू और नेवला दोनों तत्‍काल अपने निवासस्‍थान को लौट गये। नरेश्‍वर! चूहा देश–काल की गति को अच्‍छी तरह जानता था; इसलिये वह बिलाव के अंगों में ही छिपा रहकर चाण्‍डाल के आने के समय की प्रतीक्षा करता हुआ धीरे–धीरे जाल को काटने लगा। बिलाव उस बन्‍धन से तंग आ गया था। उसने देखा, चूहा जाल तो काट रहा है; किंतु इस कार्य में फुर्ती नहीं दिखा रहा है, तब वह उतावला होकर बन्‍धन काटने में जल्‍दी न करने वाले पलित नामक चूहे को उकसाता हुआ बोला- ‘सौम्‍य! तुम जल्‍दी क्‍यों नहीं करते हो? क्‍या तुम्‍हारा काम बन गया, इसलिये मेरी अवहेलना करते हो? शत्रुसूदन! देखो, अब चाण्‍डाल आ रहा होगा। उसके आने से पहले ही मेरे बन्‍धनों को काट दों’। उतावले हुए बिलाव के ऐसा कहने पर बुद्धिमान पलित ने अपवित्र विचार रखनेवाले उस मार्जार से अपने लिये हितकर और लाभदायक बात कही- ‘सौम्‍य चुप रहो, तुम्‍हें जल्‍दी नहीं करनी चाहिये, घबराने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। मैं समय को खूब पहचानता हूं, ठीक अवसर आने पर मैं कभी नहीं चूकूंगा। ‘बेमौके शुरू किया हुआ काम करने वाले के लिये लाभदायक नहीं होता है और वही उपयुक्‍त समय पर आरम्‍भ किया जाय तो महान अर्थ का साधक हो जाता है । ‘यदि असमय में ही तुम छूट गये तो मुझे तुम्‍हीं से भय प्राप्‍त हो सकता है, इसलिये मेरे मित्र! थोडी देर और प्रतीक्षा करो; क्‍यों इतनी जल्‍दी मचा रहे हो? ‘जब मैं देख लूंगा कि चाण्‍डाल हाथ में हथियार लिये आ रहा है, तब तुम्‍हारे ऊपर साधारण–सा भय उपस्थित होने पर मैं शीघ्र ही तुम्‍हारे बन्‍धन काट डालूंगा। ‘उस समय छूटते ही तुम पहले पेड़ पर ही चढो़गे। अपने जीवन की रक्षा के सिवा दूसरा कोई कार्य तुम्‍हें आवश्‍यक नहीं प्रतीत होगा। ‘लोमश जी जब आप त्रास और भय से आक्रान्‍त हो भाग खडे़ होगे, उस समय मैं बिल में घुस जाऊगा और आप वृक्ष की शाखा पर जा बैठेंगे’। चूहे के ऐसा कहने पर वाणी के मर्म को समझने वाला और अपने जीवन की रक्षा चाहने वाला परम बुद्धिमान बिलाव अपने हित की बात बताता हुआ बोला। लोमश को अपना काम बनाने की जल्‍दी लगी हुई थी; अत: वह भलीभॉति विनय पूर्ण बर्ताव करता हुआ विलम्‍ब करने वाले चूहे से इस प्रकार कहने लगा- ‘श्रेष्‍ठ पुरूष मित्रों के कार्य बड़े प्रेम और प्रसन्‍नता के साथ किया करते हैं; तुम्‍हारी तरह नहीं। जैसे मैने तुंरत ही तुम्‍हें संकट से छुड़ा लिया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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