"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 50 श्लोक 42-58": अवतरणों में अंतर

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==पंचाशत्तम अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
==पञ्चाशत्तम (50) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: पंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 41-58 का हिन्दी अनुवाद </div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: भीष्म पर्व: पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 42-58 का हिन्दी अनुवाद </div>


शत्रुसेना का विनाश करनेवाले उस क्रोचारूप व्यूह का तुम यथावत् रूप से निर्माण करो। आज समस्त राजा कौरवों के साथ उस अदृष्टपूर्व व्यूह को अपनी आंखों से देखे’। जैसे वज्रधारी इन्द्र भगवान् विष्णु से कुछ कहते हो, उसी प्रकार नरदेव युधिष्ठिर पूर्वोक्‍तबात कहने पर व्यूहरचना में कुशल धृष्टघुम्ने बृहस्पति की बतायी हुई विधि से प्रातःकाल (सूर्योदय पूर्व) ही समस्त सेनाओं का व्यूह निर्माणकिया; उन्होनें सबसे आगे अर्जुन को खड़ाकिय। उनका अद्रुत एवं मनोरम ध्वज सूर्य के पथ में (ऊॅचे आकाश में) फहरा रहा था। इन्द्र के आदेश से साक्षात विश्वकर्मा ने उसका निर्माणकिया था। इन्द्रधनुष के रंग की पताकाएं उस ध्वज शोभा बढाती थी। वह ध्वज आकाश में आकाशचारी पक्षी की भॉति बिना आधार के ही चलता था। वह दूसरे गन्धर्वनगर के समान जान पड़ता था। आर्य! रथ के मार्गो पर अर्जुन का वह ध्वज नृत्य करता-सा प्रतीत होता था उस रत्नयुक्त ध्वज से अर्जुन की और गाण्डीवधारी अर्जुन से उस ध्वज की बड़ीशोभा होती थी, ठीक उसी तरह जैसे मेरू पर्वत से सूर्य की और सूर्य से मेरू पर्वत की शोभा होती है। राजन् ! अपनी विशाल सेना के साथ राजा द्रुपद उस व्यूह के सिर के स्थान पर थे। कुन्तिभोज और धृष्टकेतु यह दोनों नरेश नेत्रों के स्थान पर प्रतिष्ठित हुए। भरतश्रेष्ठ! दाशार्णक, दाशेरकसमूहों के साथ प्रभद्रक, अनूपक और किरातगण गर्दन के स्थान में खडे़ किये गये। पटचर, पौण्ड्र, पौरव तथा निषादों के साथ स्वयं राजा युधिष्ठिर पृष्ठभाग में स्थित हुए। भीमसेन और धृष्टधुम्न क्रोचपक्षी के दोनों पंखों के स्थान पर नियुक्त किये गये। राजन् ! द्रौपदी के पुत्र, अभिमन्यु और महारथी सात्यकि के साथ पिशाच, दारद, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारूत, धेनुक, तरंग, परतगण, बाह्रिक, तित्तिर, चोल तथा पाण्डय- इन जनपदों के लोग दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर खडे़ हुए। अग्निवेश्य, हुण्ड, मालव, दानभारि, शबर, उद्रस, वत्स तथा नाकुल जनपदों के साथ दोनों भाई नकुल और सहदेवने बायें पंख का आश्रय लिया। उस क्रौचपक्षी के पंखभाग में दस हजार, शिरोभाग में एक लाख, पृष्ठभाग में एक अर्बुद बीस हजार तथा ग्रीवा भाग में एक लाख सत्तर हजार रथ मौजूद थे। राजन् ! पक्ष, कोटि, प्रपख तथा पक्षान्त-भागों में चलते-फिरते पर्वतों के समान हाथियों के झुंड चले। वे सब-के-सब सेनाओं से घिरे हुए थे। राजा विराट केकय राजकुमारों के साथ उस व्यूह के जघन (कटि के अग्रभाग) की रक्षा करते थे। काशिराज औरशैव्य भी तीस हजार रथियों के साथ उसी की रक्षा में तत्पर थे। भारत! इस प्रकार पाण्डव क्रौचारूण नामक महाव्यूह की रचना करके सूर्योदय की प्रतिक्षा करते हुए युद्ध के लिये कवच आदि से सुसज्जित हो खडे़ हो गये। उनके हाथियों औररथों के ऊपर सूर्य के समान प्रकाशमान, निर्मल एवं महान् श्वेतच्छत्र शोभा पा रहे थे।  
जैसे वज्रधारी इन्द्र भगवान् विष्णु से कुछ कहते हो, उसी प्रकार नरदेव युधिष्ठिर पूर्वोक्‍तबात कहने पर व्यूहरचना में कुशल धृष्टघुम्ने बृहस्पति की बतायी हुई विधि से प्रातःकाल (सूर्योदय पूर्व) ही समस्त सेनाओं का व्यूह निर्माणकिया; उन्होनें सबसे आगे अर्जुन को खड़ाकिय। उनका अद्रुत एवं मनोरम ध्वज सूर्य के पथ में (ऊॅचे आकाश में) फहरा रहा था। इन्द्र के आदेश से साक्षात विश्वकर्मा ने उसका निर्माणकिया था। इन्द्रधनुष के रंग की पताकाएं उस ध्वज शोभा बढाती थी। वह ध्वज आकाश में आकाशचारी पक्षी की भॉति बिना आधार के ही चलता था। वह दूसरे गन्धर्वनगर के समान जान पड़ता था। आर्य! रथ के मार्गो पर अर्जुन का वह ध्वज नृत्य करता-सा प्रतीत होता था उस रत्नयुक्त ध्वज से अर्जुन की और गाण्डीवधारी अर्जुन से उस ध्वज की बड़ीशोभा होती थी, ठीक उसी तरह जैसे मेरू पर्वत से सूर्य की और सूर्य से मेरू पर्वत की शोभा होती है। राजन् ! अपनी विशाल सेना के साथ राजा द्रुपद उस व्यूह के सिर के स्थान पर थे। कुन्तिभोज और धृष्टकेतु यह दोनों नरेश नेत्रों के स्थान पर प्रतिष्ठित हुए। भरतश्रेष्ठ! दाशार्णक, दाशेरकसमूहों के साथ प्रभद्रक, अनूपक और किरातगण गर्दन के स्थान में खडे़ किये गये। पटचर, पौण्ड्र, पौरव तथा निषादों के साथ स्वयं राजा युधिष्ठिर पृष्ठभाग में स्थित हुए। भीमसेन और धृष्टधुम्न क्रोचपक्षी के दोनों पंखों के स्थान पर नियुक्त किये गये। राजन् ! द्रौपदी के पुत्र, अभिमन्यु और महारथी सात्यकि के साथ पिशाच, दारद, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारूत, धेनुक, तरंग, परतगण, बाह्रिक, तित्तिर, चोल तथा पाण्डय- इन जनपदों के लोग दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर खडे़ हुए। अग्निवेश्य, हुण्ड, मालव, दानभारि, शबर, उद्रस, वत्स तथा नाकुल जनपदों के साथ दोनों भाई नकुल और सहदेवने बायें पंख का आश्रय लिया। उस क्रौचपक्षी के पंखभाग में दस हजार, शिरोभाग में एक लाख, पृष्ठभाग में एक अर्बुद बीस हजार तथा ग्रीवा भाग में एक लाख सत्तर हजार रथ मौजूद थे। राजन् ! पक्ष, कोटि, प्रपख तथा पक्षान्त-भागों में चलते-फिरते पर्वतों के समान हाथियों के झुंड चले। वे सब-के-सब सेनाओं से घिरे हुए थे। राजा विराट केकय राजकुमारों के साथ उस व्यूह के जघन (कटि के अग्रभाग) की रक्षा करते थे। काशिराज औरशैव्य भी तीस हजार रथियों के साथ उसी की रक्षा में तत्पर थे। भारत! इस प्रकार पाण्डव क्रौचारूण नामक महाव्यूह की रचना करके सूर्योदय की प्रतिक्षा करते हुए युद्ध के लिये कवच आदि से सुसज्जित हो खडे़ हो गये। उनके हाथियों औररथों के ऊपर सूर्य के समान प्रकाशमान, निर्मल एवं महान् श्वेतच्छत्र शोभा पा रहे थे।  


<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में क्रौचव्यूहनिर्माण विषयक पचासवां अध्याय पूरा हुआ।</div>  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में क्रौचव्यूहनिर्माण विषयक पचासवां अध्याय पूरा हुआ।</div>  
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 50 श्लोक 20-40|अगला=महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 51 श्लोक 1-30}}
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
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==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
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[[Category:कृष्ण कोश]] [[Category:महाभारत]][[Category:महाभारत उद्योग पर्व]]
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०७:००, १७ जुलाई २०१५ का अवतरण

पञ्चाशत्तम (50) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 42-58 का हिन्दी अनुवाद

जैसे वज्रधारी इन्द्र भगवान् विष्णु से कुछ कहते हो, उसी प्रकार नरदेव युधिष्ठिर पूर्वोक्‍तबात कहने पर व्यूहरचना में कुशल धृष्टघुम्ने बृहस्पति की बतायी हुई विधि से प्रातःकाल (सूर्योदय पूर्व) ही समस्त सेनाओं का व्यूह निर्माणकिया; उन्होनें सबसे आगे अर्जुन को खड़ाकिय। उनका अद्रुत एवं मनोरम ध्वज सूर्य के पथ में (ऊॅचे आकाश में) फहरा रहा था। इन्द्र के आदेश से साक्षात विश्वकर्मा ने उसका निर्माणकिया था। इन्द्रधनुष के रंग की पताकाएं उस ध्वज शोभा बढाती थी। वह ध्वज आकाश में आकाशचारी पक्षी की भॉति बिना आधार के ही चलता था। वह दूसरे गन्धर्वनगर के समान जान पड़ता था। आर्य! रथ के मार्गो पर अर्जुन का वह ध्वज नृत्य करता-सा प्रतीत होता था उस रत्नयुक्त ध्वज से अर्जुन की और गाण्डीवधारी अर्जुन से उस ध्वज की बड़ीशोभा होती थी, ठीक उसी तरह जैसे मेरू पर्वत से सूर्य की और सूर्य से मेरू पर्वत की शोभा होती है। राजन् ! अपनी विशाल सेना के साथ राजा द्रुपद उस व्यूह के सिर के स्थान पर थे। कुन्तिभोज और धृष्टकेतु यह दोनों नरेश नेत्रों के स्थान पर प्रतिष्ठित हुए। भरतश्रेष्ठ! दाशार्णक, दाशेरकसमूहों के साथ प्रभद्रक, अनूपक और किरातगण गर्दन के स्थान में खडे़ किये गये। पटचर, पौण्ड्र, पौरव तथा निषादों के साथ स्वयं राजा युधिष्ठिर पृष्ठभाग में स्थित हुए। भीमसेन और धृष्टधुम्न क्रोचपक्षी के दोनों पंखों के स्थान पर नियुक्त किये गये। राजन् ! द्रौपदी के पुत्र, अभिमन्यु और महारथी सात्यकि के साथ पिशाच, दारद, पुण्ड्र, कुण्डीविष, मारूत, धेनुक, तरंग, परतगण, बाह्रिक, तित्तिर, चोल तथा पाण्डय- इन जनपदों के लोग दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर खडे़ हुए। अग्निवेश्य, हुण्ड, मालव, दानभारि, शबर, उद्रस, वत्स तथा नाकुल जनपदों के साथ दोनों भाई नकुल और सहदेवने बायें पंख का आश्रय लिया। उस क्रौचपक्षी के पंखभाग में दस हजार, शिरोभाग में एक लाख, पृष्ठभाग में एक अर्बुद बीस हजार तथा ग्रीवा भाग में एक लाख सत्तर हजार रथ मौजूद थे। राजन् ! पक्ष, कोटि, प्रपख तथा पक्षान्त-भागों में चलते-फिरते पर्वतों के समान हाथियों के झुंड चले। वे सब-के-सब सेनाओं से घिरे हुए थे। राजा विराट केकय राजकुमारों के साथ उस व्यूह के जघन (कटि के अग्रभाग) की रक्षा करते थे। काशिराज औरशैव्य भी तीस हजार रथियों के साथ उसी की रक्षा में तत्पर थे। भारत! इस प्रकार पाण्डव क्रौचारूण नामक महाव्यूह की रचना करके सूर्योदय की प्रतिक्षा करते हुए युद्ध के लिये कवच आदि से सुसज्जित हो खडे़ हो गये। उनके हाथियों औररथों के ऊपर सूर्य के समान प्रकाशमान, निर्मल एवं महान् श्वेतच्छत्र शोभा पा रहे थे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में क्रौचव्यूहनिर्माण विषयक पचासवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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