"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 78 श्लोक 23-36": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्री महाभारत भीष्‍म पर्व के अन्‍तर्गत भीष्‍मवध पर्व में संकुल युद्ध विषयक अठहत्‍तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।</div>  
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्री महाभारत भीष्‍म पर्व के अन्‍तर्गत भीष्‍मवध पर्व में संकुल युद्ध विषयक अठहत्‍तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।</div>  
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१०:२४, १७ जुलाई २०१५ का अवतरण

अष्टसप्ततितम (78) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टसप्ततितम अध्याय: श्लोक 23-36 का हिन्दी अनुवाद

भरतनन्दन! अभिमन्यु ने एक रथ पर बैठे हुए उन दोनों वंशवर्धक भ्राताओं को अपने बाणों के जाल से आच्छादित कर दिया। चित्रसेन और विकर्ण ने भी लोहे के पाँच बाणों से अभिमन्यु को बींध डाला। उस आघात से अर्जुन कुमार अभिमन्यु विचलित नहीं हुआ। मेरू पर्वत की भाँति अडिग खड़ा रहा। आर्य! राजेन्द्र! दुःशासन ने अकेले ही समरभूमि में पाँच केकय राजकुमारों के साथ युद्ध किया। वह एक अद्भुत सी बात हुई। प्रजानाथ! युद्ध में कुपित हुए द्रौपदी के पाँच पुत्रों ने विषधर सर्प के समान आकार वाले भयंकर बाणों द्वारा आपके पुत्र दुर्योधन को आगेबढ़ने से रोक दिया। राजन! तब आपके दुर्धर्ष पुत्र ने भी तीखे सायकों द्वारा रणभूमि में द्रौपदी के पाँचों पुत्रों पर पृथक्-पृथक् प्रहार किया। फिर उनके द्वारा भी अत्यन्त घायल किये जाने पर आपका पुत्र रक्त से नहा उठा और गेरू आदि धातुओं से मिश्रित झरनों के जल से युक्त पर्वत की भाँति शोभा पाने लगा। राजन्! तदनन्तर बलवान् भीष्म भी संग्रामभूमि में पाण्डव सेना को उसी प्रकार खदेड़ने लगे, जैसे चरवाहा पशुओं को हाँकता है। प्रजानाथ! तदनन्तर शत्रुओं का संहार करते हुए अर्जुन के गाण्डीव धनुष का घोष सेना के दक्षिण भाग से प्रकट हुआ। भारत! वहाँ समर में कौरवों और पाण्डवों की सेनाओं में चारों ओर कबन्ध उठने लगे। वह सेना एक समुद्र के समान थी। रक्त ही वहाँ जल के समान था। बाणों की भँवर उठती थी। हाथी द्वीप के समान जान पड़ते थे और घोड़े तरंग की शोभा धारण करते थे। रथरूपी नौकाओं के द्वारा नरश्रेष्ठ वीर उस सैन्यसागर को पार करते थे। वहाँ सैकड़ों और हजारों नरश्रेष्ठ धरती पर पडे़ दिखायी देते थे। उनमें से कितनों के हाथ कट गये थे, कितने ही कवचहीन हो रहे थे और बहुतों के शरीर छिन्न-भिन्न हो गये थे। भरतश्रेष्ठ! मरकर गिरे हुए मतवाले हाथी खून से लथपथ हो रहे थे। उनसे ढकी हुई वहाँ की भूमि पर्वतों से व्याप्त सी जानपड़ती थी। भारत! हमने वहाँ आपके और पाण्डवों के सैनिकों का अद्भुत उत्साह देखा। वहाँ ऐसा कोई पुरूष नहीं था, जो युद्ध न चाहता हो। इस प्रकार महान् यश की अभिलाषा रखते और युद्ध में विजय चाहते हुए आपके वीर सैनिक पाण्डवों के साथ युद्ध करते थे।

इस प्रकार श्री महाभारत भीष्‍म पर्व के अन्‍तर्गत भीष्‍मवध पर्व में संकुल युद्ध विषयक अठहत्‍तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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