"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 160 श्लोक 23-43" के अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: षष्‍टयधिकशततम  अध्याय: श्लोक 23-43 का हिन्दी अनुवाद </div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योग पर्व: षष्‍टयधिकशततम  अध्याय: श्लोक 23-43 का हिन्दी अनुवाद </div>
  

०५:३६, २५ जुलाई २०१५ का अवतरण

षष्‍टयधिकशततम (160) अध्‍याय: उद्योग पर्व (उलूकदूतागमन पर्व)

महाभारत: उद्योग पर्व: षष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 23-43 का हिन्दी अनुवाद

यह सोचकर वे सभी उस विलावके पास गये और इस प्रकार बोले—मामाजी ! हम सब लोग आपकी कृपासे सुख पूर्वक विचरना चाहते हैं। आप ही हमारे निर्भय आश्रय हैं और आप ही हमारे परम सुदृढ हैं। हम सब लोग एक साथ संगठित होकर आपकी शरणमें आये है। आप सदा धर्ममें तत्‍पर रहते हैं ओर धर्ममेंही आप की निष्‍ठा है। महामते ! जैसे वज्रधारी इन्‍द्र, देवताओंकी रक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप हमारा संरक्षण करें। प्रजानाथ ! उन सम्‍पूर्ण चूहोंके द्वारा इस प्रकार कहे जानेपर मूषकोंके लिये यमराजस्‍वरूप उस बिलावने उन सबको इस प्रकार उत्‍त्‍र दिया– मैं तपस्‍या भी करूं और तुम्‍हारी रक्षा भी—इन दोनों कार्योंका परस्‍पर सम्‍बन्‍ध मुझे दिखायी नहीं देता है—ये दोनों काम एक साथ नहीं चल सकते हैं। तथापि मुझे तुमलोगोंके हितकी बात भी अवश्‍य करनी चाहिये। तुम्‍हें भी प्रतिदिन मेरी एक आज्ञाका पालन करना होगा। मैं तपस्‍या करते-करते बहुत थक गया हूं और दृढतापूर्वक संयम-नियमके पालनमें लगा रहता हूं। बहुत सोचनेपर भी मुझे अपने भीतर चलने-फिरने की कोई शक्ति नहीं दिखायी देती; अत: तात ! तुम्‍हें सदा मुझे यहां से नदीके तटतक पहुंचाना पडेगा। भरतश्रेष्‍ठ ! ‘बहुत अच्‍छा’ कहकर चूहोंने बिलावकी आज्ञाका पालन करनेके लिये हामी भर ली और वृद्ध तथा बालकोंसहित अपना सारा परिवार उस बिलावको सौंप दिया। फिर तो वह पापी एवं दुष्‍टात्‍मा बिलाव प्रतिदिन चूहोंको खा-खाकर मोटा और सुंदर होने लगा। उसके अंगोंकी एक-एक जोड़ मजबूत हो गयी। इधर चूहोंकी संख्‍या बडे वेगसे घटने लगी और वह बिलाव तेज और बलसे सम्‍पन्‍न हो प्रतिदिन बढने लगा। तब वे चूहे परस्‍पर मिलकर एक-दूसरेसे कहने लगे— क्‍यों जी ! क्‍या कारण है कि मामा तो नित्‍य मोटा-ताजा होता जा रहा है और हमारी संख्‍या बडे वेग से घटती चली जा रही है।

राजन्‍ ! उन चूहोंमें कोई डिंडिक नामवाला चूहा सबसे अधिक समझदार था। उसने मूषकोंके उस महान्‍ समुदायसे इस प्रकार कहा— तुम सब लोग विशेषत: ऐ साक नदीके तटपर जाओ। पीछेसे मैं भी मामाके साथ ही वहां जाऊँगा। तब बहुत अच्‍छा, बहुत अच्‍छा’ कहकर उन सबने डिंडिककी बडी प्रशंसा की और यथाचित्‍तरूपसे उसक सार्थक वचनोंका पालन किया। बिलावको चूहोंकी जागरूकताका कुछ पता नहीं था। अत: वह डिंडिक को भी खा गया। तदन्‍तर एक दिन सब चूहे एक साथ मिलकर आपसमें सलाह करने लगे। उनमें कोलिक नामसे प्रसिद्ध कोई चूहा था, जो अपने भाई-बन्‍धुओंमें सबसे बूढा था। उसने सब लोगोंको यथार्थ बात बतायी-भाइयों ! मामाको धर्माचारणकी रत्‍तीभर भी कामना नहीं है। उसने हम-जैसे लोगोंको धोखा देनेके लिये ही जटा बढा रक्‍खी है। जो फल—मूल खानेवाला है, उसकी विष्‍ठामें चाल नहीं होते। उसके अंग दिनों-दिन ह्रष्‍ट–पुष्‍ट होते जाते हैं ओर हमारा यह दल रोज-रोज घटता जा रहा है। आज सात आठ दिनोंसे डिंडिकका भी दर्शन नहीं हो रहा है। कोलिककी यह बात सुनकर सब चूहे भाग गये और वह दुष्‍टात्‍मा बिलाव भी अपना-सा मुंह लेकर जैसे आया था, वैसे चला गया। दुष्‍टामन्‍ ! तुमने भी इसी प्रकार विडालव्रत धारण कर रखा है। जैसे चूहेमें बिडालनेधर्माचरणका ढोंग रच रखा था, उसी प्रकार तुम भी जाति-भाइयों मे धर्माचारी बने फिरते हो। तुम्‍हारी बातें तो कुछ ओर हैं; परंतु कर्म कुछ और ही ढंगका दिखायी देता है। तुम्‍हारा वेदाध्‍ययन और शान्‍त-स्‍वभाव लोगोंको दिखाने के लिये पाखण्‍डमात्र है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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