"महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 26 श्लोक 10-20": अवतरणों में अंतर
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०९:४८, २२ अगस्त २०१५ का अवतरण
षड्विंश (26) अध्याय: भीष्म पर्व (श्रीमद्भगवदगीता पर्व)
हे भरतवंशी धृतराष्ट्र ! अर्न्तयामी श्रीकृष्ण महाराज दोनों सेनाओं के बीच में शोक करते हुए उस अर्जुन को हँसते हुए से यह व1चन बोले। सम्बन्ध – उपर्युक्त प्रकार से चिन्तामग्न अर्जुन ने जब भगवान् के शरण होकर अपने महान् शोक की निवृत्ति का उपाय पूछा और यह कहा कि इस लोक और परलोक का राज्यसुख इस शोक की निवृत्ति का उपाय नहीं है, तब अर्जुन को अधिकारी समझकर उसके शोक और मोह को सदा के लिये नष्ट करने के उद्देश्य से भगवान् पहले नित्य और अनित्य वस्तु के विवेचनपूर्वक सांख्ययोग की दृष्टि से भी युद्ध करना कर्तव्य है, ऐसा प्रतिपादन करते हुए सांख्यनिष्ठा का वर्णन करते हैं- श्रीभगवान् बोले – हे अर्जुन ! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिये शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है; परन्तु जिनके प्राण चले गये हैं, उनके लिये और जिनके प्राण नहीं गये हैं, उनके लिये भी पण्डितजन शोक नहीं करते ।
जैसा जीवात्मा की इस देह में बालकपन, जवानी और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही अन्य शरीर की प्राप्ति होती है; उस विषय में धीर पुरूष मोहित नहीं होता । अर्थात जैसे कुमार, युवा और जरा-अवस्थारूप स्थूल शरीर का विकार अज्ञान से आत्मा में भासता है, वैसे ही एक शरीर से दूसरे शरीर को प्राप्त होना रूप सूक्ष्म शरीर का विकार भी अज्ञान से ही आत्मा में भासता है, इसलिये तत्व को जानने वाला और पुरूष मोहित नहीं होता। हे कुन्तीपुत्र ! सर्दी-गर्मी और सुख-दुःखों को देने वाले इन्द्रिय और विषयों के संयोग तो उत्पत्ति – विनाशशील और अनित्य है; इसलिये भारत ! उनको तू सहन कर । क्योंकि हे पुरूषश्रेष्ठ ! दुःख-सुख को समान समझने वाले जिस धीर पुरूष को ये इन्द्रिय और विषयों के संयोग व्याकुल नहीं करते, वह मोक्ष के योग्य होता है ।सम्बन्ध – बारहवें और तेरहवें श्लोक में भगवान् ने आत्मा की नित्यता और निर्विकारता का प्रतिपादन किया गया तथा चौदहवें श्लोक में इन्द्रियों के साथ विषयों के संयोग को अनित्य बतलाया, किन्तु आत्मा क्यों नित्य है और ये संयोग क्यों अनित्य है ? इसका स्पष्टीकरण नहीं किया गया; अतएव श्लोक में भगवान् नित्य और अनित्य वस्तु के विवेचन की रीति बतलाने के लिये दोनों के लक्षण बतलाते हैं – असत् वस्तु की तो सत्ता नहीं है और सत् का अभाव नहीं है । इस प्रकार इन दोनों का ही तत्त्व तत्त्वज्ञानी पुरूषों द्वारा देखा गया हैसन्दर्भ त्रुटि: <ref>
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