"कूका" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो (Adding category Category:सिख धर्म (को हटा दिया गया हैं।))
छो (श्रेणी:सिख धर्म; Adding category Category:सिक्ख धर्म (को हटा दिया गया हैं।))
पंक्ति ३१: पंक्ति ३१:
  
 
[[Category:नया पन्ना]]
 
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:सिख धर्म]]
+
[[Category:सिक्ख धर्म]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

१५:०६, ३ सितम्बर २०११ का अवतरण

लेख सूचना
कूका
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 83-84
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

कूका एक सिख संप्रदाय जिसे नामधारी भी कहते हैं। इस सप्रंदाय की स्थापना रामसिंह नामक एक लुहार ने की थी जिसका जन्म १८२४ ई. में लुधियाना जिले के भेणी नामक ग्राम में हुआ था। उन दिनों सिख धर्म का जो प्रचलित रूप था वह रामसिंह को मान्य न था। गुरु नानक के समय जो धर्म का स्वरूप था उसे पुन: प्रतिष्ठित करने के निमित्त वे लोकप्रचलित सामाजिक एवं धार्मिक आचार विचार की कटु आलोचना करने लगे। धीरे धीरे उनके विचारों से सहमत होनेवाले लोगों का एक सप्रंदाय बन गया।

इस धार्मिक संप्रदाय ने आगे चलकर एक क्रांतिकारी राष्ट्रीय दल का रूप धारण कर लिया। महाराष्ट्र के संत रामदास ने महाराष्ट्र में स्वतंत्रता के मंत्र फूँके थे, कुछ उसी तरह का कार्य रामसिंह ने भी किया; और १८६४ ई. में उन्होंने अपने अनुयायियों को ब्रिटिश सरकार से असहयोग करने का आदेश दिया। इस आदेश के फलस्वरूप इस संप्रदाय ने पंजाब में स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। तब सरकार ने इस पर कठोर प्रतिबंध लगा दिया। रामसिंह और उनके अनुयायियों ने गुप्त रूप से कार्य करना आरंभ किया। गुप्त रूप से शास्त्रारत्र एकत्र करना और सैनिकों को ब्रिटिश सरकार के विस्र्द्ध उभारने का काम किया जाने लगा। इस प्रकार वे लोग पाँच वर्ष तक गुप्त रूप से कार्य करते रहे। १८७२ ई. में एक जगह मुसलमानों ने गोवध करना चाहा। कूकापंथयों ने उसका विरोध किया। दोनों दलों के बीच गहरा संघर्ष हुआ। ब्रिटिश सरकार ने रामसिंह को गिरफ्तार कर ब्रह्मदेश भेज दिया जहाँ १८८५ ई. में उनका निधन हुआ। इसके बाद कूकापंथ का विद्रोहात्मक रूप समाप्त हो गया किंतु धार्मिक संप्रदाय के रूप में पंजाब में आज भी लोहार, जाट आदि अनेक लोगों के बीच इसका महत्व बना हुआ है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ