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कुमारजीव
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3 |
पृष्ठ संख्या | 65 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | सुधाकर पांडेय |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1976 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | रामशंकर मिश्र |
कुमारजीव प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु। मध्य एशिया के कुची प्रदेश के निवासी। इनके पिता कुमारायण नाम के भारतीय थे। कुछ अज्ञात कारणवश ये भारत छोड़कर पामीर के दुर्गम मार्ग से होते कुची पहुँचे। वहाँ के राजा ने इनका हार्दिक स्वागत किया और श्ध्रीा राजगुरु का पद प्रदान किया। उन्होंने जीवा नाम की एक राजकुमारी से विवाह किया। कुमारजीव इन्हीं के पुत्र थे। कुची मे कुमारजीव की प्रारंभिक शिक्षा हुई। जब वे नौ वर्ष के हुए तो उनकी माँ उन्हें उच्च शिक्षा के लिए कश्मीर ले आई। कश्मीर में कुमारजीव ने बैद्ध साहित्य और दर्शन का अध्ययन किया। बौद्ध साहित्य का विधिवत अध्ययन किया। बौद्ध साहित्य का विधिवत अध्ययन कर अपनी माता के साथ मध्य एशिया के प्रसिद्ध बौद्ध केंद्रों का भ्रमण करते हुए ये कुची पहुँचे। वहाँ विद्वान के रूप में उनकी ख्याति फैली। वे भारतीय ज्ञान के महान कोष माने जाने लगे। ये पहले हीनयानके सर्वास्तिवादी संप्रदाय के समर्थक थे, किंतु कुची लौटने पर इन्होंने महायान मत स्वीकार कर लिया।
कुची मे कुमारजीव अधिक दिनों तक नहीं रह सके। कुची का चीन से राजनीतिक संबंध बिगड़ गया । ३७३ ई. में चीन से घोर युद्ध के बाद कुची की पराजय हुई और कुमारजीव बंदी बनाकर चीन ले जाए गए। उनकी ख्याति चीन मे पहले से ही फैल चुकी थी। वहाँ वे लींग-चाऊ के विशेष आमंत्रण पर वे राजधानी गए। यहाँ ये अपने जीवन के अंतिम काल तक रहे। पश्चात् चीन के सम्राट के विशेष आमंत्रण पर वे राजधानी गए। यहाँ ये अपने जीवन के अंतिम काल तक रहे। ४१३ ई. मे उनकी मृत्यु हुई।
चीन में रहकर उन्होंने अनेक भारतीय बौद्ध ग्रथों का चीनी भाषा में अनुवाद किया। ये भारतीय बौद्ध ग्रंथों का चीनी में अनुवाद करनेवालों में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। पुण्यत्रात के साथ मीलकर ४०४ में विनयपिटक का नागार्जुन के महाप्रज्ञापारमिता-सूत्रशास्त्र तथा दशभूमि-विभाषा शास्त्र, जो दशभूमिसूत्र का भाष्य है, ४०५ ई. मे चीनी मे अनुवाद किया। वे भारतीय बौद्ध साहित्य के लगभग ५० ग्रंथों के चीनी भाषा मे अनुवादक माने जाते है।
कुमारजीव की बौद्ध ग्रंथों के चीनी भाषा के अनुवादक के रूप मे ही नहीं प्रत्युत बौद्ध दर्शन के शिक्षक रूप में भी ख्याति है। चीन के विभिन्न भागों से विद्यार्थी और विद्वान् इनके पास आते थे। उनमे से अनेक शिष्य बने। कहा जाता है, उनके ३,००० शिष्य थे।
टीका टिप्पणी और संदर्भ