"महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 142 श्लोक 1-18": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: द्विचत्वारिंशदधिकशततमो अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: द्रोणपर्व: द्विचत्वारिंशदधिकशततमो अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
१०:३७, ५ जुलाई २०१५ का अवतरण
द्विचत्वारिंशदधिकशततमो (142) अध्याय: द्रोणपर्व (जयद्रथवध पर्व )
भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्वक सम्भाषण और युद्ध तथा सात्यकि का सिर काटने के लिये उद्यत हुए भूरिश्रवा की भुजा का अर्जुन द्वारा उच्छेद संजय कहते हैं-राजन ! रणदुर्मद सात्यकि को आते देख भूरिश्रवाने क्रोधपूर्वक सहसा उन पर आक्रमण किया। महाराज ! कुरुनन्दन भूरिश्रवा ने उस समय शिनिप्रवर सात्यकि से इस प्रकार कहा-‘युयुधान ! बड़े सौभाग्य की बात है कि आज तुम मेरी आंखो के सामने आ गये। आज युद्ध में मैं अपनी बहुत दिनों की इच्छा पूर्ण करूंगा। यदि तुम मैदान छोड़कर भाग नहीं गये तो आज मेरे हाथ से जीवित नहीं बचोगे। दाशार्ह ! तुम सदा अपने को बड़ा शूरवीर मानते हो। आज मैं समरभूमि में तुम्हारा वध करके कुरुराज दुर्योधन को आनन्दित करूंगा। आज युद्ध में वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों एक साथ तुम्हें मेरे बाणों से दग्ध होकर पृथ्वी पर पड़ा हुआ देखेंगे। आज जिन्होंने इस सेना के भीतर तुम्हारा प्रवेश कराया है, वे धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिर मेरे द्वारा तुम्हारे मारे जाने का समाचार सुनकर तत्काल लज्जित हो जायंगे। आज जब तुम मारे जाकर खून से लथपथ हो धरती पर सो जाओगे, उस समय कुन्तीपुत्र अर्जुन मेरे पराक्रम को अच्छी तरह जान लेंगे। जैसे पूर्वकाल में देवासुर-संग्राम में इन्द्र का राजा बलि के साथ युद्ध हुआ था, उसी प्रकार तुम्हारे साथ मेरा युद्ध हो, यह मेरी बहुत दिनों की अभिलाषा थी। सात्वत ! आज मैं तुम्हें अत्यन्त घोर संग्राम का अवसर दूंगा, इससे तुम मेरे बल, वीर्य और पुरुषार्थ का यथार्थ परिचय प्राप्त करोगे। जैसे पूर्वकाल में श्रीरामचन्द्रजी के भाई लक्ष्मण के द्वारा युद्ध में रावण कुमार इन्द्रजीत मारा गया था, उसी प्रकार इस रणभूमि में मेरे द्वारा मारे जाकर तुम आज ही यमराज की संयमनीपुरी की ओर प्रस्थान करोगे। माधव ! आज तुम्हारे मारे जाने पर श्रीकृष्ण, अर्जुन और धर्मराज युधिष्ठिर उत्साहशून्य हो युद्ध बंद कर देंगे, इसमें संशय नहीं है। ‘मधुकुलनन्दन ! आज तीखे बाणों से तुम्हारी पूजा करके मैं उन वीरों की स्त्रियों को आनन्दित करूंगा, जिन्हें रणभूमि में तुमने मार डाला है। माधव ! जैसे कोई क्षुद्र मृगसिंह की दृष्टि में पड़कर जीवित नही रह सकता, उसी प्रकार मेरी आंखों के सामने आकर अब तुम जीवित नही छूट सकोगे। राजन ! युयुधान ने भूरिश्रवा की यह बात सुनकर हंसते हुएसे यह उत्तर दिया-कुरुनन्दन ! युद्ध में मुझे कभी किसी से भय नहीं होता है। मुझे केवल बातें बनाकर नहीं डराया जा सकता। संग्राम में जो मुझे शस्त्रहीन कर दे, वही मेरा वध कर सकता है । जो युद्ध में मुझे मार सकता है, वह सदा सर्वत्र अपने शत्रुओं का वध कर सकता है। अस्तु, व्यर्थ ही बहुत सी बातें बनाने से क्या लाभ ? तुमने जो कुछ कहा है, उसे करके दिखाओ। शरत्काल के मेघों के समान तुम्हारे इस गर्जन-तर्जन का कुछ फल नहीं है। वीर ! तुम्हारी यह गर्जना सुनकर मुझे हंसी आती है। कौरव ! इस लोक में मेरी भी तुम्हारे साथ युद्ध करने की बहुत दिनों से अभिलाषा थी। वह आज पूरी हो जाय। तात ! तुमसे युद्ध की अभिलाषा रखने वाली मेरी बुद्धि मुझे जल्दी करने के लिये प्रेरणा दे रही है। पुरुषाधम ! आज तुम्हारा वध किये बिना मैं पीछे नहीं हटूंगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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