"महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 4 श्लोक 1-21": अवतरणों में अंतर

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१४:५१, १९ जुलाई २०१५ का अवतरण

चतुर्थ अध्याय: शान्तिपर्व (राजधर्मानुशासनपर्व)

महाभारत: शान्तिपर्व : चतुर्थ अध्याय: श्लोक 1- 21 का हिन्दी अनुवाद

नारद जी कहते हैं-- भरतश्रेष्ठ! इस प्रकार भार्गव नन्दन परशुराम से ब्राह्मास्त्र पाकर कर्ण दुर्योधन के साथ आनन्दपूर्वक रहने लगा। राजन्! तदनन्तर किसी समय कलिग्ड़ देश के राजा चित्रागंद के यहां स्वयंवर महोत्सव में देश-देश के राजा एकत्र हुए। भरतनन्दन! कलिग्डराज की राजधानी राजपुर नामक नगर में थी, वह नगर बड़ा सुन्दर था। राजकुमारी को प्राप्त करने के लिये सैकड़ों नरेश वहां पधारे। दुर्योधन ने जब सुना कि वहां सभी राजा एकत्र हो रहे हैं तो वह स्वयं भी सुवर्णमय रथ पर आरूढ़ हो कर्ण के साथ गया। नृपश्रेष्ठ! वह स्वयंवर महोत्सव आरम्भ होने पर राजकन्या को पाने के लिये जो बहुत से नरेश वहां पधारे थे, उनके नाम इस प्रकार हैं। शिशुपाल, जरासंध, भीष्मक, वक्र, कपोतरोमा, नील, सुदृढ पराक्रमी रूक्मी, स्त्रीराज्य के स्वामी महाराज श्रृगाल, अशोक, शतधन्वा, भोज और वीर। ये तथा और भी बहुत से नरेश दक्षिण दिशा की उस राजधानी में गये। उनमें म्लेच्छ, आर्य, पूर्व और उत्तर सभी देशों के राजा थे। उन सबने सोने के बाजूबंद पहन रक्खे थे। सभी की अड़ग क्रान्ति शुद्ध सुवर्ण के समान दमक रही थी। सबके शरीर तेजस्वी थे और सभी व्याघ्र के समान उत्कट बलशाली थे। भारत! जब सब राजा स्वयंवर सभा में बैठ गये, तब उस राजकन्या ने धाय और खोजों के साथ रणभूमि में प्रवेश किया। भरतनन्दन! तत्पश्चात् जब उसे राजाओं के नाम सुना- सुनाकर उनका परिचय दिया जाने लगा, उस समय वह सुन्दरी राजकुमारी धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन के सामने से होकर आगे बढ़ने लगी । कुरूवंशी दुर्योधन को यह सहन नहीं हुआ कि राजकन्या उसे लाघकर अन्यत्र जाय। उसने समस्त नरेशों का अपमान करके उसे वहीं रोक लिया। राजा दुर्योधन को भीष्म और द्रोणाचार्य का सहारा प्राप्त था; इसलिये वह बल के मदसे उन्मत्त हो रहा था। उसने उस राजकन्या को रथ पर बिठाकर उसका अपहरण कर लिया। पुरूषोत्तम! डस समय शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ कर्ण रथ पर आरूढ़ हो हाथ में दस्ताने बांधे और तलवार लिये दुर्योधन के पीछे-पीछे चला। तदनन्तर युद्ध की इच्छा वाले राजाओं में से कुछ लोग कवच बांधने और कुछ रथ जोतने लगे। उन सब लोगों में बड़ा भारी संग्राम छिड़ गया। जैसे मेघ दो पर्वतों पर जलकी धारी बरसा रहे हों, उसी प्रकार अत्यन्त क्रोध में भरे हुए वे नरेश कर्ण और दुर्योधन दोनों टूट पड़े तथा उनके ऊपर बाणों की वर्षा करने लगे। कर्ण ने एक एक बाण से उन सभी आक्रमणकारी नरेशों के धनुष और बाण- समूहों को भूतल पर काट गिराया। तदनन्तर प्रहार करनेवालों में श्रेष्ठ कर्ण ने जल्दी-जल्दी बाण मारकर उन सब राजाओं को व्याकुल कर दिया, कोई धनुष से रहित हो गये, कोई अपने धनुष को ऊपर ही उठाये रह गये, कोई बाण, कोई रथशक्ति और कोई गदा लिये रह गये। जो जिस अवस्था में थे, उसी अवस्थामें उन्हें व्याकुल करके कर्ण ने उनके सारथियों को मार डाला और उन बहु-संख्यक नरेशों को परास्त कर दिया। वे पराजित भूपाल भग्रमनोरथ हो स्वयं ही घोडे़ हाकते और ’बचाओ-बचाओ’, की रट लगाते हुए युद्ध छोड़कर भाग गये । दुर्योधन कर्ण से सुरक्षित हो राजकन्या को साथ लिये राजी-खुशी हस्तिनापुर वापस आ गया।

इस प्रकार श्रीमहाभार शान्तिपर्व के अन्तर्गत राजधर्मानुशासन पर्व में दुर्योधन के द्वारा स्वयंवर में राजकन्या का अपहरण नामक चैथा अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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