"महाभारत शल्य पर्व अध्याय 28 श्लोक 1-20": अवतरणों में अंतर
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व अष्टाविंश अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद </div> | ||
सहदेव के द्वारा उलूक और शकुनि का वध एवं बची हुई सेना सहित दुर्योधन का पलायन | सहदेव के द्वारा उलूक और शकुनि का वध एवं बची हुई सेना सहित दुर्योधन का पलायन |
०७:०७, २२ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
अष्टाविंश (28) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
सहदेव के द्वारा उलूक और शकुनि का वध एवं बची हुई सेना सहित दुर्योधन का पलायन
संजय कहते हैं-राजन ! हाथी-घोड़ों और मनुष्यों का संहार करने वाले उस युद्ध का आरम्भ होने पर सुबलपुत्र शकुनि ने सहदेव पर धावा किया । तब प्रतापी सहदेव ने भी अपने ऊपर आक्रमण करने वाले शकुनि पर तुरंत ही बहुत से शीघ्रगामी बाण समूहों की वर्षा आरम्भ कर दी, जो आकाश में टिडडी दलों के समान छा रहे थे । महाराज ! शकुनि के साथ उलूक भी था, उसने भीमसेन को दस बाणों से बींध डाला। फिर शकुनि ने भी तीन बाणों से भीम को घायल करके नब्बे बाणों से सहदेव को ढक दिया । राजन् ! वे शूरवीर समरांगण में एक-दूसरे से टक्कर लेकर कंक और मोर के से पंख वाले तीखे बाणों द्वारा परस्पर आघात प्रत्याघात करने लगे। उनके वे बाण सुनहरी पांखों से सुशोभित, शिला पर साफ किये हुए और कानों तक खींच कर छोड़े गये थे । प्रजानाथ ! उन वीरों के धनुष और बाहुबल से छोड़े गये बाणों की उस वर्षा ने सम्पूर्ण दिशाओं को उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे मेघ की जलधारा सारी दिशाओं को ढक देती है । भारत ! तदनन्तर क्रोध में भरे हुए भीमसेन और सहदेव दोनों महाबली वीर युद्धस्थल में भीषण संहार मचाते हुए विचरने लगे । भरतनन्दन ! उन दोनों के सैकड़ों बाणों से ढकी हुई आपकी सेना जहां-तहां अन्धकारपूर्ण आकाश के समान प्रतीत होती थी । प्रजानाथ ! बाणों से ढके हुए भागते घोड़ों ने, जो बहुत से मरे हुए वीरों को अपने साथ इधर-उधर खींचे लिये जाते थे, यत्र-तत्र जाने का मार्ग अवरुद्ध कर दिया । मान्यवर नरेश ! घुड़सवारों सहित मारे गये घोड़ों के शरीरों, कटे हुए कवचों, टूक-टूक हुए प्रासों, ऋष्टियों, शक्तियों, खगों, भालों और फरसों से ढकी हुई पृथ्वी बहुरंगी फलों से आच्छादित हो चितकबरी हुई सी जान पड़ती थी ।। महाराज ! वहां रणभूमि में कुपित हुए योद्धा एक-दूसरे से भिड़कर परस्पर चोट करते हुए घूम रहे थे । कमल केसर की सी कान्ति वाले कुण्डलमण्डित कटे हुए मस्तकों से यह पृथ्वी ढक गयी थी। उनकी आंखें घूर रही थी और उन्होंने रोष के कारण अपने ओठों को दांतों से दबा रखाथा । महाराज ! अंगद, कवच, खंग, प्रास और फरसों सहित कटी हुई हाथी की सूड़ की समान भुजाओं, छिन्न-भिन्न एवं खड़े होकर नाचते हुए कबन्धों तथा अन्य लोगों से भरी और मांसभक्षी जीव-जन्तुओं से आच्छादित हुई यह पृथ्वी बड़ी भयंकर प्रतीत होती थी । इस प्रकार उस महासमर में जब कौरवों के पास बहुत थोड़ी सेना शेष रह गयी, तब हर्ष और उत्साह में भर कर पाण्डव वीर उन सब को यमलोक पहुंचाने लगे । इसी समय प्रतापी वीर सुबलपुत्र शकुनि ने अपने प्रास से सहदेव के मस्तक पर गहरी चोट पहुंचायी । महाराज ! उस चोट से व्याकुल होकर सहदेव रथ की बैठक में धम्म से बैठ गये। उनकी वैसी अवस्था देख प्रतापी भीमसेन अत्यन्त कुपित हो उठे। भारत ! उन्होंने आपकी सारी सेनाओं को आगे बढ़ने से रोक दिया तथा सैकड़ों और हजारों नाराचों की वर्षा करके उन सब को विदीर्ण कर डाला । शत्रुदमन भीमसेन ने शत्रु सेना का विदीर्ण करके बड़े जोर से सिंहनाद किया। उनकी उस गर्जना से भयभीत हो शकुनि के पीछे चलने वाले सारे सैनिक घोड़े और हाथियों सहित सहसा भाग खड़े हुए ।
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