"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 163 श्लोक 17-41": अवतरणों में अंतर

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== एक सौ तिरेसठवाँ अध्‍याय: उद्योगपर्व (उलूकदूतागमनपर्व)==
==त्रिष्‍टयधिकशततम (163) अध्‍याय: उद्योग पर्व (उलूकदूतागमन पर्व)==
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योगपर्व: त्रिष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-41 का हिन्दी अनुवाद </div>


<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: उद्योगपर्व: एक सौ तिरेसठवाँ अध्याय: श्लोक 32- 59 का हिन्दी अनुवाद </div>
दुर्योधन ! तू अभिमान, दर्प, क्रोध, कटुभाषण, निष्‍ठुरता, अहंकार, आत्‍मप्रशंसा, क्रूरता, तीक्ष्‍णता, धर्मविद्वेष, अधर्म, अतिवाद, वृद्ध पुरूषोंके अपमान तथा टेढी आँखोंसे देखनेका और अपने समस्‍त अन्‍याय एवं अत्‍याचारों का घोर फल शीघ्र ही देखेगा। मूढ नारधम ! भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ मेरे कुपित होने पर तू किस कारण से जीवन तथा राज्‍य की आशा करता है। भीष्‍म, द्रोणाचार्य तथा सूतपुत्र कर्णके मारे जानेपर तू अपने जीवन, राज्‍य तथा पुत्रोंकी रक्षाकी ओरसे निराश हो जायेगा। सुयोधन ! तू अपने भाइयों और पुत्रोंका मरण सुनकर और भीमसेनके हाथसे स्‍वयं भी मारा जाकर अपने साथी को याद करेगा। शकुनिपुत्र ! मैं दूसरी बार प्रतिज्ञा करना नहीं जानता। तुझसे सच्‍ची बात कहता हूं । यह सब कुछ सत्‍य होकर रहेगा ।तत्‍पश्‍चात युधिष्ठिर ने भी धूर्त जुआरीके पुत्र उलूकसे इस प्रकार कहा—वत्‍स उलूक ! तू दुर्योधनके पास जाकर मेरी यह बात कहना-सुयोधन ! तुझे अपने आचरणके अनुसार ही मेरे आचरण को नहीं समझना चाहिये। मैं दोनोंके बर्तावका तथा सत्‍य और झूठका भी अन्‍तर समझता हूं। मैं तो कीडों और चीटियों को भी कष्‍ट पहुंचाना नहीं चा‍हता; फिर अपने भाई-बन्‍धुओं अथवा कुटुम्‍बीजनोंके वधकी कामना किसी प्रकार भी कैसे कर सकता हूं । परंतु तेरा मन लोभ और तृष्‍णा में डूबा हुआ है। तू मूर्खता के कारण अपनी झूठी प्रशंसा करता है और भगवान श्रीकृष्‍ण के हितकारण वचनको भी नहीं मान रहा है। अब इस समय अधिक कहनेसेक्‍या लाभ तू अपने भाई-बन्‍धुओंके साथ आकर युद्ध कर। उलूक ! तू मेरा अप्रिय करनेवाले दुर्योधनसे कहना—तेरा संदेश सुना ओर उसका अभिप्राय समझ लिया । तेरी जैसी इच्‍छा है, वैसा ही हो। तदन्‍तर भीमसेनने पुन: राजकुमार उलूकसे यह बात कही–उलूक ! तू दुर्बुद्धि, पापात्‍मा, शठ, कपटी, पापी तथा दुराचारी दुर्योधनसे मरे यह बात भी कह देना।


नराधम ! तुझे या तो मरकर गीधके पेटमें निवास करना चाहिये या हस्तिनापुर में जाकर छिप जाना चाहिये । मैंने सभामें जो प्रतिज्ञा की है, उसे अवश्‍य सत्‍य कर दिखाऊंगा । यह बात मैं सत्‍यकी ही शपथ खाकर तुझसे कहता हूं। मैं युद्धमें दुशासनको मारकर उसका रक्‍त पीऊँगा और तेरे सारे भाइयोंको मारकर तेरी जाँघें भी तोड़कर ही रहूंगा। सुयोधन ! मैं ध्रतराष्‍ट्र के सभी पुत्रों की मृत्‍यु हूं। इसी प्रकार सारे राजकुमारोंकी मृत्‍युका कारण अभिमन्‍यु होगा, इसमें संशय नहीं है। मैं अपने पराक्रम द्वारा तुझे अवश्‍य संतुष्‍ट करूंगा। तू मेरी एक बात और सुन ले। जनमेजय ! तत्‍पश्‍चात्‍ नकुलने भी इस प्रकार कहा- उलूक ! तू करूकुलकलंक ध्रतराष्‍ट्र दुर्योधनसे कहना, तेरी कही हुई सारी बातें मैंने यथार्थरूपसे सुन लीं। कौरव ! तू मुझे जैसा उपदेश दे रहा है, उसके अनुसार ही मैं सब कुछ करूंगा। राजन्‍ ! तदन्‍तर सहदेवने भी यह सार्थक वचन कहा—महाराज दुर्योधन ! आज जो तेरी बुद्धि है, वह व्‍यर्थ हो जायेगी। इस समय हमारे इस महान क्‍लेशका जो तू हर्षोत्‍फुल्‍ल होकर वर्णन कर रहा है, इसका फल यह होगा कि तू अपने पुत्र, कुटुम्‍बी तथा बन्‍धुजनोंसहित शोकमें डूब जायेगा। तदन्‍तर बूढे राजा विराट और द्रुपदने उलूकसे इस प्रकार कहा—उलूक ! तू दुर्योधनसे कहना, राजन्‍ ! हम दोनोंका विचार सद यही रहता है कि हम साधु पुरूषोंके दासहो जायें। वे दोनों हम विराट और द्रुपददास हैं या अदा; इसका निर्णय युद्धमें जिसका जैसा पुरूषार्थ होगा, उसे देखकर किया जायेगा। तत्‍पश्‍चात शि‍खण्‍डीने उलूकसे इस प्रकार कहा—उलूक ! सदा पापमें ही तत्‍पर रहनेवाले अपने राज्‍यके पास जाकर तू इस प्रकार कहना-राजन्‍ ! तुम संग्राम में मुझे भयानक कर्म करते हुए देखना । जिसके पराक्रमका भरोसा करके तुम युद्धमें अपनी विजय हुई मानते हो, तुम्‍हारे उस पिताकहको मैं रथसे मार गिराऊँगा। निश्‍चय ही महामना विधाता ने भीष्‍मके वधके लिये ही मेरी सृष्टि की है। अत: मैं समस्‍त धनुर्धरों के देखते-देखते भीष्‍मको मार डालंगा। इसके बाद धृष्‍टद्युम्न ने भी कितबकुमार उलूकसे यह बात कही—उलूक ! तू राजपुत्र दुर्योधनसे मेरी यह बात कह देना, मैं द्रोणाचार्य को उनके गणों और बन्‍धु-बान्‍धवोंसहित मार डालूंगा। मुझे अपने पूर्वजों के महान चरित्रका अनुकरण अवश्‍य करना चाहिये । अत: मैं युद्धमें वह पराक्रम कर दिखाऊंगा, जैसा दूसरा कोई नहीं करेगा। तदन्‍तर धर्मराज युधिष्ठिरने करूणावश फिर यह महत्‍वपूर्ण बात कही—राजन्‍ ! मैं किसी प्रकार भी अपने कुटुम्बियों का वध नहीं करना चा‍हता। किंतु दुर्बुद्धे ! यह सब कुछ तेरे ही दोषसे प्राप्‍त हुआ है। तात उलूक ! तेरी इच्‍छा हो, तो शीघ्र चला जा। अथवा तेरा कल्‍याण हो, तू यहीं रह; क्‍योंकि हम भी तेरे भाई-बन्‍धु ही हैं। जनमेजय ! तदन्‍तर उलूक धर्मपुत्र राजा युधिष्ठिरसे विदा ले जहाँ राजा दुर्योधन था, वहीं चला गया। वहाँ आकर उलूकने अमर्षशील दुर्योधनको अर्जुनका सारा संदेश ज्‍यों-का-त्‍यों सुना दिया। इसी प्रकार उसने भगवान श्रीकृष्‍ण, भीमसेन और धर्मराज युधिष्ठिर की पुरूषार्थ भरी बातोंका भी वर्णन किया। भारत ! फिर उसने नकुल, सहदेव, विराट, द्रुपद, धृष्‍टद्युम्न, शिखण्‍डी, भगवान श्रीकृष्‍ण तथा अर्जुनके भी सार वचनों को ज्‍यों–का-त्‍यों सुना दिया।  भारत ! उलूकका वह कथन सुनकर भरतश्रेष्‍ठ दुर्योधन ने दुशासन, कर्ण तथा शकुनिसे कहा-बन्‍धुओं ! राजाओं तथा मित्रोंकी सेनाओंको आज्ञा दे दो, जिससे समस्‍त सैनिक कल सूर्योदय से पूर्व ही तैयार हो कर युद्धके मैदानोंमें डट जायें। तत्‍पश्‍चात कर्णके भेजे हुए दूत बडी उतावलीके साथ रथों, ऊँट-ऊँटनियों तथा अत्‍यन्‍त बेगशाली अच्‍छे-अच्‍छे घोडों पर सवार हो तीव्र गतिसे सबको राजाकी यह आज्ञा सुनाने लगे कि कल सूर्योदय से पहले ही युद्धके लिये तैयार हो जाना चाहिये।
नराधम ! तुझे या तो मरकर गीधके पेटमें निवास करना चाहिये या हस्तिनापुर में जाकर छिप जाना चाहिये । मैंने सभामें जो प्रतिज्ञा की है, उसे अवश्‍य सत्‍य कर दिखाऊंगा । यह बात मैं सत्‍यकी ही शपथ खाकर तुझसे कहता हूं। मैं युद्धमें दुशासनको मारकर उसका रक्‍त पीऊँगा और तेरे सारे भाइयोंको मारकर तेरी जाँघें भी तोड़कर ही रहूंगा। सुयोधन ! मैं ध्रतराष्‍ट्र के सभी पुत्रों की मृत्‍यु हूं। इसी प्रकार सारे राजकुमारोंकी मृत्‍युका कारण अभिमन्‍यु होगा, इसमें संशय नहीं है। मैं अपने पराक्रम द्वारा तुझे अवश्‍य संतुष्‍ट करूंगा। तू मेरी एक बात और सुन ले। जनमेजय ! तत्‍पश्‍चात्‍ नकुलने भी इस प्रकार कहा- उलूक ! तू करूकुलकलंक ध्रतराष्‍ट्र दुर्योधनसे कहना, तेरी कही हुई सारी बातें मैंने यथार्थरूपसे सुन लीं। कौरव ! तू मुझे जैसा उपदेश दे रहा है, उसके अनुसार ही मैं सब कुछ करूंगा। राजन्‍ ! तदन्‍तर सहदेवने भी यह सार्थक वचन कहा—महाराज दुर्योधन ! आज जो तेरी बुद्धि है, वह व्‍यर्थ हो जायेगी। इस समय हमारे इस महान क्‍लेशका जो तू हर्षोत्‍फुल्‍ल होकर वर्णन कर रहा है, इसका फल यह होगा कि तू अपने पुत्र, कुटुम्‍बी तथा बन्‍धुजनोंसहित शोकमें डूब जायेगा। तदन्‍तर बूढे राजा विराट और द्रुपदने उलूकसे इस प्रकार कहा—उलूक ! तू दुर्योधनसे कहना, राजन्‍ ! हम दोनोंका विचार सद यही रहता है कि हम साधु पुरूषोंके दासहो जायें। वे दोनों हम विराट और द्रुपददास हैं या अदा; इसका निर्णय युद्धमें जिसका जैसा पुरूषार्थ होगा, उसे देखकर किया जायेगा।  


<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्‍तर्गत उलूकदूतागमनपर्वमें उलूकके लौट जानेसे सम्‍बन्‍ध रखनेवाला एक सौ तिरेसठवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।</div>
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 163 श्लोक 1-16|अगला=महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 163 श्लोक 42-59}}
 
{{लेख क्रम |पिछला=महाभारत उद्योगपर्व अध्याय 163 श्लोक 1-31|अगला=महाभारत उद्योगपर्व अध्याय 164 श्लोक 1-12}}


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==

०६:५४, २५ जुलाई २०१५ का अवतरण

त्रिष्‍टयधिकशततम (163) अध्‍याय: उद्योग पर्व (उलूकदूतागमन पर्व)

महाभारत: उद्योगपर्व: त्रिष्‍टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-41 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधन ! तू अभिमान, दर्प, क्रोध, कटुभाषण, निष्‍ठुरता, अहंकार, आत्‍मप्रशंसा, क्रूरता, तीक्ष्‍णता, धर्मविद्वेष, अधर्म, अतिवाद, वृद्ध पुरूषोंके अपमान तथा टेढी आँखोंसे देखनेका और अपने समस्‍त अन्‍याय एवं अत्‍याचारों का घोर फल शीघ्र ही देखेगा। मूढ नारधम ! भगवान श्रीकृष्‍ण के साथ मेरे कुपित होने पर तू किस कारण से जीवन तथा राज्‍य की आशा करता है। भीष्‍म, द्रोणाचार्य तथा सूतपुत्र कर्णके मारे जानेपर तू अपने जीवन, राज्‍य तथा पुत्रोंकी रक्षाकी ओरसे निराश हो जायेगा। सुयोधन ! तू अपने भाइयों और पुत्रोंका मरण सुनकर और भीमसेनके हाथसे स्‍वयं भी मारा जाकर अपने साथी को याद करेगा। शकुनिपुत्र ! मैं दूसरी बार प्रतिज्ञा करना नहीं जानता। तुझसे सच्‍ची बात कहता हूं । यह सब कुछ सत्‍य होकर रहेगा ।तत्‍पश्‍चात युधिष्ठिर ने भी धूर्त जुआरीके पुत्र उलूकसे इस प्रकार कहा—वत्‍स उलूक ! तू दुर्योधनके पास जाकर मेरी यह बात कहना-सुयोधन ! तुझे अपने आचरणके अनुसार ही मेरे आचरण को नहीं समझना चाहिये। मैं दोनोंके बर्तावका तथा सत्‍य और झूठका भी अन्‍तर समझता हूं। मैं तो कीडों और चीटियों को भी कष्‍ट पहुंचाना नहीं चा‍हता; फिर अपने भाई-बन्‍धुओं अथवा कुटुम्‍बीजनोंके वधकी कामना किसी प्रकार भी कैसे कर सकता हूं । परंतु तेरा मन लोभ और तृष्‍णा में डूबा हुआ है। तू मूर्खता के कारण अपनी झूठी प्रशंसा करता है और भगवान श्रीकृष्‍ण के हितकारण वचनको भी नहीं मान रहा है। अब इस समय अधिक कहनेसेक्‍या लाभ तू अपने भाई-बन्‍धुओंके साथ आकर युद्ध कर। उलूक ! तू मेरा अप्रिय करनेवाले दुर्योधनसे कहना—तेरा संदेश सुना ओर उसका अभिप्राय समझ लिया । तेरी जैसी इच्‍छा है, वैसा ही हो। तदन्‍तर भीमसेनने पुन: राजकुमार उलूकसे यह बात कही–उलूक ! तू दुर्बुद्धि, पापात्‍मा, शठ, कपटी, पापी तथा दुराचारी दुर्योधनसे मरे यह बात भी कह देना।

नराधम ! तुझे या तो मरकर गीधके पेटमें निवास करना चाहिये या हस्तिनापुर में जाकर छिप जाना चाहिये । मैंने सभामें जो प्रतिज्ञा की है, उसे अवश्‍य सत्‍य कर दिखाऊंगा । यह बात मैं सत्‍यकी ही शपथ खाकर तुझसे कहता हूं। मैं युद्धमें दुशासनको मारकर उसका रक्‍त पीऊँगा और तेरे सारे भाइयोंको मारकर तेरी जाँघें भी तोड़कर ही रहूंगा। सुयोधन ! मैं ध्रतराष्‍ट्र के सभी पुत्रों की मृत्‍यु हूं। इसी प्रकार सारे राजकुमारोंकी मृत्‍युका कारण अभिमन्‍यु होगा, इसमें संशय नहीं है। मैं अपने पराक्रम द्वारा तुझे अवश्‍य संतुष्‍ट करूंगा। तू मेरी एक बात और सुन ले। जनमेजय ! तत्‍पश्‍चात्‍ नकुलने भी इस प्रकार कहा- उलूक ! तू करूकुलकलंक ध्रतराष्‍ट्र दुर्योधनसे कहना, तेरी कही हुई सारी बातें मैंने यथार्थरूपसे सुन लीं। कौरव ! तू मुझे जैसा उपदेश दे रहा है, उसके अनुसार ही मैं सब कुछ करूंगा। राजन्‍ ! तदन्‍तर सहदेवने भी यह सार्थक वचन कहा—महाराज दुर्योधन ! आज जो तेरी बुद्धि है, वह व्‍यर्थ हो जायेगी। इस समय हमारे इस महान क्‍लेशका जो तू हर्षोत्‍फुल्‍ल होकर वर्णन कर रहा है, इसका फल यह होगा कि तू अपने पुत्र, कुटुम्‍बी तथा बन्‍धुजनोंसहित शोकमें डूब जायेगा। तदन्‍तर बूढे राजा विराट और द्रुपदने उलूकसे इस प्रकार कहा—उलूक ! तू दुर्योधनसे कहना, राजन्‍ ! हम दोनोंका विचार सद यही रहता है कि हम साधु पुरूषोंके दासहो जायें। वे दोनों हम विराट और द्रुपददास हैं या अदा; इसका निर्णय युद्धमें जिसका जैसा पुरूषार्थ होगा, उसे देखकर किया जायेगा।


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