"श्रीमद्भागवत महापुराण प्रथम स्कन्ध अध्याय 9 श्लोक 32-39": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण:  प्रथम स्कन्धः नवम अध्यायः श्लोक 32-39 का हिन्दी अनुवाद </div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">श्रीमद्भागवत महापुराण:  प्रथम स्कन्धः नवम अध्यायः श्लोक 32-39 का हिन्दी अनुवाद </div>


<center>'''युधिष्ठिरादि का भीष्मजी के पास जाना और भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए भीष्मजी का प्राण त्याग करना'''</center>
<center>'''युधिष्ठिरादि का भीष्मजी के पास जाना और भगवान  श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए भीष्मजी का प्राण त्याग करना'''</center>






भीष्मजी ने कहा—अब मृत्यु के समय मैं अपनी यह बुद्धि, जो अनेक प्रकार के साधनों का अनुष्ठान करने से अत्यन्त शुद्ध एवं कामनारहित हो गयी है, यदुवंशशिरोमणि अनन्त भगवान् श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित करता हूँ, जो सदा-सर्वदा अपने आनन्दमय स्वरुप में स्थित रहते हुए ही कही विहार करने की—लीला करने की इच्छा से प्रकृति को स्वीकार कर लेते हैं, जिससे यह सृष्टि परम्परा चलती है । जिनका शरीर त्रिभुवन-सुन्दर एवं श्याम तमाल के समान सांवला है, जिस पर सूर्यरश्मियों के समान श्रेष्ठ पीताम्बर लहराता रहता है और कमल-सदृश मुख पर घुँघराली अलकें लटकती रहती हैं उन अर्जुन-सखा श्रीकृष्ण में मेरी निष्कपट प्रीति हो ।
भीष्मजी ने कहा—अब मृत्यु के समय मैं अपनी यह बुद्धि, जो अनेक प्रकार के साधनों का अनुष्ठान करने से अत्यन्त शुद्ध एवं कामनारहित हो गयी है, यदुवंशशिरोमणि अनन्त भगवान  श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित करता हूँ, जो सदा-सर्वदा अपने आनन्दमय स्वरुप में स्थित रहते हुए ही कही विहार करने की—लीला करने की इच्छा से प्रकृति को स्वीकार कर लेते हैं, जिससे यह सृष्टि परम्परा चलती है । जिनका शरीर त्रिभुवन-सुन्दर एवं श्याम तमाल के समान सांवला है, जिस पर सूर्यरश्मियों के समान श्रेष्ठ पीताम्बर लहराता रहता है और कमल-सदृश मुख पर घुँघराली अलकें लटकती रहती हैं उन अर्जुन-सखा श्रीकृष्ण में मेरी निष्कपट प्रीति हो ।
मुझे युद्ध के समय की उनकी वह विलक्षण छबि याद आती है। उनके मुख पर लहराते हुए घुन्घ्राले बाल घोंड़ो की टॉप की धूल से मटमैले हो गये थे और पसीने की छोटी-छोटी बूँधें शोभायमान हो रही थीं। मैं अपने तीखे बाणों से उनकी त्वचा को बींध रहा था। उन सुन्दर कवच मण्डित भगवान् श्रीकृष्ण के प्रति मेरा शरीर, अन्तःकरण और आत्मा समर्पित हो जायँ ।
मुझे युद्ध के समय की उनकी वह विलक्षण छबि याद आती है। उनके मुख पर लहराते हुए घुन्घ्राले बाल घोंड़ो की टॉप की धूल से मटमैले हो गये थे और पसीने की छोटी-छोटी बूँधें शोभायमान हो रही थीं। मैं अपने तीखे बाणों से उनकी त्वचा को बींध रहा था। उन सुन्दर कवच मण्डित भगवान  श्रीकृष्ण के प्रति मेरा शरीर, अन्तःकरण और आत्मा समर्पित हो जायँ ।
अपने मित्र अर्जुन की बात सुनकर, जो तुरंत ही पाण्डव-सेना और कौरव-सेना के बीच में अपना रथ ले आये और वहाँ स्थित होकर जिन्होंने अपनी दृष्टि से ही शत्रुपक्ष के सैनिकों की आयु छीन ली, उन पार्थ सखा भगवान् श्रीकृष्ण में मेरी परम प्रीति हो । अर्जुन ने जब दूर से कौरवों की सेना के मुखिया हम लोगों को देखा तब पाप समझकर वह अपने स्वजनों के वध से विमुख हो गया। उस समय जिन्होंने गीता के रूप में आत्माविद्या का उपदेश करके उसके सामयिक अज्ञान का नाश कर दिया, उन परमपुरुष भगवान् श्रीकृष्ण के चरणों में प्रीति बनी रहे । मैंने प्रतिज्ञा कर ली थी कि मैं श्रीकृष्ण को शस्त्र ग्रहण कराकर छोडूँगा; उसे सत्य एवं ऊँची करने के लिये उन्होंने अपनी शस्त्र ग्रहण न करने की प्रतिज्ञा तोड़ दी। उस समय वे रथ से नीचे कूद पड़े और सिंह जैसे हाथी को मारने के लिये उस पर टूट पड़ता है, वैसे ही रथ का पहिया लेकर मुझ पर झपट पड़े। उस समय वे इतने वेग से दौड़े कि उनके कंधे का दुपट्टा गिर गया और पृथ्वी काँपने लगी।
अपने मित्र अर्जुन की बात सुनकर, जो तुरंत ही पाण्डव-सेना और कौरव-सेना के बीच में अपना रथ ले आये और वहाँ स्थित होकर जिन्होंने अपनी दृष्टि से ही शत्रुपक्ष के सैनिकों की आयु छीन ली, उन पार्थ सखा भगवान  श्रीकृष्ण में मेरी परम प्रीति हो । अर्जुन ने जब दूर से कौरवों की सेना के मुखिया हम लोगों को देखा तब पाप समझकर वह अपने स्वजनों के वध से विमुख हो गया। उस समय जिन्होंने गीता के रूप में आत्माविद्या का उपदेश करके उसके सामयिक अज्ञान का नाश कर दिया, उन परमपुरुष भगवान  श्रीकृष्ण के चरणों में प्रीति बनी रहे । मैंने प्रतिज्ञा कर ली थी कि मैं श्रीकृष्ण को शस्त्र ग्रहण कराकर छोडूँगा; उसे सत्य एवं ऊँची करने के लिये उन्होंने अपनी शस्त्र ग्रहण न करने की प्रतिज्ञा तोड़ दी। उस समय वे रथ से नीचे कूद पड़े और सिंह जैसे हाथी को मारने के लिये उस पर टूट पड़ता है, वैसे ही रथ का पहिया लेकर मुझ पर झपट पड़े। उस समय वे इतने वेग से दौड़े कि उनके कंधे का दुपट्टा गिर गया और पृथ्वी काँपने लगी।
मुझ आततायी ने तीखे बाण मार-मारकर उनके शरीर का कवच तोड़ डाला था, जिससे सारा शरीर लहूलुहान हो रहा था, अर्जुन के रोकने पर भी वे बलपूर्वक मुझे मारने के लिये मेरी ओर दौड़े आ रहे थे। वे ही भगवान् श्रीकृष्ण, जो ऐसा करते हुए भी मेरे प्रति अनुग्रह और भक्तवत्सलता से परिपूर्ण थे, मेरी एकमात्र गति हों—आश्रय हों ।
मुझ आततायी ने तीखे बाण मार-मारकर उनके शरीर का कवच तोड़ डाला था, जिससे सारा शरीर लहूलुहान हो रहा था, अर्जुन के रोकने पर भी वे बलपूर्वक मुझे मारने के लिये मेरी ओर दौड़े आ रहे थे। वे ही भगवान  श्रीकृष्ण, जो ऐसा करते हुए भी मेरे प्रति अनुग्रह और भक्तवत्सलता से परिपूर्ण थे, मेरी एकमात्र गति हों—आश्रय हों ।
अर्जुन के रथ की रक्षा में सावधान जिन श्रीकृष्ण के बायें हाथ में घोडों की रास थी और दाहिने हाथ में चाबुक, इन दोनों की शोभा से उस समय जिनकी अपूर्व छवि बन गयी थी, तथा महाभारत युद्ध में मरने वाले वीर जिनकी इस छवि का दर्शन करते रहने के कारण सारुप्य मोक्ष को प्राप्त हो गये, उन्हीं पार्थ सारथि भगवान् श्रीकृष्ण में मुझ मरणासन्न की परम प्रीति हो ।
अर्जुन के रथ की रक्षा में सावधान जिन श्रीकृष्ण के बायें हाथ में घोडों की रास थी और दाहिने हाथ में चाबुक, इन दोनों की शोभा से उस समय जिनकी अपूर्व छवि बन गयी थी, तथा महाभारत युद्ध में मरने वाले वीर जिनकी इस छवि का दर्शन करते रहने के कारण सारुप्य मोक्ष को प्राप्त हो गये, उन्हीं पार्थ सारथि भगवान  श्रीकृष्ण में मुझ मरणासन्न की परम प्रीति हो ।





१२:१५, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

प्रथम स्कन्धः नवम अध्यायः (9)

श्रीमद्भागवत महापुराण: प्रथम स्कन्धः नवम अध्यायः श्लोक 32-39 का हिन्दी अनुवाद
युधिष्ठिरादि का भीष्मजी के पास जाना और भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए भीष्मजी का प्राण त्याग करना


भीष्मजी ने कहा—अब मृत्यु के समय मैं अपनी यह बुद्धि, जो अनेक प्रकार के साधनों का अनुष्ठान करने से अत्यन्त शुद्ध एवं कामनारहित हो गयी है, यदुवंशशिरोमणि अनन्त भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित करता हूँ, जो सदा-सर्वदा अपने आनन्दमय स्वरुप में स्थित रहते हुए ही कही विहार करने की—लीला करने की इच्छा से प्रकृति को स्वीकार कर लेते हैं, जिससे यह सृष्टि परम्परा चलती है । जिनका शरीर त्रिभुवन-सुन्दर एवं श्याम तमाल के समान सांवला है, जिस पर सूर्यरश्मियों के समान श्रेष्ठ पीताम्बर लहराता रहता है और कमल-सदृश मुख पर घुँघराली अलकें लटकती रहती हैं उन अर्जुन-सखा श्रीकृष्ण में मेरी निष्कपट प्रीति हो । मुझे युद्ध के समय की उनकी वह विलक्षण छबि याद आती है। उनके मुख पर लहराते हुए घुन्घ्राले बाल घोंड़ो की टॉप की धूल से मटमैले हो गये थे और पसीने की छोटी-छोटी बूँधें शोभायमान हो रही थीं। मैं अपने तीखे बाणों से उनकी त्वचा को बींध रहा था। उन सुन्दर कवच मण्डित भगवान श्रीकृष्ण के प्रति मेरा शरीर, अन्तःकरण और आत्मा समर्पित हो जायँ । अपने मित्र अर्जुन की बात सुनकर, जो तुरंत ही पाण्डव-सेना और कौरव-सेना के बीच में अपना रथ ले आये और वहाँ स्थित होकर जिन्होंने अपनी दृष्टि से ही शत्रुपक्ष के सैनिकों की आयु छीन ली, उन पार्थ सखा भगवान श्रीकृष्ण में मेरी परम प्रीति हो । अर्जुन ने जब दूर से कौरवों की सेना के मुखिया हम लोगों को देखा तब पाप समझकर वह अपने स्वजनों के वध से विमुख हो गया। उस समय जिन्होंने गीता के रूप में आत्माविद्या का उपदेश करके उसके सामयिक अज्ञान का नाश कर दिया, उन परमपुरुष भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में प्रीति बनी रहे । मैंने प्रतिज्ञा कर ली थी कि मैं श्रीकृष्ण को शस्त्र ग्रहण कराकर छोडूँगा; उसे सत्य एवं ऊँची करने के लिये उन्होंने अपनी शस्त्र ग्रहण न करने की प्रतिज्ञा तोड़ दी। उस समय वे रथ से नीचे कूद पड़े और सिंह जैसे हाथी को मारने के लिये उस पर टूट पड़ता है, वैसे ही रथ का पहिया लेकर मुझ पर झपट पड़े। उस समय वे इतने वेग से दौड़े कि उनके कंधे का दुपट्टा गिर गया और पृथ्वी काँपने लगी। मुझ आततायी ने तीखे बाण मार-मारकर उनके शरीर का कवच तोड़ डाला था, जिससे सारा शरीर लहूलुहान हो रहा था, अर्जुन के रोकने पर भी वे बलपूर्वक मुझे मारने के लिये मेरी ओर दौड़े आ रहे थे। वे ही भगवान श्रीकृष्ण, जो ऐसा करते हुए भी मेरे प्रति अनुग्रह और भक्तवत्सलता से परिपूर्ण थे, मेरी एकमात्र गति हों—आश्रय हों । अर्जुन के रथ की रक्षा में सावधान जिन श्रीकृष्ण के बायें हाथ में घोडों की रास थी और दाहिने हाथ में चाबुक, इन दोनों की शोभा से उस समय जिनकी अपूर्व छवि बन गयी थी, तथा महाभारत युद्ध में मरने वाले वीर जिनकी इस छवि का दर्शन करते रहने के कारण सारुप्य मोक्ष को प्राप्त हो गये, उन्हीं पार्थ सारथि भगवान श्रीकृष्ण में मुझ मरणासन्न की परम प्रीति हो ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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