"महाभारत शल्य पर्व अध्याय 55 श्लोक 41-51" के अवतरणों में अंतर

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
('==पन्चपन्चाशत्तम (55) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)== <div style="te...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
छो (Text replace - "भगवान् " to "भगवान ")
 
पंक्ति २: पंक्ति २:
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व: पन्चपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 41-50 का हिन्दी अनुवाद </div>
 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शल्य पर्व: पन्चपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 41-50 का हिन्दी अनुवाद </div>
  
दोनों अत्यन्त हर्ष और उत्साह में भरे थे। दोनों ही बड़े सम्मानित वीर थे। मनुष्यों में श्रेष्ठ वे दुर्योधन और भीमसेन हींसते हुए दो अच्छे घोड़ों, चिग्घाड़ते हुए दो गजराजों और हंकड़ते हुए दो सांड़ों तथा बल से उन्मत्त हुए दो दैत्यों के समान शोभा पाते थे । राजन् ! तदनन्तर दुर्योधन ने अमित पराक्रमी बलराम, महात्मा श्रीकृष्ण, महामनस्वी पान्चाल, सृंजय, केकयगण तथा अपने भाइयों के साथ खड़े हुए अभिमानी युधिष्ठिर से इस प्रकार गर्वयुक्त वचन कहा- ‘वीरो ! मेरा और भीमसेन का जो यह युद्ध निश्चित हुआ है, इसे आप लोग सभी श्रेष्ठ नरेशों के साथ निकट बैठकर देखिये’ । दुर्योधन की यह बात सुनकर सब लोगों ने उसे स्वीकार कर लिया, फिर तो राजाओं का वह विशाल समूह वहां सब ओर बैठ गया। नरेशों की वह मण्डली आकाश में सूर्यमण्डल के समान दिखायी दे रही थी। उन सब के बीच में भगवान् श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता तेजस्वी महाबाहु बलरामजी विराजमान हुए। महाराज ! सब ओर से सम्मानित होते हुए नीलाम्बरधारी, गौरकान्ति बलभद्रजी राजाओं के बीच में वैसे ही शोभा पा रहे थे, जैसे रात्रि में नक्षत्रों से घिरे हुए पूर्ण चन्द्रमा सुशोभित होते हैं । महाराज ! हाथ में गदा लिये वे दोनों दुःसह वीर एक दूसरे को अपने कठोर वचनों द्वारा पीड़ा देते हुए खड़े थे । परस्पर कटु वचनों का प्रयोग करके वे दोनों कुरुकुल के श्रेष्ठतम वीर वहां युद्धस्थल में वृत्रासुर और इन्द्र के समान एक दूसरे को देखते हुए युद्ध के लिये डटे रहे ।
+
दोनों अत्यन्त हर्ष और उत्साह में भरे थे। दोनों ही बड़े सम्मानित वीर थे। मनुष्यों में श्रेष्ठ वे दुर्योधन और भीमसेन हींसते हुए दो अच्छे घोड़ों, चिग्घाड़ते हुए दो गजराजों और हंकड़ते हुए दो सांड़ों तथा बल से उन्मत्त हुए दो दैत्यों के समान शोभा पाते थे । राजन् ! तदनन्तर दुर्योधन ने अमित पराक्रमी बलराम, महात्मा श्रीकृष्ण, महामनस्वी पान्चाल, सृंजय, केकयगण तथा अपने भाइयों के साथ खड़े हुए अभिमानी युधिष्ठिर से इस प्रकार गर्वयुक्त वचन कहा- ‘वीरो ! मेरा और भीमसेन का जो यह युद्ध निश्चित हुआ है, इसे आप लोग सभी श्रेष्ठ नरेशों के साथ निकट बैठकर देखिये’ । दुर्योधन की यह बात सुनकर सब लोगों ने उसे स्वीकार कर लिया, फिर तो राजाओं का वह विशाल समूह वहां सब ओर बैठ गया। नरेशों की वह मण्डली आकाश में सूर्यमण्डल के समान दिखायी दे रही थी। उन सब के बीच में भगवान  श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता तेजस्वी महाबाहु बलरामजी विराजमान हुए। महाराज ! सब ओर से सम्मानित होते हुए नीलाम्बरधारी, गौरकान्ति बलभद्रजी राजाओं के बीच में वैसे ही शोभा पा रहे थे, जैसे रात्रि में नक्षत्रों से घिरे हुए पूर्ण चन्द्रमा सुशोभित होते हैं । महाराज ! हाथ में गदा लिये वे दोनों दुःसह वीर एक दूसरे को अपने कठोर वचनों द्वारा पीड़ा देते हुए खड़े थे । परस्पर कटु वचनों का प्रयोग करके वे दोनों कुरुकुल के श्रेष्ठतम वीर वहां युद्धस्थल में वृत्रासुर और इन्द्र के समान एक दूसरे को देखते हुए युद्ध के लिये डटे रहे ।
  
 
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में युद्ध का आरम्भ विषयक पचपनवां अध्याय पूरा हुआ ।
 
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में युद्ध का आरम्भ विषयक पचपनवां अध्याय पूरा हुआ ।

१२:२०, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण

पन्चपन्चाशत्तम (55) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: पन्चपन्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 41-50 का हिन्दी अनुवाद

दोनों अत्यन्त हर्ष और उत्साह में भरे थे। दोनों ही बड़े सम्मानित वीर थे। मनुष्यों में श्रेष्ठ वे दुर्योधन और भीमसेन हींसते हुए दो अच्छे घोड़ों, चिग्घाड़ते हुए दो गजराजों और हंकड़ते हुए दो सांड़ों तथा बल से उन्मत्त हुए दो दैत्यों के समान शोभा पाते थे । राजन् ! तदनन्तर दुर्योधन ने अमित पराक्रमी बलराम, महात्मा श्रीकृष्ण, महामनस्वी पान्चाल, सृंजय, केकयगण तथा अपने भाइयों के साथ खड़े हुए अभिमानी युधिष्ठिर से इस प्रकार गर्वयुक्त वचन कहा- ‘वीरो ! मेरा और भीमसेन का जो यह युद्ध निश्चित हुआ है, इसे आप लोग सभी श्रेष्ठ नरेशों के साथ निकट बैठकर देखिये’ । दुर्योधन की यह बात सुनकर सब लोगों ने उसे स्वीकार कर लिया, फिर तो राजाओं का वह विशाल समूह वहां सब ओर बैठ गया। नरेशों की वह मण्डली आकाश में सूर्यमण्डल के समान दिखायी दे रही थी। उन सब के बीच में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता तेजस्वी महाबाहु बलरामजी विराजमान हुए। महाराज ! सब ओर से सम्मानित होते हुए नीलाम्बरधारी, गौरकान्ति बलभद्रजी राजाओं के बीच में वैसे ही शोभा पा रहे थे, जैसे रात्रि में नक्षत्रों से घिरे हुए पूर्ण चन्द्रमा सुशोभित होते हैं । महाराज ! हाथ में गदा लिये वे दोनों दुःसह वीर एक दूसरे को अपने कठोर वचनों द्वारा पीड़ा देते हुए खड़े थे । परस्पर कटु वचनों का प्रयोग करके वे दोनों कुरुकुल के श्रेष्ठतम वीर वहां युद्धस्थल में वृत्रासुर और इन्द्र के समान एक दूसरे को देखते हुए युद्ध के लिये डटे रहे ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में युद्ध का आरम्भ विषयक पचपनवां अध्याय पूरा हुआ ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।