"महाभारत उद्योग पर्व अध्याय 105 श्लोक 36-40" के अवतरणों में अंतर
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१२:३६, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
पञ्चधिकशततम (105) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवादयान पर्व)
अत: राजकुमार ! इस विरोध से तुम्हें कुछ मिलनेवाला नहीं है । पांडवों के साथ संधि कर लो । भगवान श्रीकृष्ण को सहायक बनाकर इनके द्वारा तुम्हें अपने कुल की रक्षा करनी चाहिए । इन महातपस्वी नारदजी ने उस समय भगवान विष्णु के माहात्म्य को प्रत्यक्ष देखा था । वे चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु ही ये 'श्रीकृष्ण' हैं । वैशम्पायन जी कहते हैं – जनमजेय ! कणव का वह कथन सुनकर दुर्योधन की भौहें तन गईं । वह लंबी सांस खींचता हुआ राधानन्दन कर्ण की ओर देखकर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगा । उस दुर्बुद्धि ने कणव मुनि के वचनों की अवहेलना करके हाथी की सूंड के समान चढ़ाव-उतारवाली अपनी मोटी जांघ पर हाथ पीटकर इस प्रकार कहा - महर्षे ! मुझे ईश्वर ने जैसा बनाया है, जो होनहार और जैसी मेरी अवस्था में है, उसी के अनुसार मैं बर्ताव करता हूँ । आप लोगों का यह प्रलाप क्या करेगा ?
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्व के अंतर्गत भगवदयानपर्व में मातलि के द्वारा वर की खोज विषयक एक सौ पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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