"श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 85 श्लोक 52-59": अवतरणों में अंतर
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परीक्षित्! इतना कहकर | परीक्षित्! इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण चुप हो गये। दैत्यराजबलि ने उनकी पूजा की; इसके बाद श्रीकृष्ण और बलरामजी बालकों को लेकर फिर द्वारका लौट आये तथा माता देवकी को उनके पुत्र सौंप दिये । उन बालकों को देखकर देवी देवकी के ह्रदय में वात्सल्यस्नेह की बाढ़ आ गयी। उनके स्तनों से दूध बहने लगा। वे बार-बार उन्हें गोद में लेकर छाती से लगातीं और उनका सिर सूँघती । पुत्रों के स्पर्श के आनन्द सराबोर एवं आनन्दित देवकी ने उनको स्तन-पान कराया। वे विष्णुभगवान की उस माया से मोहित हो रही थीं, जिससे यह सृष्टि-चक्र चलता है । परीक्षित्! देवकीजी के स्तनों का दूध साक्षात् अमृत था; क्यों न हो, भगवान श्रीकृष्ण जो उसे पी चुके थे! उन बालकों ने वही अमृतमय दूध पिया। उस दूध के पीने से भगवान श्रीकृष्ण के अंगों का स्पर्श होने से उन्हें आत्मसाक्षात्कार हो गया । इसके बाद लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण, माता देवकी, पिता वसुदेव और बलरामजी को नमस्कार किया। तदनन्तर सबके सामने ही वे देवलोक में चले गये । परीक्षित्! देवी देवकी यह देखकर अत्यन्त विस्मित हो गयीं की मरे हुए बालक लौट आये और फिर चले भी गये। उन्होंने ऐसा निश्चय किया की यह श्रीकृष्ण का ही कोई लीला-कौशल है । परीक्षित्! भगवान श्रीकृष्ण स्वयं परमात्मा हैं, उनकी शक्ति अनन्त हैं। उनके ऐसे-ऐसे अद्भुत चरित्र इतने हैं की किसी प्रकार उनका पार नहीं पाया जा सकता । | ||
सूतजी कहते है—शौनकादि ऋषियों! | सूतजी कहते है—शौनकादि ऋषियों! भगवान श्रीकृष्ण की कीर्ति अमर है, अमृतमयी है। उनका चरित्र जगत् के समस्त पाप-तापों को मिटाने वाला तथा भक्तजनों के कर्णकुहरों में आनन्दसुधा प्रवाहित करने वाला है। इसके वर्णन स्वयं व्यासनन्दन भगवान श्रीशुकदेवजी ने किया है। जो इसका श्रवण करता है अथवा दूसरों को सुनाता है, उसकी सम्पूर्ण चित्तवृत्ति भगवान में लग जाती है और वह उन्हीं के परम कल्याणस्वरुप धाम को प्राप्त होता है । | ||
१२:४४, २९ जुलाई २०१५ के समय का अवतरण
दशम स्कन्ध: पञ्चाशीतितमोऽध्यायः(85) (उत्तरार्ध)
परीक्षित्! इतना कहकर भगवान श्रीकृष्ण चुप हो गये। दैत्यराजबलि ने उनकी पूजा की; इसके बाद श्रीकृष्ण और बलरामजी बालकों को लेकर फिर द्वारका लौट आये तथा माता देवकी को उनके पुत्र सौंप दिये । उन बालकों को देखकर देवी देवकी के ह्रदय में वात्सल्यस्नेह की बाढ़ आ गयी। उनके स्तनों से दूध बहने लगा। वे बार-बार उन्हें गोद में लेकर छाती से लगातीं और उनका सिर सूँघती । पुत्रों के स्पर्श के आनन्द सराबोर एवं आनन्दित देवकी ने उनको स्तन-पान कराया। वे विष्णुभगवान की उस माया से मोहित हो रही थीं, जिससे यह सृष्टि-चक्र चलता है । परीक्षित्! देवकीजी के स्तनों का दूध साक्षात् अमृत था; क्यों न हो, भगवान श्रीकृष्ण जो उसे पी चुके थे! उन बालकों ने वही अमृतमय दूध पिया। उस दूध के पीने से भगवान श्रीकृष्ण के अंगों का स्पर्श होने से उन्हें आत्मसाक्षात्कार हो गया । इसके बाद लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण, माता देवकी, पिता वसुदेव और बलरामजी को नमस्कार किया। तदनन्तर सबके सामने ही वे देवलोक में चले गये । परीक्षित्! देवी देवकी यह देखकर अत्यन्त विस्मित हो गयीं की मरे हुए बालक लौट आये और फिर चले भी गये। उन्होंने ऐसा निश्चय किया की यह श्रीकृष्ण का ही कोई लीला-कौशल है । परीक्षित्! भगवान श्रीकृष्ण स्वयं परमात्मा हैं, उनकी शक्ति अनन्त हैं। उनके ऐसे-ऐसे अद्भुत चरित्र इतने हैं की किसी प्रकार उनका पार नहीं पाया जा सकता ।
सूतजी कहते है—शौनकादि ऋषियों! भगवान श्रीकृष्ण की कीर्ति अमर है, अमृतमयी है। उनका चरित्र जगत् के समस्त पाप-तापों को मिटाने वाला तथा भक्तजनों के कर्णकुहरों में आनन्दसुधा प्रवाहित करने वाला है। इसके वर्णन स्वयं व्यासनन्दन भगवान श्रीशुकदेवजी ने किया है। जो इसका श्रवण करता है अथवा दूसरों को सुनाता है, उसकी सम्पूर्ण चित्तवृत्ति भगवान में लग जाती है और वह उन्हीं के परम कल्याणस्वरुप धाम को प्राप्त होता है ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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