"महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 153 श्लोक 17-19" के अवतरणों में अंतर

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==त्रिपन्चाशदधिकशततम (153) अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)==
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासनपर: त्रिपन्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-19 का हिन्दी अनुवाद</div>
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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: अनुशासनपर: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-19 का हिन्दी अनुवाद</div>
  
 
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परंतु ऐसा नहीं समझना चाहिये, क्योंकि जो अजन्मा है, वह जन्म कैसे ले सकता है? फिर भी जो उन्हें अण्डज कहा जाता है, उसका अभिप्राय यों समझना चाहिये। महाकाश ही यहाँ ‘अण्ड’ है, उससे पितामह प्रकट हुए हैं (इसलिये वे ‘अण्डज’ हैं)। यदि कहो, ‘ब्रह्मा आकाश से प्रकट हुए हैं तो किस आधार पर ठहरते हैं, यह बताइये, क्योंकि उस समय कोई दूसरा आधार नहीं रहता’ तो इसके उत्तर में निवेदन है कि ब्रह्मा वहाँ अहंकारस्वरूप बताये गये, जो सम्पूर्ण तेजों में व्याप्त एवं समर्थ बताये गये हैं। वास्तव में ‘अण्ड’ नाम की कोई वस्तु नहीं है। फिर भी ब्रह्माजी का अस्तित्व है, क्योंकि वे ही जगत् के उत्पादक हैं। उनके ऐसा कहने पर राजा कार्तवीर्य अर्जुन चुप हो गये, तब वायु देवता पुनः उनसे बोले।  
परंतु ऐसा नहीं समझना चाहिये, क्योंकि जो अजन्मा है, वह जन्म कैसे ले सकता है? फिर भी जो उन्हें अण्डज कहा जाता है, उसका अभिप्राय यों समझना चाहिये। महाकाश ही यहाँ ‘अण्ड’ है, उससे पितामह प्रकट हुए हैं (इसलिये वे ‘अण्डज’ हैं)। यदि कहो, ‘ब्रह्मा आकाश से प्रकट हुए हैं तो किस आधार पर ठहरते हैं, यह बताइये, क्योंकि उस समय कोई दूसरा आधार नहीं रहता’ तो इसके उत्तर में निवेदन है कि ब्रह्मा वहाँ अहंकारस्वरूप बताये गये, जो सम्पूर्ण तेजों में व्याप्त एवं समर्थ बताये गये हैं।  
 
       
 
वास्तव में ‘अण्ड’ नाम की कोई वस्तु नहीं है। फिर भी ब्रह्माजी का अस्तित्व है, क्योंकि वे ही जगत् के उत्पादक हैं। उनके ऐसा कहने पर राजा कार्तवीर्य अर्जुन चुप हो गये, तब वायु देवता पुनः उनसे बोले।  
 
 
   
 
   
 
 
 
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१३:००, ९ अगस्त २०१५ के समय का अवतरण

त्रिपञ्चाशदधिकशततम (153) अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर: त्रिपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 17-19 का हिन्दी अनुवाद

परंतु ऐसा नहीं समझना चाहिये, क्योंकि जो अजन्मा है, वह जन्म कैसे ले सकता है? फिर भी जो उन्हें अण्डज कहा जाता है, उसका अभिप्राय यों समझना चाहिये। महाकाश ही यहाँ ‘अण्ड’ है, उससे पितामह प्रकट हुए हैं (इसलिये वे ‘अण्डज’ हैं)। यदि कहो, ‘ब्रह्मा आकाश से प्रकट हुए हैं तो किस आधार पर ठहरते हैं, यह बताइये, क्योंकि उस समय कोई दूसरा आधार नहीं रहता’ तो इसके उत्तर में निवेदन है कि ब्रह्मा वहाँ अहंकारस्वरूप बताये गये, जो सम्पूर्ण तेजों में व्याप्त एवं समर्थ बताये गये हैं। वास्तव में ‘अण्ड’ नाम की कोई वस्तु नहीं है। फिर भी ब्रह्माजी का अस्तित्व है, क्योंकि वे ही जगत् के उत्पादक हैं। उनके ऐसा कहने पर राजा कार्तवीर्य अर्जुन चुप हो गये, तब वायु देवता पुनः उनसे बोले।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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