"महाभारत स्‍त्री पर्व अध्याय 9 श्लोक 19-23": अवतरणों में अंतर

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<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: स्‍त्रीपर्व: नवम अध्याय: श्लोक 19-23 का हिन्दी अनुवाद</div>
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: स्‍त्रीपर्व: नवम अध्याय: श्लोक 19-23 का हिन्दी अनुवाद</div>


‘वे सभी वीर वेदवेत्ता और अच्‍छी तरह ब्रह्मचर्य व्रतकापालन करने वाले थे । ये सब-के-सब शत्रुओं का सामना करते हुए मारे गये थे; अत: उनके लिये शोक करने की क्‍या आवश्‍यकता है ? ।‘उन श्रेष्‍ठ पुरुषों ने शूरवीरों के शरीर रुपी अग्नियों में बाण रुपी हविष्‍य की आहुतियाँ दी थीं और अपने शरीर में जिनका हवन किया गया था, उन बाणों का आघात सहन किया था । ‘राजन् ! मैं तुम्‍हें स्‍वर्ग-प्राप्ति का सबसेउत्तम मार्ग बता रहा हूँ । इस जगत् में क्षत्रिय के लिये युद्ध से बढ़कर स्‍वर्ग साधक दूसरा कोई उपाय नहीं है । ‘वे सभी महामनस्‍वी क्षत्रिय वीर युद्ध में शोभा पाने वाले थे । वे उत्तम भोगों से सम्‍पन्न पुण्‍यलोकों में जा पहुँचे हैं, अत: उन सबके लिये शोक नहीं करना चाहिये । ‘पुरुषप्रवर ! आप स्‍वयं ही अपने मन को आश्‍वासन देकर शोक को त्‍याग दीजिये । आज शोक से व्‍याकुल होकर आपको अपने कर्तव्‍य कर्म का त्‍याग नहीं करना चाहिये’।


 
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्‍तर्गत जलप्रदानिकपर्व में विदुरजी का वाक्‍यविषक नवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।</div>
‘वे सभी वीर वेदवेत्ता और अच्‍छी तरह ब्रह्मचर्य व्रतकापालन करने वाले थे । ये सब-के-सब शत्रुओं का सामना करते हुए मारे गये थे; अत: उनके लिये शोक करने की क्‍या आवश्‍यकता है ? ।‘उन श्रेष्‍ठ पुरुषों ने शूरवीरों के शरीर रुपी अग्नियों में बाण रुपी हविष्‍य की आहुतियाँ दी थीं और अपने शरीर में जिनका हवन किया गया था, उन बाणों का आघात सहन किया था । ‘राजन् ! मैं तुम्‍हें स्‍वर्ग-प्राप्ति का सबसेउत्तम मार्ग बता रहा हूँ । इस जगत् में क्षत्रिय के लिये युद्ध से बढ़कर स्‍वर्ग साधक दूसरा कोई उपाय नहीं है । ‘वे सभी महामनस्‍वी क्षत्रिय वीर युद्ध में शोभा पाने वाले थे । वे उत्तम भोगों से सम्‍पन्न पुण्‍यलोकों में जा पहुँचे हैं, अत: उन सबके लिये शोक नहीं करना चाहिये । ‘पुरुषप्रवर ! आप स्‍वयं ही अपने मन को आश्‍वासन देकर शोक को त्‍याग दीजिये । आज शोक से व्‍याकुल होकर आपको अपने कर्तव्‍य कर्म का त्‍याग नहीं करना चाहिये’ ।
 
इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्‍तर्गत जलप्रदानिकपर्व में विदुरजी का वाक्‍यविषक नवाँ अध्‍याय पूरा हुआ ।
 


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==संबंधित लेख==
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०५:१४, १० अगस्त २०१५ का अवतरण

नवम (9) अध्याय: स्‍त्रीपर्व (जलप्रदानिक पर्व )

महाभारत: स्‍त्रीपर्व: नवम अध्याय: श्लोक 19-23 का हिन्दी अनुवाद

‘वे सभी वीर वेदवेत्ता और अच्‍छी तरह ब्रह्मचर्य व्रतकापालन करने वाले थे । ये सब-के-सब शत्रुओं का सामना करते हुए मारे गये थे; अत: उनके लिये शोक करने की क्‍या आवश्‍यकता है ? ।‘उन श्रेष्‍ठ पुरुषों ने शूरवीरों के शरीर रुपी अग्नियों में बाण रुपी हविष्‍य की आहुतियाँ दी थीं और अपने शरीर में जिनका हवन किया गया था, उन बाणों का आघात सहन किया था । ‘राजन् ! मैं तुम्‍हें स्‍वर्ग-प्राप्ति का सबसेउत्तम मार्ग बता रहा हूँ । इस जगत् में क्षत्रिय के लिये युद्ध से बढ़कर स्‍वर्ग साधक दूसरा कोई उपाय नहीं है । ‘वे सभी महामनस्‍वी क्षत्रिय वीर युद्ध में शोभा पाने वाले थे । वे उत्तम भोगों से सम्‍पन्न पुण्‍यलोकों में जा पहुँचे हैं, अत: उन सबके लिये शोक नहीं करना चाहिये । ‘पुरुषप्रवर ! आप स्‍वयं ही अपने मन को आश्‍वासन देकर शोक को त्‍याग दीजिये । आज शोक से व्‍याकुल होकर आपको अपने कर्तव्‍य कर्म का त्‍याग नहीं करना चाहिये’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्‍तर्गत जलप्रदानिकपर्व में विदुरजी का वाक्‍यविषक नवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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