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११:१९, १९ अगस्त २०११ का अवतरण

लेख सूचना
जोतन यंत्र
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 59-61
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक दुर्गाशंकर नागर

जोतन यंत्र कृषि में जुताई एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसका मुख्य उद्देश्य खेत को बीज के बोने, जमने तथा पौधे के बढ़ने के लिये उचित दशा में तैयार करना है। फसल जमने के पश्चात्‌ भी कभी कभी जुताई आदि की आवश्यकता होती है। जुताई से खरपतवार निकल जाता है तथा भूमि में जल और वायु के संचालन में सहायता मिलती है। खरपतवार भूमि से अपने लिये पोषक तत्व, जल, वायु आदि प्राप्त करते हैं जिससे उपज घट जाती है। इन्हीं कारणों से उत्तम फसल पैदा करने के लिये जुलाई सदैव से कृषि का आवश्यक अंग रही है।

जो यंत्र खेत की जुताई करने के लिये प्रयोग में लाए जाते हैं, उन्हें जोतन यंत्र कहते हैं। भारत तथा अन्य देशों में प्राचीन तथा अन्य देशों में प्राचीन काल से जो यंत्र प्रयोग में आ रहे हैं उनसे मिट्टी पलटी नहीं जाती, यद्यपि इन्हें हल कहते हैं। आजकल हल उस यंत्र को कहते हैं जो भूमि को काटकर उसे पलट दे। जो यंत्र मिट्टी को केवल इधर उधर चला दें परंतु पलटें नहीं, उन्हें कल्टिवेटर, हैरो, आदि कहते हैं। इस दृष्टि से देशी हल कल्टिवेटर कहा जा सकता है, परंतु हल नहीं। किंतु इसके लिये हल शब्द का प्रयोग प्राचीन होने के कारण अब भी प्रचलित है। देशी हल से कार्य करने में यद्यपि समय अधिक लगता है, तथापि इससे जुताई, बुवाई और गुड़ाई इत्यादि सब कार्य किए जा सकते हैं। परंतु नवीन यंत्र--हल, कल्टिवेटर आदि--जिस कार्य के लिये बनाए गए हैं वही कार्य अधिकतर अच्छा करते हैं। वे अन्य कार्य के लिये उतने उपयुक्त नहीं हैं।

हल

मिट्टी पलटनेवाले हलों में एक मिट्टी पलट (mouldboard) हाता है, जिसका आकार प्रकार आवश्यकतानुसार छोटा, बड़ा या मध्यम बनाया जाता है तथा मिट्टी काटने के लिये फाल होती है। हथिया (handle) के हिसाब से इन हलों को एकहथिया (single handle), जैसे मेस्टन, गुर्जर आदि, और दुहथिया (double handle), जैसे पंजाब विक्टरी आदि, दो भागों में बाँट सकते हैं। मिट्टी पलटने की मात्रा तथा खिंचाव शक्ति के अनुसार इन्हें भारी, मध्यम तथा हल्के, इन तीन भागों में बाँट सकते हैं। इनके प्रयोग में सावधानी की आवश्यकता है, जिससे भूमि की समतलता न नष्ट हो। जब इन हलों द्वारा किनारे से केंद्र की ओर जुताई करते हैं तो बीच में एक नाली सी बन जाती है। यदि बार बार इसी प्रकार जुताई की गई तो इस प्रकार की नई नालियाँ बनती जायँगी या पुरानी नालियाँ गहरी होती जायँगी। अत: यह आवश्यक है कि दूसरी बार जुताई केंद्र से किनारे की ओर की जाय, जिससे खेत समतल हो जाए। जुताई के अतिरिक्त इन हलों का उपयोग आलू तथा गन्ने आदि की कुंडी बनाने, सिंचाई की क्यारियाँ बनाने, मिट्टीपलट निकालकर गन्ने की कुँडी की जुताई करने, हरी खाद भूमि में दबाने आदि में किया जाता है। ये हल खरपतवार दबाने तथा खेत से पिछली फसल के ठूँठ आदि उखाड़ने के लिये भी अधिक उपयुक्त होते हैं। कभी कभी ये हल पंक्तियों में बोई हुई फसलों में मिट्टी चढ़ाने के लिये भी उपयोग में लाए जा सकते हैं। इनके मुख्य अंग चित्र में दिखाए गए हैं।

कल्टिवेटर

ये देशी हल की भाँति भूमि को कुरेदनेवाले यंत्र होते हैं, परंतु उतने ही समय में देशी हल की अपेक्षा तीन चार गुना अधिक कार्य कर सकते हैं, क्योंकि इनमें कई फाल होते हैं। इन फालों का आकार प्रकार आवश्यकतानुसार बदल दिया जाता है। इनका प्रयोग अधिकतर हलों से जुताई के पश्चात्‌ मिट्टी को भुरभुरी करने, ढेलों को तोड़ने तथा ठूठ आदि से मिट्टी अलग करने के लिये होता है। खेतों में यदि ओट एक साथ आने लगे तो कल्टिवेटर चलाकर पाटा करने से खेत का कड़ा होने से बचाया जा सकता है। बीज खेत में बिखेरकर मिट्टी में मिलाया जा सकता है। पंक्तियों में बोई गई फसलों में समुचित अंतर होने पर ये लाइनों के बीच में निराई गुड़ाई के लिये उपयोग में लाए जाते हैं। कभी कभी मिट्टीपलट लगाकर फसलों में मिट्टी भी चढ़ाई जाती है। इनकी चौड़ाई को कम या अधिक करके विभिन्न अंतर पर बोई गई फसलों में प्रयुक्त किया जा सकता है। इनसे जुताई तीन चार इंच गहरी की जा सकती है। इनमें जुताई को अधिक या कम गहरा करने के लिये प्रबंध रहता है, जो पहिए की सहायता से किया जा सकता है।

बक्खर

इनको मद्रास में गंटाका हल भी कहते हैं। यह यंत्र भी देशी हल की भाँति भूमि कुरेदने के काम में आता है, परंतु कार्यक्षमता में यह कल्टिवेटर ले मिलता जुलता है और एक दिन में लगभग दो एकड़ जुताई कर सकता है। बक्खर का उपयोग बुंदेलखंड, मध्य प्रदेश आदि में अधिक होता है, क्योंकि वहाँ की भूमि मटियार होने तथा वर्षाकाल में गीली रहने के कारण जोती नहीं जा सकती। अत: खरपतवार भी अधिक हो जाते हैं। इस भूमि को यदि उचित आर्द्रता होने पर ही न जोता जा सके तो यह कड़ी हो जाती है। बक्खर से अधिक क्षेत्रफल जुत सकने के कारण, यह कार्य थोड़े समय में संपन्न किया जा सकता है और भूमि को कड़ा होने से बचाया जा सकता है। इससे पंक्तियों में बोई गई फसलों में निराई गुड़ाई आदि की जा सकती है। इसमें जुताई के लिये गँड़ासे की भाँति का लोहे का फल लगा रहता है, जिसकी चौड़ाई और लंबाई आवश्यकतानुसार कम या अधिक रखते हैं। इससे दो तीन इंच गहरी जुताई होती है। यह भी एक प्रकार का कल्टिवेटर है, परंतु इसें पहिया नहीं रहता।

हैरो

यह यंत्र भी कल्टिवेटर की भाँति खेत को हल या कल्टिवेटर चलाने के पश्चात्‌ अधिक समतल करने, ढेलों का तोड़ने तथा घासपात की जुताई के लिये अत्यंत उपयोगी है। इसमें पहिया नहीं होता। कुछ प्रकार के यंत्रों में गहरी या हल्की जुताई करने का प्रबंध रहता है और कुछ में नहीं। इससे जुताई आधे इंच से लेकर डेढ़ दो इंच तक गहरी हो सकती है। इसका खिंचाव कल्टिवेटर से कम रहता है। हैरो विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिये कई प्रकार के बनाए जाते हैं, जैसे स्पाइक टूथ या पेस्ट हैरो, स्प्रिंग टूथ हैरो (Spring tooth harrow), चेन हैरो (Chain harrow), डिस्क हैरो (Disc harrow) आदि। बोए हुए खेत में उचित जमाव के लिये तथा हलकी वर्षा से पड़ी हुई पपड़ी तोड़ने के लिये लीवर हैरो या स्पाइक टूथ हैरो बहुत उपयोगी है। इनका प्रयोग लाइन में या छिटकवा बोई हुई फसल में, फसल छ: सात इंच की होने तथा आसानी से किया जा सकता है। स्प्रिंग टूथ हैरो जुताई के पश्चात्‌ ढेले तोड़ने तथा उनको ऊपर लाने, जिससे पाटा से टूट सकें, बहुत उपयोगी होता है। डिस्क हैरो तोड़ने, मिट्ठी भुरभुरी करने तथा हलकी जुताई के लिये अति उपयोगी है। चेन हैरो खाद फैलाने तथा खरपतवार एकत्रित करने के लिये काम में लाया जा सकता है।

पाटा

यह यंत्र जुताई के लिये तो उपयोग नहीं होते, परंतु, खेत की समुचित तैयारी, अर्थात्‌ ढेले तोड़ने तथा उसे समतल करने के लिए आवश्यक होते हैं। कँटीला पाटा जुते खेत में घास एकत्रित करने तथा हलकी जुताई, या पपड़ी तोड़ने में, प्रयुक्त हो सकता है। रोलर या बेलन भी भूमि को दबाने और ढेले तोड़ने में सहायक होते हैं एवं मटियाल भूमि पर कहीं कहीं प्रयोग में लाए जाते हैं।

हो

ये यंत्र अधिकतर खेत की बुवाई के पश्चात्‌ कार्य करने की दृष्टि से बनाए जाते हैं। इनके उपयोग से खरपतवार को दूर तथा मिट्टी को भुरभुरी किया जा सकता है। इससे भूमि में वायुसंचार आसानी से होने लगता है। हो अधिकतर या तो हाथ से कार्य करने के लिये या बैलों से कार्य कराने के लिये बनाए जाते हैं। हाथ से चलनेवाले हो पहिएदार भी हो सकते हैं, जैसे हैंड व्हली हो, अथवा बिना पहिए के, जैसे सिंह हो, शर्मा हो (पँक्तियों में बोए गए धान के लिये), जापानी रोटरी हो, बैलों से चलनेवाले अकोला हो आदि। रेक (rake) हो भी पपड़ी तोड़ने, घास आदि एकत्रित करने के लिये उपयुक्त हैं।

टीका टिप्पणी और संदर्भ