महाभारत वन पर्व अध्याय 16 श्लोक 1-15

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षोडश अध्‍याय: वनपर्व (अरण्‍यपर्व)

महाभारत वनपर्व षोडश अध्याय श्लोक 1-33 का हिन्दी अनुवाद
शाल्वी की विशाल सेना के आक्रमण का यादव सेना द्वारा प्रतिरोध, साम्बद्वारा क्षेमवृद्धि की पराजय, वेगवान का वध तथा चारुदेष्ण द्वारा विविन्ध्य दैत्य का वध एवं प्रद्युम्न द्वारा सेना को आश्वासन

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- राजेन्द्र ! सौभ विमान का स्वामी राजा शाल्व अपनी बहुत बड़ी सेना के साथ, जिसमें हाथी सवारों तथा पैदलों की संख्या अधिक थी, द्वारका पुरी पर चढ़ आया और उसके निकट आकर ठहरा। जहाँ अधिक जल से भरा हुआ जलाशय था, वहीं समतल भूमि मे उसकी सेना ने पड़ाव डाला। उसमें हाथी सवार, घुड़-सवार, रथी और पैदल चारों प्रकार के सैनिक थे। स्वयं राजा शाल्व उसका संरक्षक था। शमशान भूमि , देव मन्दिर, बाँबी चैत्य वृक्ष को छोड़कर सभी स्थानों में उसकी सेना फैलकर ठहरी हुई थी। सेनाओं के विभाग पूर्वक पड़ाव डालने से सारे रास्ते घिर गये थे। राजन् ! शाल्व के शिविर में प्रवेश करने का कोई मार्ग नहीं रह गया था। नरेश्रेष्ठ ! राजा शाल्व की वह सेना सब प्रकार के आयुधों से सम्पन्न, सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्र के संचालन में निपुण, रथ, हाथी और घोड़ों से भरी हुई तथा पैदल सिपाहियों और ध्वजा-पताकाओं से व्याप्‍त थी। सब में वीरोचित लक्षणा दिखायी देते थे। उस सेना के सिपाही विचित्र ध्वजा तथा कवच धारण करते थे। उनके रथ और धनुष भी विचित्र थे। कुरुनन्दन ! द्वारका के समीप उस सेना को ठहराकर राजा शाल्व वेग पूर्वक द्वारका की ओर बढ़ा, मानो पक्षिराज गरुड़ अपने लक्ष्य की ओर उड़े जा रहे हों। शाल्वराज की उस सेना को आती देख उस समय वृष्णि-कुल को आनन्दित करने वाले कुमार नगर से बाहर निकलकर युद्ध करने लगे। कुरुनन्दन ! शाल्वराज के उस आक्रमण को सहन न कर सके। चारुदेष्ण, साम्ब और महारथी प्रद्युम्न--से सब कवच, विचित्र आभूषण तथा ध्वजा धारण करके रथों पर बैठकर शाल्व राजा के अनेक श्रेष्ठ योद्धाओं के साथ भिड़ गये। हर्ष में भरे हुए साम्ब ने धनुष धारण करके शाल्व के मन्त्री तथा सेनापति क्षेमवृद्धि के साथ युद्ध किया। भरतश्रेष्ठ ! जाम्बवती कुमार ने उसके ऊपर भारी बाण- वर्षा की, मानो इन्द्र जल की वर्षा कर रहे हों। महाराज ! सेनापति क्षेमवृद्धि ने साम्ब की उस भयंकर बाण - वर्षा को हिमालय की भाँति अविचल रहकर सहन किया। राजेन्द्र ! तदनन्‍तर क्षेमवृद्धि ने स्वयं भी साम्ब के ऊपर माया निर्मित बाणों की भारी वर्षा प्रारम्भ की। साम्ब ने उस मायामय बाण जाल को माया से छिन्न-भिन्न करके क्षेमवृद्धि के रथ पर सहस्त्रों बाणों की झड़ी लगा दी। साम्ब ने सेनापति क्षेमवृद्धि को अपने बाणों से घायल कर दिया। वह साम्ब की बाण- वर्षा से पीडि़त हो शीघ्रगामी अश्वों की सहायता से (लड़ाई का मैदान छोड़कर ) भाग गया। शाल्व के क्रूर सेनापति क्षेमवृद्धि के भाग जाने पर वेगवान नामक बलवान दैत्य ने मेरे पुत्र पर आक्रमण किया। राजेन्द्र ! वृष्णिवंश का भार वहन करने वाला वीर साम्ब वेगवान के वेग को सहन करते हुए उसका सामना करते हुए धैर्यपूर्वक उसका सामना करने लगा। कुन्तीनन्दन ! सत्यपराक्रमी वीर साम्ब ने अपनी वेग-शालिनी गदा को बड़े वेग से घुमाकर वेगवान दैत्य के सिर पर दे मारा। राजन् ! उस गदा से आहत होकर वेगवान इस प्रकार पृथ्वी पर गिर पड़ा, मानो जीर्ण हुई जड़ वाला पुराना वृक्ष हवा के वेग से टूटकर धराशायी हो गया हो। गदा से घायल हुए उस वीर महादैत्य के मारे जाने पर मेरा पुत्र साम्ब, शाल्व की विशाल सेना में घुसकर युद्ध करने लगा। महाराज ! चारुदेष्ण के साथ महारथी एवं महान धनुर्धर विविन्ध्य नामक दानव शाल्व की आज्ञा से युद्ध कर रहा था । राजन् ! तदनन्तर चारुदेष्ण और विविन्ध्य में वैसा ही भयंकर युद्ध होने लगा, जैसा पहले इन्द्र और वृत्तासुर में हुआ था। वे दोनों एक दसरे पर कुपित हो बाणों से परस्पर आघात कर रहे थे और महाबली सिंहो की भाँति जोर-जोर से गर्जना करते थे। तदनन्तर रुक्मिणीनन्दन चारुदेष्ण ने अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी शत्रुनाशक बाण को महान ( दिव्य ) अस्त्र से अभिमन्त्रित करके अपने धनुष पर संघान किया। राजन् ! तत्पश्चात् मेरे उस महारथी पुत्र ने क्रोध में भर-कर विविन्ध्य पर बाण चलाया। उसके लगते ही विविन्ध्य प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। विविन्ध्य को मारा गया और सेना को तहस-नहस हुई देख शाल्व इच्छानुसार चलने वाले सौभ विमान द्वारा फिर वहाँ आया। महाबाहु नरेश्वर ! उस समय सौभ विमान पर बैठे हुए शाल्व को देखकर द्वारका की सारी सेना भय से व्याकुल हो उठी। महाराजा कुरुनन्दन ! तब प्रद्युम्न ने निकलकर आनर्तवासियों की उस सेना को धीरज बँधाया और इस प्रकार कहा--। ‘यादवो ! आप सब लोग( चुपचाप ) खड़े रहें और मेरे पराक्रम को देखें; मैं किस प्रकार युद्ध में राजा शाल्व के सहित सौभ विमान की गति को रोक देता हूँ। ‘यदुवंशियों ! मैं अपने धर्नुदंड से छूटे हुए लोहे के सर्पतुल्य बाणों द्वारा सौभपति शाल्व की सेना को अभी नष्ट किये देता हूँ। ‘आप धैर्य धारण करें, भयभीत न हों, सौभराज अभी नष्ट हो रहा है। दुष्टात्मा शाल्व मेरा सामना होते ही सौभ विमान सहित नष्ट हो जायेगा। वीर पाण्डुनन्दन ! हर्ष में भरे हुए प्रद्युम्न को ऐसा कहने पर वह सारी सेना स्थिर हो पूर्ववत प्रसन्नता और उत्साह के साथ युद्ध करने लगी।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमन पर्व में सौभवधोपाख्यानविषयक सोलहवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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