महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 144 श्लोक 18-36

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Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०५:२२, १४ जुलाई २०१५ का अवतरण
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चतुश्चत्वारिंशदधिकशततम (144) अध्‍याय: अनुशासनपर्व (दानधर्म पर्व)

महाभारत: अनुशासनपर: चतुश्चत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 18-36 का हिन्दी अनुवाद

उमा ने पूछा- निष्पाप भूतनाथ! महादेव! कैसी वाणी बोलने अथवा उस वाणी द्वारा कौन-सा कर्म करने से मनुष्य बन्धन में पड़ता या उस बन्धन से छुटकारा पा जाता है? उन वाचिक कर्मों का मुझसे वर्णन कीजिये। श्रीमहेश्वर ने कहा- जो हँसी और परिहास का सहारा लेकर भी अपने या दूसरे के लिये कभी झूठ नहीं बोलते हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं। जो आजीविका अथवा धर्म के लिये तथा स्वेच्छाचार से भी कभी असत्य भाषण नहीं करते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो स्निग्ध, मधुर, बाधारहित और पापशून्य तथा स्वागत-सत्कार के भाव से युक्त वाणी बोलते हैं, वे मानव स्वर्गलोक में जाते हैं। जो किसी की चुगली नहीं खाते और कभी किसी से रूखी, कड़वी और निष्ठुरतापूर्ण बात मुँह से नहीं निकालते, वे सज्जन पुरूष स्वर्ग में जाते हैं। जो दो मित्रों में फूट डालने वाली चुगली की बातें नहीं करते हैं, सत्य और मैत्रीभाव से युक्त वचन बोलते हैं, वे मनुष्य स्वर्गलोक में जाते हैं। जो मानव दूसरों से तीखी बातें बोलना और द्रोह करना छोड़ देते हैं, सब प्राणियों के प्रति समानभाव रखने वाले और जितेन्द्रिय होते हैं, वे स्वर्गलोक में जाते हैं। जिनके मुँह से कभी शठतापूर्ण बात नहीं निकलती, जो विरोधयुक्त वाणी का त्याग करते हैं और सदा सौम्य (कोमल) वाणी बोलते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। जो क्रोध में आकर भी हृदय को विदीर्ण करने वाली बात मुँह से नहीं निकालते हैं तथा क्रुद्ध होने पर भी सान्त्वनापूर्ण वचन ही बोलते हैं, वे मनुष्य स्वर्गगामी होते हैं। देवि! यह वाणीजनित धर्म बताया गया है। मनुष्यों को सदा इसका सेवन करना चाहिये। विद्वानों को उचित है कि वे सदा शुभ और सत्य वचन बोलें तथा मिथ्या का परित्याग करें। उमा ने पूछा- महाभाग! पिनाकधारी देवदेव! जिस मानसिक कर्म से मनुष्य सदा बन्धन में पड़ता है,उसको मुझे बताइये। श्री महेश्वर ने कहा- कल्याणि! जो सदा मानसिक धर्म से युक्त हैं अर्थात् मन से धर्म का ही चिन्तन और आचरण करते हैं, वे पुरूष स्वर्ग में जाते हैं। मैं इस विषय में जो बताता हूँ, उसे सुनो। शुभानने! मन में दुर्विचार आने से मनुष्य के कार्य भी दुर्नीतिपूर्ण एवं दूषित होते हैं, जिससे मन बन्धन में पड़ जाता है। इस विषय में मेरी बात सुनो। जब दूसरे का धन निर्जन वन में पड़ा हुआ दिखायी दे, उस समय भी जो उसकी ओर मन ललचाकर किसी की हिंसा नहीं करते, वे मनुष्य स्वर्ग में जाते हैं। गाँव या घर के एकान्त स्थान में पड़े हुए पराये धन का जो कभी अभिनन्दन नहीं करते हैं, वे मानव स्वर्गगामी होते हैं। इसी प्रकार जो मनुष्य एकान्त में प्राप्त हुई चतुश्चत्वारिंशदधिकशततमोऽध्यायः कामासक्त परायी स्त्रियों को मन से भी उनके साथ अन्याय करने का विचार नहीं करते, वे स्वर्गगामी होते हैं। जो सबके प्रति मैत्रीभाव रखकर सबसे मिलते तथा शत्रु और मित्र को भी सदा समान हृदय से अपनाते हैं, वे मानव स्वर्गलोक में जाते हैं। जो शास्त्रज्ञ, दयालु, पवित्र, सत्यप्रतिज्ञ और अपने ही धन से संतुष्ट होते हैं, वे स्वर्गलोक में जाते हैं। जिनके मन में किसी के प्रति वैर नहीं है, जो आयासरहित, मैत्रीभाव से पूर्ण हृदयवाले तथा सम्पूर्ण प्राणियों के प्रति सदा ही दयाभाव रखने वाले हैं, वे मनुष्य स्वर्ग में जाते हैं ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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