महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 145 भाग-33

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पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम (145) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

यमलोक तथा यहॉ के मार्गों का वर्णन,पापियों की नरकयातनाओं तथा कर्मानुसार विभिन्न योंनियों मे उनके जन्मका उल्लेख

महाभारत: अनुशासन पर्व: पञ्चचत्वारिंशदधिकशततम अध्याय: भाग-33 का हिन्दी अनुवाद

वहाँ पापाचारी जीव रोगों से व्यथित और प्यास से पीडि़त रहते हैं। जब तक पूर्वकृत पाप का भोग शेष है, तब तक किसी तरह उन्हें नरकों से छुटकारा नहीं मिलता है। उनको कीड़े काटते रहते हैं तथा वे वेदना से पीडि़त और प्यास से व्याकुल होते हैं। प्रिये! जब तक सारे पापों का क्षय नहीं हो जाता तब तक वे अपने ही किये हुए अपराधजनित पाप को याद करके वहाँ शोकमग्न होते रहते हैं। इस प्रकार नरक भोगकर पापों का नाश करने के पश्चात् वे उस कष्ट से मुक्त हो जाते हैं। उमा ने पूछा- भगवन्! महेश्वर! पापी जीव कितने समय तक नरकों में रहते हैं, यह मैं जानना चाहती हूँ? अतः मुझे बताइये। श्रीमहेश्वर ने कहा-प्राणी अपने पापों के अनुसार एक लाख वर्षों से लेकर महाप्रलयकाल तक नरकों में निवास करते हैं, ऐसा शास्त्रों का निश्चय है। उमा ने पूछा- भगवन्! प्रभो! उन नरकों में किस-किस तरह के पापी निवास करते हैं? यह मुझे बताइये। श्रीमहेश्वर ने कहा- रौरव नरक में एक लाख वर्षों तक रहने का नियम है। उसमें मनुष्यों की हत्या करने वाले, कृतघ्न तथा असत्यवादी मनुष्य जाते हैं। दूसरे नरक (महारौरव)- में वैसे ही पापी मनुष्य दूने काल (दो लाख वर्ष) तक पकाये जाते हैं। तीसरे (कण्टकावन)- में महापात की मनुष्य कष्ट भोगते हैं।। चौथे नरक में पापी लोग तब तक संतप्त होते हैं, जब तक कि महाप्रलय नहीं हो जाता। पंचकष्ट नरक में जैसा घोर दुख होता है, उसको भी यहाँ सहन करते हैं। दीर्घकाल तक दुख देने वाले इस घोर नरक से नीचे मानवसम्बन्धी अन्य नरकों को स्थिति समझो। इस प्रकार नरकों का कष्ट भोग लेने के बाद पाप कट जाने पर मनुष्य उन नरकों से छूटकर कीटयोनि में जन्म लेते हैं। शोभने! अथवा कोई-कोई उद्भिज्ज योनि में जन्म लेते हैं। उसमें भी कुछ पापों का क्षय होने के बादवे पुनः पशु-पक्षियों की योनि में जन्म पाते हैं। वहाँ कर्मफल भोग लेने पर उन्हें मनुष्य शरीर की प्राप्ति होती है। उमा ने पूछा- प्रभो! पापाचारी मनुष्य किस प्रकार से नाना प्रकार की योनियों में जन्म लेते हैं? श्रीमहेश्वर ने कहा- शोभने! तुम जो चाहती हो, उसे बता रहा हूँ। जीवात्मा सदा कर्म के अधीन होकर नानाप्रकार की योनियों में जन्म लेता है। जो प्रतिदिन मांस के लिये लालायित रहता है, वह कौओं और गीधों की योनि में जन्म लेता है। सदा शराब पीने वाला मनुष्य निश्चय ही सूअर होता है। अभक्ष्य भक्षण करने वाला मनुष्य कौए के कुल में उत्पन्न होता है तथा क्रोधपूर्वक आत्महत्या करने वाला पुरूष प्रेतयोनि में पड़ा रहता है। दूसरों की चुगली और निन्दा करने से मुर्गे की योनि में जन्म लेना पड़ता है। जो मूर्ख नास्तिक होता है, वह मृगजाति में जन्म ग्रहण करता है।। हिंसा या शिकार के लिये भ्रमण करने वाला मानव कीड़ों की योनि में जन्म लेता है। अत्यन्त अभिमानयुक्त पुरूष सदा मृत्यु के पश्चात् गदहे की योनि में जन्म पाता है। अगम्या-गमन और परस्त्री सेवन करने से मनुष्य चूहा होता है, इसमें शंका करने की आवश्यकता नहीं है। कृतघ्न और मित्रघाती मनुष्य सियार और भेडि़यों की योनि में जन्म लेता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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