किलकिल

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लेख सूचना
किलकिल
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 3
पृष्ठ संख्या 15
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पांडेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1976 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक परमेश्वरीलाल गुप्त

किलकिल 1.विष्णपुराण[१]तथा श्रीमद्भगवत पुराण[२]में कलियुगी राजाओं के प्रसंग में मौनवंशी राजाओं के अनंतर उल्लिखित एक राज्य और राज्यवंश। विष्णु पुराण में इनका नाम कैंकिल दिया गया है[३]। भागवत में इनकी राजधानी किलकिला का उल्लेख किया गया है जो इनके नामकरण का कारण मानी जा सकती है[४]। भागवत के वर्णन से प्रतीत होता है कि ये मूलत: भारत के बाहर वाह्लीक (बैक्ट्रिया) के राजा थे जिनका आधिपत्य भारत में भी किसी युग में था। भाऊदाजी के मत से ये अजंता गुफा के आसपास बताया जाता है। यवन नाम से इनके आयोनियनन ग्रीक होने का अनुमान होता है। ये कोंकण में 980 ईस्वी के आसपास शासक रूप में वर्तमान थे। आंध्र पर राज्य करनेवाले इस यवन वंश का उत्कर्षकाल 576 ई. से 900 ई. तक माना जाता है।

[५][६]

2. बुंदेलखंड से प्राप्त अनेक शिलालेखों में किलकिला नाम का उल्लेख हुआ है और इस प्रदेश में किलकिला नाम की नदी बहती है। इस कारण कुछ इतिहासकारों का मत है कि इस प्रदेश का प्राचीन नाम किलकिला था और अभिलेखों में वर्णित किलकिला नृप दूसरी तीसरी शती ई. में बुंदेलखंड में राज्य करते थे। कुछ लोग इन्हें नागवंशी अनुमान करते हैं तथा उनका संबंध भारशिव और वाकाटक नरेशों से जोड़ते हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (4।24)
  2. (12।1)
  3. (तेषूत्सन्नेषु कैंकिला यवना भूपतयो भविष्यन्ति अमूर्धाभिषिक्ता:, 4।54।55)
  4. (किलकिलायां नृपतयो भूतनंदो/थ वंगिरि:, 12।1।32)
  5. सं.ग्रं.-रायल एशियाटिक सोसाइटी की बंबई शाखा के जर्नल में भाऊदाजी का लेख; महाराष्ट्रीय ज्ञान कोष, भाग 11।
  6. बलदेव उपाध्याय।