कुंभ
- कुंभ ज्योतिष के अंतर्गत बारह राशियों में से ग्यारहवीं राशि।
- धनिष्ठा का उत्तरार्द्ध और शतभिषा तथा पूर्व भाद्रपद के तीन चरण मिलाकर यह राशि बनती है।
- राशि चक्र के 3०० अंश के पश्चात् इसके 3० अंश आते हैं।
- यह स्थिर राशि और शनि का क्षेत्र कहा गया है।
- इसका मान 3 दंड ५८ पल हैं।
- कुंभ अथवा पुष्कर योग के अवसर पर होनेवाला मेला।
- यह योग १२ वर्ष के अंतर से स्थानविशेष में आता है।
- स्कंद पुराण के अनुसार मकर राशि में वृहस्पति और सूर्य के सम्मिलन के दिन पूर्णिमा होने पर प्रयाग और गंगाद्वार (हरिद्वार) में गंगा पुष्कर तुल्य हो जाती है।
- यह कोटि सूर्य ग्रहण के समान हैं।
- इसी प्रकार सूर्य और वृहस्पति के सिंह राशि में मिलने पर यदि वृहस्पतिवार को पूर्णिमा तिथि पड़ती हो तो गोदावरी (नासिक) में, कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मेषराशि पर सूर्य एवं वृहस्पति के मिलन पर कावेरी में ओर श्रावण मास में वृहस्पति अथवा सोमवार को अमावस्या अथवा पूर्णिमा के दिन कृष्णा नदी में पुष्कर योग लगता है।
- आजकल यह मेला उक्त योग के अनुसार प्रति बारहवें वर्ष प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में लगता है।
- ६ वर्ष पर अर्ध कुंभी का मेला होता है।
- यह मेला देश का सबसे बड़ा मेला होता है।
- तोलने का एक प्राचीन मान।
- दो द्रोण अथवा ६४ सेर का एक कुंभ कहा गया है।
- कहीं कहीं बीस द्रोण का कुंभ बताया गया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ