महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 32 श्लोक 54-74

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

द्वात्रिंशो (32) अध्याय: द्रोणपर्व (संशप्‍तकवध पर्व )

महाभारत: द्रोणपर्व: द्वात्रिंशो अध्याय: श्लोक 54-74 का हिन्दी अनुवाद

उसी प्रकार अधिरथकुमार कर्णने भी प्रज्‍वलित तेजवाले अर्जुनके बाणों का तथा उनके प्रत्‍येक अस्‍त्र का अपने अस्‍त्रों द्वारा निवारण करके बाणों की वर्षा करते हुए बड़े जोर से सिंहनाद किया। इसी समय धृष्‍टधुम्न, भीम तथा महारथी सात्‍यकि ने भी कर्णके पास पहॅुचकर उसे तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। तब राधानन्‍दन कर्णने अपने बाणों की वर्षा द्वारा अर्जुन के बाणों का निवारण करके अपने तीन बाणों द्वारा धृष्‍टधुम्न आदि तीनों वीरोंके धनुषों को भी काट दिया। अपने धनुष कट जाने पर विषहीन भुजगमों के समान उन शूरवीरों ने रथ शक्तियों को ऊपर उठाकर सिंहों के समान भयंकर गर्जना की। उनके हाथों में छूटी हुई वे अत्‍यन्‍त वेगशालिनी सर्पाकार महाशक्तियॉ अपनी प्रभासे प्रकाशित होती हुई कर्ण की ओर चली। परंतु बलवान कर्णने सीधे जानेवाले तीन-तीन बाणसमूहों द्वारा उन शक्तियों के टुकड़े-टुकड़े करके अर्जुनपर बाणों की वर्षा करते हुए सिंहनाद किया। अर्जुन ने भी राधानन्‍दन कर्णको सात शीघ्रगामी बाणों द्वारा बींधकर अपने पैने बाणों से उसके छोटे भाई को मार डाला। तत्‍पश्‍चात सीधे जानेवाले छ: सायकों द्वारा शत्रुजय का संहार करके एक भल्‍ल द्वारा रथपर बैठे हुए विपाट का मस्‍तक तत्‍काल काट गिराया। इस प्रकार धृतराष्‍ट्र पुत्रों के देखते-देखते एकमात्र अर्जुन ने युद्धके मुहाने पर सूतपुत्र कर्णके तीन भाइयों का वध कर डाला। तदनन्‍तर भीमसेन ने गरूड़ की भॉति अपने रथ से उछल कर उत्‍तम खग द्वारा कर्ण पक्षके पद्रंह योद्धाओं को मार डाला। फिर भी उन्‍होंने अपने रथपर बैठकर दूसरा धनुष हाथमें ले लिया और दस बाणों द्वारा कर्ण को तथा पॉच बाणों से उसके सारथि और घोड़ों को भी घायल कर दिया। धृष्‍टधुम्न ने भी श्रेष्‍ठ खग और चमकीली ढाल लेकर चन्‍द्रवर्मा तथा निषधराज बृजत्‍क्षत्र का काम तमाम कर दिया। तदनन्‍तर पांचालराजकुमार धृष्‍टधुम्न ने अपने रथपर बैठकर दूसरा धनुष ले रणक्षेत्र में गर्जना करते हुए तिहत्‍तर बाणों द्वारा कर्ण को बींध डाला। तत्‍पश्‍चात चन्‍द्रमाके समान कान्तिमान् सात्‍यकिने भी दूसरा धनुष हाथमें लेकर सूतपुत्र कर्ण को चौसठ बाणों से घायल करके सिंह के समान गर्जना की। इसके बाद उन्‍होंने अच्‍छी तरह छोड़े हुए दो भल्‍लों द्वारा कर्णके धनुष को काटकर पुन: तीन बाणों द्वारा कर्णकी दोनो भुजाओं तथा छाती में भी चोट पहॅुचायी। तत्‍पश्‍चात दुर्योधन, द्रोणाचार्य तथा राजा जयद्रथ ने डूबते हुए राधानन्‍दन कर्ण का सात्‍यकिरूपी समुद्र से उद्धार किया। उस समय आपकी सेना के अन्‍य सैकड़ों पैदल, घुड़सवार, रथी और गजारोही योद्धा सात्‍यकि से संत्रस्‍त होकर कर्ण के ही पीछे दौड़े गये। उधर धृष्‍टधुम्न, भीमसेन, अभिमन्‍यु, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव ने रणक्षेत्र में सात्‍यकि का संरक्षण आरम्‍भ किया। महाराज ! इस प्रकार आपके तथा शत्रुपक्ष के सम्‍पूर्ण धनुर्धरो के विनाश के लिये उनमे परस्‍पर प्राणों की परवा न करके अत्‍यन्‍त भयंकर युद्ध होने लगा। पैदल, रथ, हाथी और घोड़े क्रमश: हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों के साथ युद्ध करने लगे। रथी हाथियों, पैदलों और घोड़ों के साथ भिड़ गये । रथी और पैदल सैनिक रथियो और हाथियों का सामना करने लगे। घोड़ों से घोड़े, हाथियो से हाथी, रथियों से रथी और पैदलो से पैदल जूझते दिखायी दे रहे थे।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।