ईसप

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ११:५८, ३ जनवरी २०१७ का अवतरण ('{{लेख सूचना |पुस्तक नाम=हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2 |पृष्ठ स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
लेख सूचना
ईसप
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 2
पृष्ठ संख्या 43
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक सुधाकर पाण्डेय
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक स्वरगीय भोलानाथ शर्मा

ईसप जनप्रिय नीतिकथाकार। इनकी कथाओं के पात्र मनुष्य की अपेक्षा पशु पक्षी अधिक हैं। इस प्रकार की कथाओं को 'बीस्ट फ़ेबुल्स' कहा जाता है। परंतु ईसप नाम का कोई व्यक्ति कभी था, इस विषय में बहुत कुछ संदेह है। तथापि होरोदोतस एवं कतिपय अन्य लेखकों के साक्ष्य के अनुसार ईसप के जीवन की कथा इस प्रकार की थी : ई.पू. छठी शताब्दी के मध्य में ईसप सामाँस द्वीप के निवासी इयाद्मन्‌ के दास थे, परंतु वे विदेशी दास जिनके विषय में यह निश्चित पता नहीं था कि फ्रयाके, फ्रगिया अथवा इथियोपिया देशों में से उनका जन्म कहाँ हुआ था। वे अत्यंत कुरूप थे। देल्फी में उन पर देवमंदिर के स्वर्णचषक की चोरी का आरोप लगाया गया और उनकी पर्वतशिखर से धक्का देकर मृत्युदंड दिया गया। पर प्रो. गिल्बर्ट मरे को इस कथा पर विश्वास नहीं है।

जो कथाएँ ईसप के नाम से प्रचलित हैं उनका वर्तमान रूप उतना पुराना नहीं है जितना उपर्युक्त कथा के अनुसार होना चाहिए। पाँचवीं शताब्दी ई.पू. से ईसप और उनकी कथाओं की चर्चा चल पड़ी थी। आरिस्तोफ़ानिज़, ज़ेनोफ़न्‌, प्लेटो और अरस्तू की रचनाओं में इसके संकेत मिलते हैं। सुकरात ने अपने अंतिम समय में कुछ कथाओं को पद्यबद्ध किया था, ऐसा भी कहा जाता है। पर वास्तविकता यह है कि ईसवी सन्‌ के पूर्व इन कथाओं के जो संकलन हुए थे वे अब उपलब्ध नहीं होते। इस समय जो प्राचीनतम संकलन उपलब्ध हुए थे वे फ़ेद्रुस और आवियनुस द्वारा लातीनी भाषा में तथा बाब्रियस द्वारा ग्रीक भाषा में प्रस्तुत किए गए थे। ये सभी लेखक ईसवी सन्‌ के आरंभ के पश्चात्‌ हुए हैं। इसके पश्चात्‌ इन कथाओं का अनुवाद यूरोप की आधुनिक भाषाओं में होने लगा। इन अनुवादों में ज्याँ द ला.फ़ौताई का पद्यबद्ध फ्रेंच अनुवाद अतयधिक प्रसिद्ध है।

आधुनिक समय में ईसप की कहानियों के दो संग्रह फ्रांस और जर्मनी में मूल ग्रीक रूप में प्रकाशित हुए हैं। इनमें से ऐमोल शाँब्री (पेरिस, 1927) संस्करण में 358 कथाएँ हैं तथा टायब्नर की ग्रीक ग्रंथमाला में प्रकाशित हाल्म के संस्करण में 426। ग्रीक संस्करण शनै: शनै: परिवर्धित होकर इस रूप को प्राप्त हुए हैं।

ईसप की कथाएँ पंचतंत्र की कथाओं के समान मनोरंजन के साथ नीति और व्यवहारकुशलता की शिक्षा देती हैं। यत्रतत्र इनमें हास परिहास का भी पुट पाया जाता है। जातक कथाओं के साथ भी इनका पर्याप्त साम्य पाया जाता है। कुछ लेखक भारतीय कथाओं को ही ईसप की कथाओं का आधार मानते हैं, अन्य आलोचक इस मत को नहीं मानते। ईसप की कथाओं का अनुवाद हिंदी, संस्कृत एवं अन्य भारतीय भाषाओं में भी हो चुका है।

[१]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सं.ग्रं.-शाँब्री का मूल ग्रीक संस्करण, 1927; हाल्म का मूल ग्रीक संस्करण 1889; ईसप नीतिकथा (संस्कृत अनुवाद)