नॉर्डल ग्रेग
नॉर्डल ग्रेग
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पुस्तक नाम | हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4 |
पृष्ठ संख्या | 73 |
भाषा | हिन्दी देवनागरी |
संपादक | फूलदेव सहाय वर्मा |
प्रकाशक | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
मुद्रक | नागरी मुद्रण वाराणसी |
संस्करण | सन् 1964 ईसवी |
उपलब्ध | भारतडिस्कवरी पुस्तकालय |
कॉपीराइट सूचना | नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी |
लेख सम्पादक | तुलसी नारायण सिंह |
नॉर्डल ग्रेग (Grieg, Nordahl) (१९०२-१९४३) का आधुनिक नार्वेई साहित्य में बड़ा ऊँचा स्थान है। इन्होंने कवि, उपन्यासकार और नाटककार के रूप में बड़ा महत्वपूर्ण काम किया। इनका जन्म संपन्न परिवार में हुआ था लेकिन इन्होंने अपना सारा जीवन समाज के दलित वर्ग की सेवा में लगाया। विद्यार्थी जीवन में ही इन्होंने संसार के कई देशों की यात्रा की और नए विचारों तथा उनके प्रभाव के फलस्वरूप होनेवाले परिवर्तनों का परिचय प्राप्त किया। सन् १९३३ से १९३५ तक ये रूस में रहे और वहाँ के जीवन तथा नाट्य साहित्य का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। सन् १९३५ में लिखा गया नाटक 'अवर ग्लोरी ऐंड अवर पावर' इनके समाजवादी दृष्टिकोण को बड़े शक्तिशाली ढंग से प्रस्तुत करता है। सन् १९३० के बाद के प्राय: सभी नाटकों में हमें शोषण और अन्याय की तीव्र आलोचना मिलती है। सन् १९३८ में इन्होंने 'उंग मा वदेंन एन्नु वेरें' नामक उपन्यास लिखा जो इनके रूस तथा स्पेन के गृहयुद्ध के अनुभवों पर आधारित है। किसी भी प्रगतिशील राजनीतिक दल से सबंधित न होते हुए भी इन्होंने साहित्य के माध्यम से समाजवादी विचारधारा के व्यापक प्रचार में महत्वपूर्ण योग दिया।
नार्डल ग्रेग में राष्ट्रीयता की भावना भी कूट कूटकर भरी थी। लेकिन इनकी राष्ट्रीयता संकीर्णता से पूर्णतया मुक्त थी। फासिस्ट देशों की राष्ट्रीयता किस प्रकार विश्व के छोटे और कमजोर देशों के लिये अभिशाप सिद्ध हो रही थी, यह इन्होंने समझ लिया था। राष्ट्रीयता के नाम पर हिटलर और मुसोलिनी एक के बाद एक देश को हड़पते जा रहे थे। विश्वशांति के लिये उनकी राष्ट्रीयता भंयकर चुनौती थी। नार्डल ग्रेग ने राष्ट्रीयता की एक दूसरी ही धारणा दी जिसमें देशप्रेम के लिय स्थान था लेकिन अन्य राष्ट्रों के प्रति घृणा के लिये कतई गुंजाइश नहीं थी। सन् १९२६ में इनकी कविताओं का संग्रह 'नार्वे इन अवर हार्ट्स' निकला जिसमें हमें राष्ट्रीयता का बड़ा ही परिष्कृत रूप देखने को मिलता है।
नार्डल केवल लेखक ही नहीं थे। इन्होंने अपने स्वल्प जीवनकाल में अपूर्व कर्मठता का भी परिचय दिया। जब हिटलर ने नार्वे पर आक्रमण किया, ये जनता का नेतृत्व करने के उद्देश्य से मैदान में कूद पड़े। फासिस्ट आक्रमणकारियों को देश की पवित्र भूमि से निकालने के काम में सबका सहयोग अपेक्षित था। ग्रेग ने अपनी सेवाएँ अर्पित की हीं, सभी देशवासियों को भी शत्रु का जुटकर मुकाबिला करने के लिये प्रोत्साहित किया। सन् १९४० के बाद इन्होंने देशप्रेम से ओतप्रोत कविताओं की रचना की। सन् १९४३ में बर्लिन पर हवाई हमले के समय इनकी मृत्यु हो गई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ