गौड़

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लेख सूचना
गौड़
पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 4
पृष्ठ संख्या 45
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेव सहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1964 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक विजयेंद्र कुमार माथुर

गौड़ बंगाल का प्राचीन सामन्य नाम। स्कंदपुराण के अनुसार गौड़ देश की स्थिति वंगदेश से लेकर भुवनेश[१] तक थी- 'वंगदेशं समारभ्य भुवनेशांतग: शिवे, गौड़ देश: समाख्यात: सर्वविद्या विशारद:।' पद्मपुराण[२] में गौड़ नरेश नरसिंह का नाम आया है। अभिलेखों में गौड़ देश का सर्वप्रथम उल्लेख 553 ई. के हराहा अभिलेख में है जिसमें ईश्वर वर्मन मौखरी की गौड़देश पर विजय का उल्लेख है। बाणभट्ट ने गौड़नरेश शशांक का वर्णन किया है जिसने हषवर्धन के ज्येष्ठ भ्राता राज्यवर्धन का वध किया था। माधाईनगर के ताम्रपट्ट लेख से सूचित होता है कि गौड़नरेश लक्ष्मणसेन का कलिंग तक प्रभुत्व था।

गौड़ देश के नाम पर संस्कृत काव्य की परुषावृत्ति का नाम ही गौड़ी पड़ गया था। कायस्थों आदि की कई जातियाँ आज भी गौड़ कहलाती है। कुछ विद्वानों का मत है कि गुड़ के व्यापार का केंद्र होने के कारण ही इस प्रदेश का नाम गौड़ हो गया था।

प्राचीन लक्ष्मणावती या लखनौती का मध्यकालीन नाम, वंगदेश के गौड़ से संबद्ध है। बंगाल की राजधानी कालक्रम से काशीपुरी, वरेंद्र और लक्ष्मणवती रही थी। मुसलमानों का बंगाल पर[३] आधिपत्य होने के पश्चात्‌ बंगाल के सूबे की राजधानी कभी गौड़ और कभी पांडुआ रही। पांडुआ गौड़ से लगभग 20 मील दूर है। आज इस मध्युगीन भव्य नगर के केवल खंडहर ही बचे हैं। इनमें से अनेक ध्वंसावशेष प्राचीन हिंदू मंदिरों और देवालयों के हैं जिनका प्रयोग मसजिदों के निर्माण के लिये किया गया था। 1575 ई. में अकबर के सूबेदार ने गौड़ के सौंदर्य से आकृष्ट होकर अपनी राजधानी पांडुआ से हटाकर गौड़ में बनाई थी जिसके फलस्वरूप गौड़ में एकबारगी हो बहुत भीड़भाड़ हो गई थी। थोड़े ही दिनों बाद महामारी का प्रकोप हुआ जिससे वहां की जनसंख्या को भारी क्षति पहुँची। बहुत से निवासी नगर छोड्कर भाग गए। पांडुआ में भी महामारी का प्रकोप फैला और दोनों नगर बिल्कुल उजाड़ हो गए। कहा जाता है कि गौड़ में जहाँ अब तक भव्य इमारतें खड़ी हुई थी और चारों ओर व्यस्त नरनारियों का कोलाहल था, इस महामारी के पश्चात्‌ चारों ओर सन्नाटा छा गया, सड़कों पर घास उग आई और दिन दहाड़े व्य्घ्राा आदि हिंसक पशु धूमने लगे। पांडुआ से गौड़ जाने वाली सड़क पर अब घने जंगल हो गए थे। तत्पश्चात्‌ प्राय: 309 वर्षों तक बंगाल की यह शालीन नगरी खंडहरों के रूप में घने जंगलों के बीच छिपी पड़ी रही। अब कुछ ही वर्षों पूर्व वहाँ के प्राचीन वैभव को खुदाई द्वारा प्रकाश में लाने का प्रयत्न किया गया है। लखनौती में 8 वीं, 10 वीं सदी में पाल राजाओं का राज था और 12 वीं सदी तक सेन नरेशों का आधिपत्य रहा। इस काल में यहाँ अनेक हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ जिन्हें गौड़ के परवर्ती मुसलमान बादशाहों ने नष्टभ्रष्ट कर दिया। मुसलमानों के समय की बहुत सी इमारतों के अवशेष अभी यहाँ मौजूद है। इनकी मुख्य विशेषताएँ हैं ठोस बनावट तथा विशालता। सोना मसजिद प्राचीन मंदिरों की सामाग्री से निर्मित है। यह यहाँ के जीर्ण दुर्ग के अंदर अवस्थित है। इसकी निर्माणतिथि 1526 ई. है। इसके अतिरिक्त 1530 ई. में बनी नसरतशाह की मसजिद भी कला की दृष्टि से उल्लेखनीय है।

गौड़ या लखनौती हिंदू राजसत्ता के उत्कर्षकाल में संस्कृत विद्या के केंद्र के रूप में विख्यात थी और महाकवि जयदेव, कविवर गोवर्धनाचार्य तथा धोयी, व्याकरणचार्य उमापतिघर और शब्दकोशकार हलायुध इन सभी विद्वानों का संबंध इस प्रसिद्ध नगरी से था। इसके खंडह्‌र बंगाल के मालदा नामक नगर से 10 मील दक्षिण पश्चिम की ओर स्थित हैं।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भुवनेश्वर, उड़ीसा
  2. पद्मपुराण (189- 2)
  3. 13वीं सदी में