महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 355 श्लोक 1-11

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तीन सौ पचपनवाँ अध्याय: शान्तिपर्व (मोक्षधर्मपर्व)

महाभारत: शान्तिपर्व : तीन सौ पचपनवाँ अध्याय: श्लोक 1-11 का हिन्दी अनुवाद

अतिथि द्वारा नागराज पद्मनाभ के सदाचार और सद्गुणों का वर्णन तथा ब्राह्मण को उसके पास जाने के लिये प्रेरणा

अतिथि ने कहा - विप्रवर ! मेरे गुरु ने इस विषय में जो तात्त्विक बात बतलायी है, उसी का मैं तुमको क्रमशः उपदेश करूँगा। तुम मेरे इस कथन को सुनो।

द्विजश्रेष्ठ ! पूर्वकल्प में जहाँ प्रजापति ने धर्मचक्र प्रवर्तित किया था, सम्पूर्ण देवताओं ने जहाँ यज्ञ किया था तािा जहाँ राजाओं में श्रेष्ठ मान्धाता यज्ञ करने में इन्द्र से भी आगे बढ़ गये थे, उस नैमिषारध्य में गोमती के तट पर नागपुर नामक एक नगर है। वहाँ एक महान् धर्मात्मा सर्प निवास करता है। उस महानाग का नाम तो है पद्नाभ; परंतु पद्म नाम से ही उसकी प्रसिद्धि है। द्विजश्रेष्ठ ! पद्म मन, वाणी और क्रिया द्वारा कर्म , उपासना और ज्ञान- इन तीनों मार्गों का आश्रय लेकर रहता है और सम्पूर्ण भूतों को प्रसन्न रखता है। वह विषमतापूर्ण बर्ताव करने वाले पुरुष को साम, दान, दण्ड और भेद-नीति के द्वारा राह पर लाता है, समदर्शी की रखा करता है और नेत्र आदि इन्द्रियों को विचार के द्वारा कुमार्ग में जाने से बचाता है। तुम उसी के पास जाकर विधिपूर्वक अपना मनोवांछित प्रश्न पूछो। वह तुम्हें परम उत्तम धर्म का दर्शन करायेगा; मिथ्या धर्म का उपदेश नहीं करेगा। वह नाग बड़ा बुद्धिमान् और शास्त्रों का पण्डित है। सबका अतिथि-सत्कार करता है। समस्त अनुपम तथा वान्छनीय सद्गुणों से सम्पन्न है। स्वभाव तो उसका पानी के समान है। वह सदा स्वाध्याय में लगा रहता है। तप, इन्द्रिय-संयम तािा उत्तम आचार-विचार से संयुक्त है। वह यज्ञ का अनुष्ठान करने वाला, दानियों का शिरोमणि, क्षमाशील, श्रेष्ठ सदाचार में संलग्न, सत्यवादी, दोषदृष्टि से रहित, शीलवान् और जितेन्द्रिय है। यज्ञशेष अनन का वह भोजन करता है, अनुकूल वचन बोलता है, हित और सरलभाव से रहता है। उत्कृष्ट कर्तव्य और अकर्तव्य को जानता है, किसी से भी वैर नहीं करता है। समसत प्राणियों के हित में लगा रहता है तथा वह गंगसजी के समान पवित्र एवं निर्मल कुल में उत्पन्न हुआ है।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शानितपर्व के अन्तर्गत मोक्षधर्मपर्व में उन्छवृत्ति का उपाख्यान विषयक तीन सौ पचपनवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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