महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 38 श्लोक 20-26
अष्टत्रिंश (38) अध्याय: कर्ण पर्व
स्त्री,पुत्र,विहार स्थान तथा दूसरा भी जो कुछ धन-वैभव मेरे पास है,उसमें से जिस-जिस वस्तु को वह अपने मन से चाहैगा,वह सब कुछ मैं उसे दे डालूँगा। जो मुझे श्रीकृष्ण और अर्जुन का पता बता देगा,उसे मैं उन दोनों का मारकर उनका सारा धन-वैभव दे दूँगा। इन सब बातों को बारंबार कहते हुए कर्ण ने युद्ध स्थल में समुद्र से उत्पन्न हुए अपने उत्तम शंख को उच्च स्वर से बजाया। महाराज ! सूतपुत्र की कही हुई उस अवसर के अनुरूप उन बातों को सूनकर दुर्योधन अपने सेवकों सहित बड़ा प्रसन्न हुआ। फिर तो सब ओर दुन्दुभियों की गम्भीर ध्यनि होने लगी,मृदंग बजने लगे,वाद्यों की ध्वनि के साथ-साथ वीरों का सिंहनाद तथा हाथियों के चिंग्घाड़ने का शब्द वहाँ गूँज उठा। पुरुष प्रवर नरेश ! उस समय सभी सेनाओं में हर्ष और उत्साह से भरे हुए योद्धाओं का गम्भीर गर्जन होने लगा। इस प्रकार हर्ष से उत्साहित हुई सेना में जाते और बढ़-बढ़कर बातें बनाते हुए शत्रुसूदन राघापुत्र महारथी कर्ण से मद्रराज शल्य ने हँसकर इस प्रकार कहा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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