महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 49 श्लोक 1-18

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एकोनपंचाशत्तम अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद
शंखका युद्ध, भीष्म का प्रचण्ड पराक्रम तथा प्रथम दिन के युद्ध की समाप्ति

धृतराष्ट्र ने पूछा- तात! सेनापति श्वेत के शत्रुओंद्वारा युद्धस्थल में मारे जाने पर महान् धनुर्धर पांचालोंऔर पाण्डवों ने क्या किया ? संजय ! सेनापति श्वेत युद्ध में मारे गये। उनकी रक्षा के लिये प्रयत्न करने पर भी शत्रुओं को पलायन करना पड़ातथा अपने पक्ष की विजय हुई ये सब बातें सुनकर मेरे मन में बड़ीप्रसन्नता हो रही है। शत्रुओं के प्रतीकार का उपाय सोचते हुए मुझे अपने पक्षके द्वारा गयी अनीतिका स्मरण करके भी लज्जा नही आती है। वे वृद्ध एवं वीर कुरूराज भीष्म हमपर सदा अनुराग रखते है (इस कारण ही उन्होनें श्वेत के साथ ऐसा व्यवहार किया होगा)। उस बुद्धिमान विराटपुत्र श्वेत ने अपने पिता के साथ वैर बांध रक्खा था, इस कारण पिता के द्वारा प्राप्त होनेवाले उद्वेग एवं भय से श्वेत ने पहले ही पाण्डवों की शरण ले ली थी। पहले तो वह समस्त सेना का परित्याग करके (अकेला ही) दुर्ग के छिपा रहता था । फिर पाण्डवों के प्रताप से दुर्गम प्रदेश में रहकर निरन्तर शत्रुओं को बाधा पहचाते हुए सदाचार का पालन करने लगा। क्योंकि पूर्वकाल में अपने साथ विरोध करनेवाले उन राजाओं के प्रति उसकी बुद्धि दुर्भाव था; पर संजय ! आश्चर्य तो यह है कि ऐसा शूरवीर श्वेत, जो युधिष्ठिर का बड़ाभक्त था, मारा कैसे गया ? मेरा पुत्र दुर्योधन क्षुद्र स्वभाव का है। वह कर्ण आदि का प्रिय तथा चंचल बुद्धिवाला है। मेरी दृष्टि में वह समस्त पुरूषों में अधम है (इसीलिये उनके मन में युद्ध के लिये आग्रह है) । संजय! मै, भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य तथा गान्धारी-इनमें से कोई भी युद्ध नही चाहता था। वृष्णिवंशी भगवान् वासुदेव, पाण्डुपुत्र धर्मराज युधिष्ठिर, भीमसेन, अर्जुन तथा पुरूषरत्न नकुल-सहदेव भी युद्ध नहींपसंद करते थे। मैंने, गान्धारी ने और विदुरने तो सदा ही उसे मना किया है, जमदग्निपुत्र परशुराम ने तथा महात्मा व्यासजी ने भी उसे युद्धसे रोकने का प्रयत्न किया है; तथापित, कर्ण, शकुनि, तथा दुःशासन के मत में आकर पापी दुर्योधन सदा युद्ध का ही निश्चय रखता आया है। उसने पाण्डवों को कभी कुछ नही समझा। संजय ! मेरा तो विश्वास है कि दुर्योधन घोर संकट प्राप्त होने वाला है। श्वेत के मारे जाने और भीष्म की विजय होने से अत्यन्त क्रोध में भरे श्रीकृष्णसहित अर्जुन ने युद्ध स्थल में क्या किया ? तात! अर्जुन से मुझे अधिक भय बना रहता है और वह भय कभी शांत नही होता; क्योंकि कुन्तीपुत्र अर्जुन शुरवीर तथा शीघ्रतापूर्वक अस्त्र संचालन करनेवाला है। मै समझता हूं कि वह अपने बाणोंद्वारा शत्रुओं के शरीरों को मथ डालेगा। इन्द्रकुमार अर्जुन भगवान् विष्णु के समान पराक्रमी और महेन्द्र के समान बलवान है। उसका क्रोध और संकल्प कभी व्यर्थ नही होता। उसे देखकर तुमलोगों के मन में क्या विचार उठा था ? अर्जुन वेदज्ञ, शौर्यसम्पन्न, अग्नि और सूर्य के समान तेजस्वी, इन्द्रस्त्रका ज्ञाता, अमेय आत्मबल से सम्पन्न, वेग पूर्वक आक्रमण करनेवाला और बडे़-बडे़ संग्रामों में विजय पानेवाला है। वह ऐसे-ऐसे अस्त्रों का प्रयोग करता है, जिसका हल्का सा स्पर्श भी वज्र के समान कठोर है। महारथी अर्जुन अपने हाथ में सदा तलवार खींचे ही रहता है और उसका प्रहार करके विकट गर्जना करता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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