एकोनसप्तत्यधिकशततम (169) अध्याय: उद्योग पर्व (रथातिरथसंख्यानपर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनसप्तत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-28 का हिन्दी अनुवाद
महाराज ! बुद्धिमान अर्जुन का रथ जुता हुआ है । भगवान श्रीकृष्ण अस के सारथी और युद्धकुशल धनंजय रथी हैं। दिव्य गाण्डीव धनुष है, वायु के समान वेगशाली अश्व है, अभेद्य दिव्य कवच है तथा बाणों से भरे हुए दो महान तरकस हैं। उस रथमें अस्त्रों के समुदाय—महेन्द्र, रूद्र, कुबेर, यम एवं वरूणसम्बन्धी अस्त्र है, भंयकर दिखायी देनेवाली गदाएं हैं। वज्र आदि भांति-भांति के श्रेष्ठ आयुध भी उस रथमें विद्यमान हैं । अर्जुन ने युद्धमें एकमात्र उस रथकी सहायतासे हिरण्यपुर में निवास करनेवाले सहस्त्रों दानवों का संहार किया है । उसके समान दूसरा कौन रथ हो सकता है? वह बलवान, सत्यपराक्रमी, महाबाहु अर्जुन क्रोध में आकर तुम्हारी सेना का संहार करेंगे ओर अपनी सेना की रक्षा में संलग्न रहेंगे। मैं अथवा द्रोणाचार्य ही धनंजय का सामना कर सकते हैं। राजेन्द्र ! दोनों सेनाओं में तीसरा कोई ऐसा रथी नहीं है, जो बाणों की वर्षा करते हुए अर्जुन के सामने जा सके। ग्रीष्मऋतु के अन्त में प्रचण्ड वायु से प्रेरित महामेघ की भांति श्रीकृष्ण सहित अर्जुन युद्ध के लिये तैयार हैं। सह अस्त्रों का विद्वान और तरूण भी है। इधर हम दोनों वृद्ध हो चले हैं। वैशम्पायनजी कहते हैं – जनमेजय ! भीष्म की यह बात सुनकर पाण्डवों के पुरातन बल-पराक्रम को प्रत्यक्ष देखने की भांति स्मरण करके राजाओं की सुवर्णमय भुजबंदों से विभूषित चन्दनचर्चित स्थूल भुजाएं एवं मन भी आवेगयुक्त होकर शिथिल हो गये।
इस प्रकार श्रीमहाभारत उद्योगपर्वके अन्तर्गत रथातिरथसंख्यानपर्वमें पाण्डवपक्षके रथियों और अतिथियों की संख्याविषयक एक सौ उनहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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