महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 67 श्लोक 1-25

अद्‌भुत भारत की खोज
Bharatkhoj (वार्ता | योगदान) द्वारा परिवर्तित ०६:३२, १३ जुलाई २०१५ का अवतरण ('==सप्तषष्टितम (67) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)== <d...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

सप्तषष्टितम (67) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: सप्तषष्टितम अध्याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

दुर्योधन ने पूछा-पितामह! वासुदेव श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण लोकों में महान् बताया जाता है, अतः मैं उनकी उत्पत्ति और स्थिति के विषय में जानना चाहता हूँ। भीष्मजीने कहाः भरतश्रेष्ठ! वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण वास्तव में महान् है। वे सम्पूर्ण देवताओं के भी देवता हैं। कमलनयन श्रीकृष्ण से बढ़कर दूसरा कोई नहीं है। मार्कण्डेय जी भगवान् गोविन्द के विषय में अत्यन्त अöुत बातें कहते है। वे भगवान ही सर्वभूतमय है और वे ही सबके आत्मस्वरूप महात्मा पुरूषोत्तम है। सृष्टि आरम्भ में इन्हीं परमात्मा ने जल, वायु और तेजः इन तीन भूतों तथा सम्पूर्ण प्राणियों की सृष्टि की थी। सम्पूर्ण लोकों के ईश्वर इन भगवान् श्री हरि ने पृथ्वी देवी की सृष्टि करके जल में शयन किया। वे महात्मा पुरूषोत्त सर्वतेजोमय देवता योग शक्ति से उस जल में सोयें। उन अच्युतने अपने मुख से अगिन्की, प्राण से वायु की तथा मन से सरस्वती देवी और वेदों की रचना की। इन्होंने ने ही सर्गके आरम्भ में सम्पूर्ण लोकों तथा ऋषियों सहित देवताओं की रचना की थी। ये ही प्रलय के अधिष्ठान और मृत्युस्वरूप है। प्रजा की उत्पत्ति और विनाश इन्ही से होते है। ये धर्मश, वरदाता, सम्पूर्ण कामनाओं देने वाले तथा धर्मस्वरूप है। ये ही कर्ता, कार्य, आदिदेव तथा स्वयं सर्व-समर्थ है। भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालो की सृष्टि भी पूर्वकाल में इन्हीं के द्वारा हुई है। इन जनार्दनने ही दोनों संध्याओं, दसो दिशाओं, आकाश तथा नियमों की रचना की हैं। महात्मा अविनाशी प्रभु गोविन्दने ही ऋषियों तथा तपस्या की रचना की है। जगत्स्त्रष्टा प्रजापति को भी उन्होंने ही उत्पन्न किया है। उन पूर्णतम परमात्मा श्रीकृष्ण ने पहले सम्पूर्ण सम्पूर्ण भूतों के अग्रज संकर्षण को प्रकट किया, उनसे सनातन देवाधिदेव नारायण का प्रादुर्भाव हुआ। नारायण की नाभि से कमल प्रकट हुआ। सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति के स्थानभूत उस कमल से पितामह ब्रह्माजी उत्पन्न हुए और ब्रह्माजी से ये सारी प्रजाएँ उत्पन्न हुई है। जो सम्पूर्ण भूतों को तथा पर्वतों सहित इस पृथ्वी को धारण करते है, जिन्हें विश्वरूपी अनन्तदेव तथा शेष कहा गया है, उन्हें भी उन परमात्माने ही उत्पन्ना किया है। ब्राह्मण लोग ध्यान योग के द्वारा इन्हीं परम तेजस्वी वासुदेव का ज्ञान प्राप्त करते है। जलशायी नारायण की कान की मेल से महान असुर मधु का प्राकटय हुआ था। वह मधु बड़े ही उग्र स्वभाव का तथा क्रूर कर्मा था। उसने ब्रह्माजी का समादर करते हुए अत्यन्त भयंकर बुद्वि का आश्रय लिया था। इसलिये ब्रह्माजी का समादर करते हुए भगवान पुरूषोत्तम ने मधु को मार डाला था।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख