एकोनविंशत्यधिकशततम (119) अध्याय: उद्योग पर्व (भगवद्-यान पर्व)
महाभारत: उद्योग पर्व: एकोनविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 14-23 का हिन्दी अनुवाद
‘इस प्रकार आपके आठ सौ घोड़ों की संख्या पूरी हो जाये और मैं आपसे उऋण होकर सुखपूर्वक तपस्या करूँ, ऐसी कृपा कीजिये’। विश्वामित्र ने गरुड़ सहित गालव की ओर देखकर इस परम सुंदरी कन्या पर भी दृष्टिपात किया और इस प्रकार कहा-‘गालव ! तुमने पहले ही इसे यहीं क्यूँ नहीं दे दिया, जिससे मुझे ही वंशप्रवर्तक चार पुत्र प्राप्त हो जाते। ‘अच्छा, अब मैं एक पुत्ररूपी फल की प्राप्ति के लिए तुमसे इस कन्या को ग्रहण करता हूँ । ये घोड़े मेरे आश्रम में आकार सब और चरें’। इस प्रकार महातेजस्वी विश्वामित्र मुनीने उसके साथ रमण करते हुए यथासमय उसके गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न किया। माधवी के उस पुत्र का नाम अष्टक था। पुत्र के उत्पन्न होते ही महामुनि विश्वामित्र ने उसे धर्म, अर्थ तथा उन अश्वों से सम्पन्न कर दिया । तदनन्तर अष्टक चंद्रपुरी के समान प्रकाशित होने वाली विश्वामित्रजी की राजधानी में गया और विश्वामित्र भी अपने शिष्य गालव को वह कन्या लौटाकर वन में चले गए। गरुड़ सहित गालव भी गुरुदक्षिणा देकर मन ही मन अत्यंत संतुष्ट हो राजकन्या माधवी से इस प्रकार बोले- ‘सुंदरी ! तुम्हारा पहला पुत्र दानपति, दूसरा शूरवीर, तीसरा सत्यधर्मपरायण और चौथा यज्ञों का अनुष्ठान करने वाला होगा । सुमध्यमे ! तुमने इन पुत्रों के द्वारा अपने पिता को तो तारा ही है, उन चार राजाओं का भी उद्धार कर दिया है । अत: अब हमारे साथ आओ’। ऐसा कहकर सर्पभोजी गरुड़ से आज्ञा ले उस राजकन्या को पुन: उसके पिता ययाति के यहाँ लौटाकर गालव वन में ही चले गए।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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