महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 138 श्लोक 165-179

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अष्टात्रिंशदधिकशततम (138) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)

महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टात्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 165-179 का हिन्दी अनुवाद

‘सौम्‍य! अब तुम्‍हारा काम बन गया और मेरा प्रयोजन भी सिद्ध हो गया; अत: अब मुझे खा लेने के सिवा मेरे द्वारा तुम्‍हारा दूसरा कोई प्रयोजन सिद्ध होने वाला नहीं है। ‘मैं अन्‍न हूं और तुम बलवान हो। मैं दूर्बल हूं और तुम बलवान हो। इस प्रकार मेरे और तुम्‍हारे बल में कोई समानता नहीं है। दोनों में बहुत अन्‍तर है। अत: हम दोनों में संधि नहीं हो सकती। ‘मैं तुम्‍हारा विचार जान गया हूं, निश्‍चय ही तुम जाल से छूटने के बाद से ही सहज उपाय तथा प्रयत्‍नद्वारा आहार ढूंढ़ रहे हो। ‘आहार की खोज के लिये ही निकलने पर तुम इस जाल में फंसे थे और अब इससे छूटकर भूख से पी‍ड़ित हो रहे हो। निश्‍चय ही शास्‍त्रीय बुद्धि का सहारा लेकर अब तुम मुझे खा जाओगे। मैं जानता हूं कि तुम भूखे हो और यह तुम्‍हारे भोजन का समय है; अत: तुम पुन: मुझसे संधि करके अपने लिये भोजन की तलाश करते हो। ‘सखे! तुम जो बाल–बच्‍चों के बीच में बैठकर मुझ पर संधि का भाव दिखा रहे हो तथा मेरी सेवा करने का यत्‍न करते हो, व‍ह सब मेरे योग्‍य नहीं है। ‘तुम्‍हारे साथ मुझे देखकर तुम्‍हारी प्‍यारी पत्‍नी और पुत्र जो तुमसे बड़ा प्रेम रखते हैं, हर्ष से उल्‍लसित हो मुझे कैसे नहीं खा जायंगे? ‘अब मैं तुमसे नहीं मिलूंगा। हम दोनों के मिलन का जो उद्देश्‍य था, वह पूरा हो गया। यदि तुम्‍हें मेरे शुभ कर्म (उपकार) का स्‍मरण है तो स्‍वयं स्‍वस्‍थ रहकर मेरे भी कल्‍याण का चिन्‍तन करो। ‘जो अपना शत्रु हो, दुष्‍ट हो, कष्‍ट में पड़ा हुआ हो, भूखा हो और अपने लिये भोजन की तलाश कर रहा हो, उसके सामने कोई भी बुद्धिमान् (जो उसका भोज्‍य है)’ कैसे जा सकता है। ‘तुम्‍हारा कल्‍याण हो। अब मैं चला जाऊगा मुझे दूर से भी तुमसे डर लगता है। मेरा यह पलायन विश्‍वासपूर्वक हो रहा हो या प्रमाद के कारण; इस समय यही मेरा कर्तव्‍य है। बलवानों के निकट रहना दुर्बल प्राणी के लिये कभी अच्‍छा नहीं माना जाता। ‘लोमश! अब मैं तुमसे कभी नहीं मिलूंगा। तुम लौट जाओ। यदि तुम समझतें हो कि मैंने तुम्‍हारा कोई उपकार किया है तो तुम मेरे प्रति सदा मैत्रीभाव बनाये रखना। ‘जो बलवान और पापी हो, वह शान्‍तभाव से रहता हो तो भी मुझे सदा उससे डरना चाहिये। यदि तुम्‍हें मुझसे कोई स्‍वार्थ सिद्ध नहीं करना है तो बताओ मैं तुम्‍हारा (इसके अतिरिक्‍त) कौन-सा कार्य करूं ? ‘मैं तुम्‍हें इच्‍छानुसार सब कुछ दे सकता हूं; परंतु अपने आपको कभी नहीं दूंगा। अपनी रक्षा करने के लिये तो संतति, राज्‍य, रत्‍न, और धन-सबका त्‍याग किया जा सकता है। अपना सर्वस्‍व त्‍यागकर भी स्‍वयं ही अपनी रक्षा करनी चाहिये। ‘हमने सुना है कि यदि प्राणी जीवित रहे तो वह शत्रुओं द्वारा अपने अधिकार में किये हुए ऐश्‍वर्य, धन, और रत्‍नों को पुन: वापस ला सकता है। यह बात प्रत्‍यक्ष देखी भी गयी है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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